कृषि कानूनों को लेकर मोदी सरकार पिछले एक साल से बैकफुट पर थी. कानून लागू करने के बाद एक तरफ सरकार को तो किसानों का गुस्सा झेलना पड़ रहा था. वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल भी सरकार पर लगातार हमला कर रहे थे. कानून वापसी के फैसले को राजनीतिक विश्लेषक दो तरीकों से देख रहे हैं. एक पक्ष ये कह रहा है कि मोदी का ये फैसला मास्टरस्ट्रोक है क्योंकि इस फैसले ने विपक्ष का मुद्दा खत्म कर दिया है. जबकि दूसरा पक्ष ये कहा रहा है कि अगले साल कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए ये फैसला लिया गया है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि कानून वापसी का फैसला मोदी का मास्टरस्ट्रोक या मजबूरी?