भारतीय नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की पहली तिथि को शुरू होता है. इसके आगमन के पूर्व पुराने संवत्सर को विदाई देने और इसकी नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए "होलिका दहन" किया जाता है. इसको कहीं कहीं पर संवत जलाना भी कहते हैं. इसके पीछे अगर पौराणिक कथाएँ हैं तो वैज्ञानिक मान्यतायें भी हैं ,बुराई पर अच्छाई के विजय के प्रतीक स्वरुप में होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन में किसी वृक्ष कि शाखा को जमीन में गाड़ कर उसे चारों तरफ से लकड़ी कंडे उपले से घेर कर निश्चित मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले ,गेंहू की नयी बालियाँ और उबटन जलाया जाता है ताकि वर्ष भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और उसकी सारी बुरी बलाएँ अग्नि में भस्म हो जायें. लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है. फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था , उनको श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है - इस दिन श्री चैतन्य महाप्रभु की पूजा उपासना भी अत्यंत शुभ फलदायी होती है. इस बार होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा.