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World Transplant Games 2023: भोपाल की बेटी ने दुनियाभर में किया भारत का नाम रोशन, वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स 2023 में जीता एक गोल्ड और 2 सिल्वर मेडल

gnttv.com
  • भोपाल,
  • 08 मई 2023,
  • Updated 2:42 PM IST
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की बेटी अंकिता श्रीवास्तव ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स 2023 में एक गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल हासिल कर भोपाल का पूरे देश में नाम रोशन कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में 15 अप्रैल को वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स 2023 का शुभारंभ हुआ था तथा 21 अप्रैल को समापन हुआ. अंकिता को लॉन्ग जंप में गोल्ड मेडल मिला है. वहीं शॉट पुट और रेसवाक में सिल्वर मेडल मिले हैं. यह दूसरी बार है जब अंकिता ने इस गेम्स में मेडल हासिल किया हो. इससे पहले वह 2019 में भी मेडल हासिल कर चुकी हैं. 

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वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में वह लोग हिस्सा ले सकते हैं जिन्होंने कभी ना कभी अपना कोई ऑर्गन डोनेट किया हो. अंकिता ने अपनी माताजी को अपना लिवर डोनेट किया था. अंकिता ने अपनी माता जी को अपना 74 पर्सेंट लिवर डोनेट किया था. प्रतियोगिता में मेडल जीतने  के बाद 2 दिन पहले अंकिता भोपाल लौटी हैं. अंकिता को लेने उसके परिवार वाले और फ्रेंड ढोल नगाड़ों के साथ आए. 


 

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अंकिता ने बताया कि उनका जन्म भोपाल में हुआ है और उनका परिवार अरोरा कॉलोनी में रहता है. उन्होंने अपनी स्कूलिंग की शुरुआत भोपाल के भोजपुर मांटेसरी स्कूल से की. अंकिता बचपन से ही स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव थी उन्होंने नर्सरी में पढ़ाई के दौरान ही अपनी फर्स्ट एथलेटिक रेस जीती थी. अंकिता नेशनल स्वीमर भी रही हैं. भोपाल के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई कर अब वे यूएस के व्हार्टन बिजनेस स्कूल से एमबीए किया है. पिछले 9 साल से बिजनेस भी कर रही हैं और अब अपना एमबीए कंप्लीट करने के बाद अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहती हैं.

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अपनी माता जी के बारे में बात करते हुए अंकिता ने बताया, “माताजी को लिवर में प्रॉब्लम की वजह से किसी न किसी लीवर का हिस्सा डोनेट करना था. मैंने यह फैसला लिया कि मैं अपनी मां को अपना लीवर दूंगी. हालांकि इसके लिए मेरा वजन काफी कम था और मुझे अपना लिवर डोनेट करने के लिए अपने वजन को बढ़ाना पड़ा. जिसके चलते मैंने ओवर डाइट ली और अपना वजन बढ़ाया. ऑपरेशन के दौरान मैंने अपनी मां को अपना 74% लिवर डोनेट किया. हालांकि, लीवर ट्रांसप्लांट के 4 महीने बाद ही मेरी माता जी इस दुनिया से चली गई जिसका मुझे जिंदगी भर अफसोस रहेगा. लिवर ट्रांसप्लांट के समय मैं कुल 18 साल की थी. 

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लिवर ट्रांसप्लांट के बाद डोनर की स्थिति क्या होती है यह हर किसी को मालूम है. इसको लेकर अंकिता कहती हैं, “शरीर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है. साथ ही आपकी दिनचर्या बदल जाती है खान-पान बदल जाता है. जब मैंने लिवर डोनेट किया तो उसके अगले दिन 2 दिन तक तो मुझे होश ही नहीं था. फिर जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आप को व्हीलचेयर पर पाया. मैं बहुत डरी हुई थी. मुझे दोबारा से अपनी जिंदगी की शुरुआत करनी पड़ी. ऑपरेशन के बाद एक महीने तक मैं अस्पताल में ही रही. धीरे-धीरे मुझे बैठना शुरू करवाया गया फिर उठना और चलना शुरू करवाया गया. वहीं जब मैं बिस्तर पर करवट लेती थी तो मुझे ऐसा लगता था कि मेरा लेबर भी मेरे साथ करवट ले रहा है. ट्रांसप्लांट के शुरुआती साल में मुझे खड़े होने और चलने बैठने के लिए सपोर्ट लेना पड़ती थी फिर एक साल के बाद में खुद उठने बैठने और चलने लगी. 

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आगे अंकिता कहती हैं, “लिवर डोनेट करने के बाद जब मैं रिकवरी कर रही थी तो मेरे पिता ने मुझे एक व्यक्ति से मिलवाया जो उनके मित्र थे. उनका हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था. उन्हीं सज्जन ने मुझे वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स के बारे में बताया. खुशनसीबी से उसी दौरान राष्ट्रीय स्तर के खेलों के लिए चयन किया जा रहा था. मैं बचपन से ही स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव थी मैंने कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया था. अंकल के द्वारा वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स के बारे में बताए जाने के बाद मुझे नया जीवन शुरू करने का एक मकसद मिला. दिल दिमाग में रखकर मैंने अपनी दोबारा जिंदगी शुरू की हालांकि इसके लिए मुझे बहुत त्याग और तपस्या करना पड़े मैंने कई सालों तक बाहर का खाना नहीं खाया. जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक को नहीं छुआ. मैंने 2017 से एक बार फिर पूरे जोश और उत्साह के साथ तैयारी की और मेरे कठिन परिश्रम की वजह से मात्र एक साल बाद 2018 में मेरा सिलेक्शन हो गया. मैंने 2019 में यूके के न्यू कासल में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में हिस्सा लिया और मैडल हासिल किया. 

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जागरूकता को लेकर अंकिता कहती हैं कि हमारे देश में प्रदेश में अभी भी वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स को लेकर अवेयरनेस नहीं है. जब लोगों को पता चलता है कि मैं वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में मेडल लेकर आई हूं तो सबसे पहले वह यह पूछते हैं कि यह होता क्या है. हर एक को बताना पड़ता है कि यह क्या होता है. 
 

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अंकिता बताती हैं कि इस प्रतियोगिता में लगभग 50-60 देश हिस्सा लेते हैं. 1200 से  1500 खिलाड़ी अपनी अपनी प्रतिभा को दिखाने इस टूर्नामेंट में भाग लेते हैं. 2019 में जब मैं पहली बार इस टूर्नामेंट में भाग लेने गई थी तब भारत से केवल 14 लोग थे. वहीं इस वर्ष यह संख्या बढ़कर 35 हो गई है. जबकि दूसरे देशों की बात की जाए तो यूएसए से लगभग 200 लोग हिस्सा लेने आए थे. इतनी बड़ी प्रतियोगिता होने के बावजूद भी हमारे हमारे पास ट्रेनर नहीं थे जबकि दूसरे देशों के खिलाड़ियों के साथ एक नहीं कई कई ट्रेनर थे.