Special Olympics: पहाड़-सा हौसला लिए 198 एथलीट करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व, बर्लिन में Special Olympics में लेंगे हिस्सा  

Special Olympics Berlin 2023: इसबार उम्मीद की जा रही है कि भारत के हिस्से करीब 150 मेडल आने वाले हैं. हालांकि, स्पेशल ओलंपिक में भारत की सफलता की कहानी 1987 में साउथ बेंड, इंडियाना में आयोजित इंटरनेशनल समर गेम्स में भाग लेने के साथ शुरू हो गई थी. अब तक भारत के हिस्से कई मेडल आ चुके हैं.

Special Olympics
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 05 जून 2023,
  • अपडेटेड 6:37 PM IST
  • श्रेय आज हैं सर्टिफाइड कोच 
  • स्पेशल ओलंपिक को लेकर अब बढ़ रही है जागरूकता 

कहते हैं उड़ने के लिए पंख नहीं बल्कि हौसलों की जरूरत होती है. अब ऐसा ही पहाड़ सा हौसला लिए देश के 198 स्पेशल एथलीट जर्मनी की धरती पर भारत का जलवा बिखेरने जा रहे हैं. जर्मनी के बर्लिन में 17 से 25 जून तक स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स (Special Olympics World Summer games) का आयोजन होने वाला है. स्पेशल ओलंपिक में इंटेलेक्चुअल डिसेबल (Intellectual Disable) एथलीट हिस्सा लेते हैं. एथलीटों के साथ 57 यूनिफाइड पार्टनर्स और कोच भी 16 खेलों में भाग लेने जा रहे हैं. बर्लिन 26 खेलों में भाग लेने के लिए 190 देशों के 7000 एथलीट भाग लेने जा रहे हैं. श्रेय कादियान (Shrey Kadian) भी उन्हीं प्लेयर्स में से एक हैं. 8 साल की उम्र तक न बोल पाने के कारण लोग अक्सर श्रेय को लेकर कहते थे कि वे कभी बोल नहीं पाएंगे, लेकिन आज वे एक सर्टिफाइड कोच हैं. श्रेय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. 27 साल के श्रेय कादियान 2008 में स्पेशल ओलंपिक भारत में शामिल हुए थे. अब तक श्रेय स्पेशल ओलंपिक में क्रिकेट, साइकिलिंग, सॉफ्टबॉल खेल चुके हैं और भारत को कई मेडल दिला चुके हैं. 

क्या है इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी?

अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ इंटेलेक्चुअल एंड डेवलपमेंटल डिसएबिलिटीज की परिभाषा के अनुसार (AAIDD), एक व्यक्ति को बौद्धिक अक्षम या इंटेलेक्चुअल डिसएबल मानने के कुछ मापदंड हैं.-

1. बौद्धिक कामकाज स्तर (IQ) 70-75 से नीचे 

2. दो या दो से ज्यादा अडेप्टिव स्किल में कुछ सीमाएं मौजूद हों

3. यह स्थिति 18 साल की उम्र से पहले दिखने लगी हों.

अडेप्टिव स्किल्स वो होती हैं जो समुदाय में रहने, काम करने और खेलने के लिए जरूरी होती हैं. इसकी परिभाषा में 10 स्किल्स शामिल हैं: कम्युनिकेशन, सेल्फ-केयर, होम लिविंग, सामाजिक कौशल, स्वास्थ्य और सुरक्षा,सेल्फ-डायरेक्शन,फंक्शनल एकेडेमिक्स, कम्युनिटी यूज और काम. 

श्रेय आज हैं सर्टिफाइड कोच 

श्रेय स्पेशल ओलंपिक ग्लोबल एथलीट लीडरशिप काउंसिल (GALC) के सदस्य हैं. श्रेय लॉस एंजिल्स 2015 में स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स के सॉफ्ट बॉल गोल्ड मेडलिस्ट हैं. अपने सफर के बारे में श्रेय ने GNT डिजिटल को बताया कि छोटी उम्र में वे बहुत कम बोल पाते थे. एक प्लेग्रुप में जब उनका एडमिशन करवाया तो उनकी शिकायतें आने लगीं कि वे काफी आक्रामक है. लेकिन फिर उन्हें के स्पेशल स्कूल में डाला गया जहां से उन्हें दिशा मिलनी शरू हो गई. वे बताते हैं, “मैंने क्रिकेट खेलने से शुरुआत की थी. इसके बाद मैंने कई सारे खेल खेले जैसे टेबल टेनिस, बैडमिंटन, एथलेटिक्स आदि. हालांकि, इस दौरान परेशानी काफी आई जैसे लोग कहा करते थे कि ये बोल नहीं पाता है. 8 साल तक मैं बोल नहीं पाता था. नॉर्मल बच्चों के स्कूल में मुझे नहीं लिया गया, मैं केवल 2 से 3 महीने ही स्कूल गया था, फिर मैंने स्पेशल स्कूल ज्वाइन किया. अब मैं एक सर्टिफाइड कोच हूं. अब मुझे काफी खुशी होती है. मेरे घरवाले और दोस्त सभी लोग मुझे देखकर काफी प्राउड फील करते हैं."

आज श्रेय एक एक्टिव YouTuber भी हैं जो साथी एथलीटों को प्रेरित करने और उन्हें जोड़ने के लिए ऑनलाइन कंटेंट बनाते हैं. 

ठीक ऐसे ही सिद्धांत नाथ भी स्पेशल एथलीट हैं, जो एशिया पेसिफिक वर्ल्ड गेम्स में हिस्सा ले चुके हैं और कई मेडल भी अपने नाम कर चुके हैं. सिद्धांत आज स्पेशल ओलंपिक भारत के ऑफिस में स्पोर्ट्स असिस्टेंट के रूप में भी काम कर रहे हैं. वे बताते हैं, “शुरू में मैं किसी से बात नहीं करता था. मुझे लोगों से काफी शर्म आती थी. लेकिन धीरे-धीरे स्पेशल ओलंपिक में जब मैंने काम किया तो मुझमे आत्मविश्वास जागा. मैंने 2013 में भारत का प्रतिनिधित्व ऑस्ट्रेलिया में किया था. इससे पहले 2011 में मैं वर्ल्ड गेम्स, ग्रीस भी गया था. अभी तक मैं करीब 4-5 बार भारत का प्रतिनिधित्व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर चुका हूं.”  

स्पेशल ओलंपिक को लेकर अब बढ़ रही है जागरूकता 

शुरुआत से ही भारत ने लगातार अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने स्पेशल एथलीटों की प्रतिभा और क्षमताओं का प्रदर्शन किया है. 1983 में स्पेशल ओलंपिक भारत (SO Bharat) संगठन की स्थापना के साथ, 1970 के दशक के अंत में भारत में स्पेशल ओलंपिक को गति मिली. बता दें, एसओ वो संस्था है जो देश भर में स्पेशल ओलंपिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और आयोजित करने का काम करती है.

इसे लेकर स्पेशल ओलंपिक भारत की अध्यक्ष डॉ मल्लिका नड्डा ने बताया कि हमारे देश में 80 के दशक में स्पेशल ओलंपिक शुरू हो गया था. इसमें केवल स्पोर्ट्स और गेम्स नहीं हैं. इसमें फॅमिली फोरम, एथलीट लीडरशिप प्रोग्राम, हेल्दी एथलीट प्रोग्राम है आदि हैं. डॉ मल्लिका पिछले 30 साल से स्पेशल ओलंपिक से जुड़ी हुई हैं. इन कई सालों में क्या बदलाव आए इसे लेकर वे कहती हैं, “इसमें मल्टीपल एक्टिविटी होती हैं. ये केवल खेल-कूद नहीं है. हालांकि, जब से हमने कैश अवार्ड देने शुरू किए हैं, तब से लोग और बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. अब लोग इसमें आगे आ रहे हैं. इसमें अलग प्लेयर्स 2 या 3 प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं तो कई बार उन्हें अच्छी नगद राशि मिल जाती है. अब तो कई सारी सरकारें भी हमारे इंटेलेक्चुअल एथलीट को अवार्ड्स और रोजगार दे रही हैं. जैसे भीम अवार्ड आदि.”    

डॉ मल्लिका

पिछले कुछ सालों में, भारतीय एथलीटों ने स्पेशल ओलंपिक में एथलेटिक्स, तैराकी, बैडमिंटन, फुटबॉल, बास्केटबॉल, क्रिकेट, पॉवरलिफ्टिंग, टेबल टेनिस आदि में भाग लिया है. 

स्पेशल ओलंपिक किस तरह से पैरालंपिक से अलग है?

स्पेशल ओलंपिक, पैरालंपिक दो अलग-अलग स्पोर्ट्स इवेंट हैं. इन दोनों के अपने अलग-अलग उद्देश्य और लक्ष्य हैं. जैसे स्पेशल ओलंपिक को बौद्धिक अक्षम एथलीटों के लिए डिजाइन किया गया है. यह बौद्धिक अक्षमताओं वाले व्यक्तियों को खेलों में अपने कौशल और क्षमताओं का प्रदर्शन करने का अवसर देता है. लोकल, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्पेशल ओलंपिक प्रोग्राम का आयोजन  किया जाता है. वहीं दूसरी ओर, पैरालंपिक ऐसे एथलीटों के लिए है, जिनमें कई तरह की शारीरिक अक्षमताएं हैं, जिनमें गतिशीलता संबंधी बीमारी, कम दिखना, न सुन पाना आदि शामिल हैं. इस प्रतियोगिता में एथलीटों को उनकी दुर्बलताओं के आधार पर बांटा गया है. पैरालंपिक गेम्स में एथलेटिक्स, स्विमिंग, व्हीलचेयर बास्केटबॉल, साइकिलिंग, और बहुत सारी प्रतियोगिताएं होती हैं. हर खेल में शारीरिक अक्षमता के प्रकार और स्तर के आधार पर उन्हें बांटा जाता है. 

भारत ने अब तक जीते हैं कई मेडल्स 

डॉ मल्लिका को उम्मीद है कि इसबार भारत के हिस्से करीब 150 मेडल आने वाले हैं. हालांकि, स्पेशल ओलंपिक में भारत की सफलता की कहानी 1987 में साउथ बेंड, इंडियाना, यूएसए में आयोजित इंटरनेशनल समर गेम्स में भाग लेने के साथ शुरू हुई. तब से, भारतीय एथलीटों ने लगातार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है और बाद के स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड गेम्स, रीजनल गेम्स, नेशनल गेम्स में कई मेडल जीते हैं. 1987 से 2019 तक भारत के हिस्से 371 गोल्ड मेडल, 455 सिल्वर मेडल और 506 ब्रॉन्ड मेडल आ चुके हैं. 

1. 1999 स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स, नॉर्थ कैरोलिना, यूएसए: भारतीय एथलीटों ने 57 गोल्ड, 47 सिल्वर और 37 ब्रॉन्ज मेडल जीतकर प्रभावशाली टैली हासिल की थी. 

2. 2003 स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स, डबलिन, आयरलैंड: भारतीय एथलीटों ने 71 गोल्ड, 75 सिल्वर और 43 ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया था.

3. 2007 स्पेशल ओलंपिक, शंघाई, चीन: भारतीय एथलीटों ने अपना उल्लेखनीय प्रदर्शन जारी रखते हुए 50 गोल्ड, 68 सिल्वर और 38 ब्रॉन्ज मेडल जीते. 

4. 2011 स्पेशल ओलंपिक गेम्स, एथेंस, ग्रीस: भारतीय एथलीटों ने 75 गोल्ड, 69 सिल्वर और 71 ब्रॉन्ज मेडल भारत की झोली में डाले थे. 

5. 2015 स्पेशल ओलंपिक, लॉस एंजिल्स, यूएसए: भारतीय एथलीटों ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर चमक बिखेरी, 173 गोल्ड, 77 सिल्वर और 75 ब्रॉन्ज मेडल जीते. 

6. 2019 स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स, अबू धाबी, संयुक्त अरब अमीरात: भारतीय दल ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया, जिसमें 85 गोल्ड, 154 सिल्वर और 129 ब्रॉन्ज मेडल सहित कुल 368 मेडल हासिल किए थे.


 

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