Chess Olympiad 2024: पांच महीने पहले कैंडिडेट्स से चूके, अब जीता ओलंपियाड में ऐतिहासिक गोल्ड मेडल... Arjun Erigaisi कैसे बने भारत के नंबर एक शतरंज खिलाड़ी?

Chess Olympiad: अर्जुन इस साल हुए कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए थे. इस घटना ने उन्हें उदास किया लेकिन इसी समय उन्होंने एक अहम फैसला भी लिया जो उनके करियर के लिए वरदान साबित हुआ.

शादाब खान
  • नई दिल्ली,
  • 23 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:35 PM IST

हंगरी के बुडापेस्ट में आयोजित हुए चेस ओलंपियाड में भारत ने कुल पांच गोल्ड मेडल जीतकर अपना अभियान खत्म किया. भारत ने एक-एक गोल्ड मेडल ओपन और महिला कैटेगरी में जीता, जबकि तीन गोल्ड एकल स्तर पर जीते. भारत के लिए व्यक्तिगत गोल्ड लाने वाले डी गुकेश जहां वर्ल्ड चैंपियनशिप की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं दिव्या देशमुख दुनिया की नंबर एक महिला खिलाड़ी हैं. व्यक्तिगत गोल्ड जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों की लिस्ट में अगर कोई नाम हैरान करने वाला है, वह है अर्जुन एरिगैसी (Arjun Erigaisi) का. 

एक शानदार ग्रैंडमास्टर होने के बावजूद अर्जुन ने अब तक एक भी व्यक्तिगत गोल्ड मेडल नहीं जीता था. उनका एकमात्र व्यक्तिगत मेडल 2022 एशियाई खेलों में आया था. वह भी सिल्वर. अर्जुन अप्रैल 2024 में हुए शतरंज के सबसे अहम टूर्नामेंट कैंडिडेट्स के लिए भी क्वालीफाई नहीं कर पाए थे. लेकिन उस निराशा के बाद अर्जुन ने अपने खेल को कुछ ऐसा बदला कि वह भारत के नंबर एक चेस प्लेयर बन गए हैं.

कैंडिडेट्स की हार... और वापसी
वर्ल्ड चैंपियनशिप मैच में बतौर चैलेंजर शामिल होने के लिए अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (FIDE) कैंडिडेट्स टूर्नामेंट आयोजित करता है. कैंडिडेट्स में जगह बनाने के चार तरीके हैं- पिछले साल के वर्ल्ड चैंपियनशिप मैच के रनर-अप को एक स्थान दिया जाता है. वर्ल्ड कप के टॉप-3 खिलाड़ियों को एक-एक स्थान दिया जाता है. 

ग्रैंड स्विस टूर्नामेंट के तीन खिलाड़ियों को एक-एक स्थान दिया जाता है और इन सातों के अलावा साल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को एक स्थान दिया जाता है. आठ खिलाड़ियों के इस टूर्नामेंट में अर्जुन किसी भी तरह जगह नहीं बना सके. जनवरी 2024 में मिली इस खबर ने अर्जुन को बड़ा झटका दिया, लेकिन इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि वे निराशा को अपनी मेंटल हेल्थ खराब करने का मौका नहीं देंगे.

चेसबेस इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में अर्जुन कहते हैं, "कैंडिडेट्स से बाहर रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था. मैं कई रास्तों से टूर्नामेंट के करीब था और फिर मैं सबसे चूक गया.  जनवरी के पहले कुछ दिन मेरे लिए बहुत कठिन थे. मैंने एक दोस्त के घर पर समय बिताया और फिर फैसला लिया कि मैं इन सब चीजों को दिल पर नहीं लूंगा. उसके बाद मैं आगे बढ़ने में कामयाब रहा. मैंने फैसला लिया कि मैं नतीजों की ज्यादा चिंता नहीं करूंगा और हमेशा अपना बेस्ट करने की कोशिश करूंगा."

'इनर इंजीनियरिंग' से बदली मानसिकता
अर्जुन ने ईशा फाउंडेशन के 'इनर इंजीनियरिंग' कोर्स का जिक्र करते हुए कहा कि इनसे उनकी मानसिकता बदलने में मदद की. अर्जुन 'चेस विद मस्टरीडर' को दिए गए इंटरव्यू में बताते हैं, "यह खुद को नतीजों से अलग कर लेने के लिए एक कोर्स है. आपका गोल होना चाहिए कि आप खुश रहें. चाहे नतीजा जो भी हो." 
 

अर्जुन एरिगैसी (Photo/Getty Images)

वह बताते हैं, "पिछले साल जब एशियन गेम्स में मेरा प्रदर्शन बहुत खराब था तब मैंने यह कोर्स शुरू किया. कोर्स के दौरान भी इसके नतीजे दिखे. मिसाल के तौर पर कतर मास्टर्स 2023 (Qatar Masters 2023) में मैं आखिरी मैच बहुत करीब आकर हार गया था. आम तौर पर मैं कई दिनों तक लोगों से बात नहीं करता लेकिन इस बार मैं कुछ घंटों में ही हार से आगे बढ़ने में कामयाब रहा था."

फिटनेस पर भी किया काम
अर्जुन ने अपनी फिटनेस पर भी काफी काम किया है. वह बताते हैं कि लोग उन्हें फिटनेस पर काम करने की सलाह देते थे लेकिन वह आलस में इस ओर ध्यान नहीं देते थे. फिर जब 2021 में ग्रैंड स्विस टूर्नामेंट के एक मुकाबले ने उनके धीरज की परीक्षा ले ली. अर्जुन बताते हैं, "लोग मुझे अपनी फिटनेस पर ध्यान देने के लिए कहते थे लेकिन मैं आलसी था और मैं इसे नजरअंदाज कर देता था. ग्रैंड स्विस 2021 में मेरा वोलोदिमीर ओनिशचुक के साथ एक गेम था जो बहुत लंबा चला, लगभग साढ़े सात घंटे. यह उस समय तक मेरी जिन्दगी का सबसे लंबा गेम था." 

वह कहते हैं, "मुझे पता था कि अगर मैं सटीक खेल सकता हूं तो मैच को बनाए रखना मुश्किल नहीं होगा. लेकिन मैं चीजों को इतना लंबा नहीं खींच सका और कई आसान गलतियां कीं. मेरे पास आधा घंटा था लेकिन मैं सोच नहीं सका और हार गया. तभी मुझे एहसास हुआ कि मुझे 7वें या 8वें घंटे में भी वैसा ही सोचना चाहिए जैसा मैं पहले घंटे में सोचता हूं." अर्जुन कहते हैं कि वह अब लगातार जिम जाते हैं और कार्डियो वर्कआउट पर ध्यान देते हैं. 

शतरंज की दुनिया में कैसे बदली दिशा?
क्या सिर्फ मनोविज्ञान ने अर्जुन के खेल को सुधारा, या इसके पीछे और भी कोई वजह थी? अर्जुन कहते हैं, "मैं लगभग 60-70 प्रतिशत श्रेय मनोवैज्ञानिक बदलाव को दूंगा. बाकी श्रेय शतरंज में सुधार को जाता है. एक बात यह है कि मेरे कोच और शतरंज के बारे में जानने वाले अन्य परिचित मुझे बहुत करीब से देखते हैं. वे मुझे बताते रहे हैं कि मेरा खेल अच्छा है लेकिन मुझे दबाव को बेहतर तरीके से हैंडल करना होगा. मैं उनकी बातें समझता था लेकिन अपनी सोच में बदलाव करने के बाद ही मैं इन चीजों को समझ सका." 

ओलंपियाड में गोल्ड जीतने के बाद अर्जुन का लक्ष्य है कि वह फिडे कैंडिडेट्स टू्र्नामेंट में जगह बनाएं. हालांकि वह अपने ऊपर किसी भी तरह का दबाव नहीं बनाना चाहते. अर्जुन ने भविष्य की योजनाओं पर बात करते हुए कहा, "कैंडिडेट्स 2026 में जगह बनाना मेरी योजना का हिस्सा जरूर है. लेकिन मैंने इस साल की शुरुआत में खुद से वादा किया था कि मैं कोई गोल नहीं बनाऊंगा."

वह कहते हैं, "मेरी योजना यही है कि जिस टूर्नामेंट में खेलूं, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूं. चाहे वह मेरे दूर के लक्ष्यों को प्रभावित न भी करे. मेरी कोशिश है कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूं और अच्छा शतरंज खेलूं. 2026 अभी बहुत दूर है इसलिए उसके बारे में ज्यादा सोचकर कोई फायदा नहीं." 

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