हारकर भी जीता करोड़ों भारतीयों का दिल! सुशीला देवी ने देश को दिलाया तीसरा सिल्वर मेडल, जानें जूडो में भारत के लिए मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला के बारे में   

Commonwealth Games 2022: कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भारत के हिस्से तीसरा सिल्वर मेडल आ गया है. ये मेडल जूडो खिलाड़ी एल सुशीला देवी ने दिलाया है. सोमवार को फाइनल में पहुंचने के बाद सुशीला देवी को दक्षिण अफ्रीका की मिशेला वाइटबूइ से हार का सामना करना पड़ा.

sushila devi
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 10:54 PM IST
  • मैरी कॉम और टॉप जूडोका को देखकर सीखा है बहुत कुछ 
  • भाई को देखकर लिया जूडो क्लास में एडमिशन 

कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में जूडो खिलाड़ी एल सुशीला देवी ने हारकर भी भारतीयों का दिल जीत लिया है. उनके हिस्से सिल्वर मेडल आया है. सुशीला देवी महिलाओं के 48 किलो वर्ग के फाइनल में पहुंची और शानदार प्रदर्शन किया. हालांकि, दक्षिण अफ्रीका की मिशेला वाइटबूइ ने उन्हें आखिर में हरा दिया. 

बता दें, सोमवार दोपहर सुशीला देवी ने मॉरीशस की प्रिसिला मोरांड को इप्पोन से अंक जुटाकर हराया था और फाइनल में एंट्री पाई थी. 
दरअसल, सुशीला कॉमनवेल्थ गेम्स में जूडो में भारत के लिए मेडल जीतने वालीं पहली भारतीय महिला हैं. उन्होंने 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता था. 

इससे पहले भी जीत चुकी हैं कई मेडल 

पिछली उपलब्धियों की बात करें तो सुशीला देवी 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीत चुकी है. वहीं, 2019 दक्षिण एशियाई खेल में गोल्ड मेडल और उनके सिर पर 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले एकमात्र भारतीय जुडोका का खिताब भी है. अब 2022 के कॉमनवेल्थ खेलों में सुशीला के हिस्से सिल्वर मेडल लगा है.   

परिवार से ही मिली जूडो सीखने की प्रेरणा  

दरअसल, सुशीला का परिवार जूडो से जुड़ा हुआ है. सुशीला के चाचा और भाई ने ही उन्हें इसे खेल को खेलने के लिए प्रेरित किया. बता दें, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी से कोच बने शुशीला के चाचा दिनिक सिंह ने सुशीला के भाई शिलाक्षी सिंह को इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित किया था. एक बच्चे के रूप में, सुशीला अक्सर अपने भाई को देखा करती थीं. स्पोर्ट्सस्टार के एक इंटरव्यू में शिलाक्षी कहते हैं, “मैं जहां भी जाता, वह साथ में रहती है. वह हमेशा मुझे फॉलो करती है.” 

भाई को देखकर लिया जूडो क्लास में एडमिशन 

शिलाक्षी बताते हैं कि इंफाल में पास के ही भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र में जब उन्होंने जूडो की क्लासेज में दाखिला लिया, तो उनके साथ में सुशीला ने भी उन्हें ज्वाइन किया. शिलाक्षी और सुशीला दोनों साथ में ही 10 किमी साइकिल चलाते थे. 
SAI केंद्र में प्रभावित होने के बाद, वह पटियाला के नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस पहुंची. बस यहीं से सुशीला देवी ने करियर के रूप में इस खेल में आगे बढ़ने का मन बनाया. 

मैरी कॉम और टॉप जूडोका को देखकर सीखा है बहुत कुछ 

एक इंटरव्यू में सुशीला बताती हैं कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि  ओलंपियन बनेंगी. सुशीला कहती हैं, “उस समय मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं ओलंपियन बनूंगी या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलूंगी. मुझे बस ये खेल पसंद आया. पटियाला में टॉप एथलीट थे और मैं उनके अक्सर देखा करती थी कि वे कैसे ट्रेनिंग और प्रैक्टिस करते हैं. इस दौरान ट्रेनिंग में मैं मैरी कॉम और शीर्ष जूडोका को देखा करती थीं.”

द्रोणाचार्य अवार्डी कोच जीवन शर्मा से मिली है ट्रेनिंग 

पटियाला में उनके करियर की शुरुआत तब हुई जब द्रोणाचार्य अवार्डी कोच जीवन शर्मा ने उन्हें गाइड करना शुरू किया. स्पोर्टस्टार के हवाले से कोच जीवन शर्मा कहते हैं, "मैंने उसे जब पहली बार देखा तभी पता चल गया था कि सुशीला की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत थी - वह कभी हार नहीं मानती थी. वह हारने से कभी नहीं डरी और हार को पचा लेना जानती थी.”

जूडो छोड़ने पर भी किया था विचार

हालांकि, एक समय ऐसा भी आया  था जब सुशीला ने 2018 में खेल छोड़ने पर विचार किया था. हैमस्ट्रिंग की चोट की वजह से वे लगभग सात महीने तक खेल से दूर रहीं और इसी वजह से एशियाई खेलों के ट्रायल में भी हार गईं. वे कहती हैं, "मैं टूट गयी थी. मुझे लगा कि मेरा जूडो करियर खत्म हो गया है. लक्ष्य एशियाई खेलों के लिए क्वालीफाई करना और ओलंपिक की तैयारी के लिए एक मंच के रूप में इसका इस्तेमाल करना था. मेरा दिल एकदम टूट गया था और तीन महीने के लिए ब्रेक लेकर मैं घर वापस चली गई थी.”

हालांकि, एक योद्धा की तरह सुशीला ने जूडो में वापसी की और 2018 और 2019 में हांगकांग ओपन में लगातार सिल्वर मेडल जीते. 
 

 

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