एक चाय बेचने वाले के लिए पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप जीतना इतना भी आसान नहीं था

धीरू बताते हैं कि “राज्य चैंपियनशिप में खेलने के बाद, डब्ल्यूपीसी में अंतरराष्ट्रीय लेवल पर एक मौका मिला, जो मॉस्को में होना था. मुझे विदेश यात्रा के बारे में कुछ नहीं पता था और न ही मेरे पास पैसे थे. मेरी माँ ने बचाए हुए सारे पैसे लगा दिए और बाकि के पैसे उधार लेने पड़े. प्रतियोगिता में 50 देशों के 300 से ज्यादा प्रतियोगी थे. मैं बहुत घबराया हुआ था. आखिर में, मैंने 82 किग्रा वर्ग में चैंपियनशिप जीत ली .

अपनी मां के साथ दुभानी
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:44 PM IST

अहमदाबाद की दीवारों पर बिना शर्ट में एक नौजवान की तस्वीर पर अमूमन ही नज़र पड़ जाती है. चौड़ी छाती, मांसल शरीर और आकर्षित चेहरे वाला ये नौजवान अहमदाबाद के ना जाने कितने युवाओं के लिए हीरो है.अहमदाबाद के  बेहरामपुरा के खोदियारनगर इलाके के धीरू दुभानी  की तस्वीर यूं ही नहीं टंगी, धीरू दुभानी ने 82 किलोग्राम वर्ग में डब्ल्यूपीसी (वर्ल्ड पावरलिफ्टिंग कांग्रेस) चैंपियनशिप जीती है जो 8 से 15 दिसंबर के बीच मास्को में आयोजित की गई थी. धीरू दुभानी अपने गांव मे एक चॉल चलाते हैं. बचपन से धीरू दुभानी  पिता की चाय की दुकान में बैठ कर  बॉडी बिल्डरों की तस्वीरों को घंटो निहारा करते थे. पिता को ये समझते देर नहीं लगी कि धीरू भी कुछ करना चाहता है और अपने बेटे धीरू को जिम  भेजना शुरू कर दिया. 

चाय की दुकान से मिलते हैं 20,000 रुपये प्रति माह

हालाँकि, परिवार को चाय की दुकान से हर महीने 20,000 रुपये मिल रहे थे. धीरू कहते हैं, "एक समय था जब परिवार के बाकी सदस्यों को मुझे हर दिन 1 किलो चिकन खाने और मांसपेशियां बनाने के लिए जरूरी  प्रोटीन सप्लीमेंट खरीदने के लिए खाना तक खाने के पैसे नहीं रहते थे. धीरू  कहते हैं कि दो साल पहले उनके पिता की कैंसर से मृत्यु हो गई, और घर की जिम्मेदारी मां कंकूबेन पर आ गई. लेकिन धिरू की मां ने बेटे का सपना नहीं टूटने दिया. मां कंकूबेन ने तीन भाई बहनों के साथ धीरू की जिम्मेदारी उठाई. इसके लिए मां पर 3 लाख का कर्जा भी हो गया. जिम के साथ धीरू ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी, उन्होंने 12वीं की बोर्ड परीक्षा पास की और  जीटीयू में सिविल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया.और ये पहली बार था जब 2017 में  धीरू ने अपनी जिंदगी का पहला मेडल जीता. अगले साल उन्होंने 2018 में ऑल यूनिवर्सिटी पावर लिफ्टिंग चैंपियनशिप भी जीत ली. आर्थिक तंगी ने कई बार धीरू के हौसले को तोड़ने की कोशिश की , लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. हांलाकि उनकी पढ़ाई छूट गयी.


पैसे उधार लेकर गे मास्को और जीत ली चैंपियनशिप

धीरू बताते हैं कि “राज्य चैंपियनशिप में खेलने के बाद,  डब्ल्यूपीसी में  अंतरराष्ट्रीय लेवल  पर एक मौका मिला, जो मॉस्को में होना था. मुझे विदेश यात्रा के बारे में कुछ नहीं पता था और न ही मेरे पास पैसे थे.  मेरी माँ ने बचाए हुए  सारे पैसे लगा दिए  और बाकि के पैसे उधार लेने पड़े.  प्रतियोगिता में 50 देशों के 300 से ज्यादा प्रतियोगी थे. मैं बहुत घबराया हुआ था. आखिर  में, मैंने 82 किग्रा वर्ग में चैंपियनशिप जीत ली . 

घर वापस आने पर  स्टाल पर चाय बनाना  अभी भी जारी है.  धीरू कहते हैं कि  “मैं सुबह 5.30 बजे उठता हूं, चूल्हा जलाता हूं और स्टॉल खोलता हूं. मैं सुबह 8.30 से दोपहर 12 बजे तक वस्त्रपुर में  जिम जाता हूं और युवाओं को बॉडीबिल्डिंग की ट्रेनिंग  देता हूं.  दोपहर में, मैं खुद कुछ कसरत करता हूं, और शाम को फिर से मैं वहां युवाओं को प्रशिक्षित करता हूं.

 

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