भारतीय शतरंज के ग्रैंडमास्टर रमेशबाबू प्रज्ञानंद फिडे वर्ल्ड कप शतरंज टूर्नामेंट में खिताबी जीत से चूक गए हैं. दुनिया के नंबर वन खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन वर्ल्ड चैंपियन बने हैं. 3 दिन तक चले फाइनल मुकाबले का नतीजा 4 बाजियों के बाद टाईब्रेकर से निकला. फाइनल मुकाबले में 18 साल के प्रज्ञानंद ने 32 साल के कार्लसन कड़ी टक्कर दी. लेकिन हार का सामना करना पड़ा.
ट्राईब्रेकर से निकला फाइनल का नतीजा-
फाइनल के तहत दो दिन में खेली गई दोनों बाजी ड्रॉ रही. इसके बाद 24 अगस्त को ट्राईब्रेकर से नतीजा निकला. टाईब्रेकर के तहत प्रज्ञानंद और कार्लसन के बीच 2 बाजियां खेली गईं. पहला ट्राईब्रेकर 47 चाल तक गया. इसमें प्रज्ञानंद को हार मिली. लेकिन दूसरे गेम में प्रज्ञानंद ने शानदार प्रदर्शन किया. लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए और कार्लसन ने वर्ल्ड कप खिताब जीत लिया.
3 साल में मिला चेस बोर्ड, 7 साल में जीता चेस चैंपियनशिप-
प्रज्ञानंद ने महज 3 साल की उम्र में शतरंज खेलना शुरू किया. उनको चेस बोर्ड मिलने की भी अलग कहानी है. दरअसल प्रज्ञानंद की बहन वैशाली चेस खेलती थी, लेकिन प्रज्ञानंद उनको परेशान करते थे और उनका बोर्ड खराब कर देते थे. इसके बाद घरवालों ने 3 साल की उम्र में उनको एक चेस बोर्ड दे दिया. इसके बाद प्रज्ञानंद भी चेस खेलना सीखने लगे. जब प्रज्ञानंद की उम्र 7 साल थी तो उन्होंने वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीत ली. इस जीत के साथ उनको मास्टर का टाइटल मिल गया.
10 साल की उम्र में इंटरनेशनल मास्टर बने-
जब प्रज्ञानंद 10 साल के हुए तो उन्होंने इंटरनेशनल मास्टर का टाइटल हासिल किया. इसके बाद उनका खेल लगातार बेहतर होता गया. 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का टाइटल हासिल किया. इसके साथ ही प्रज्ञानंद ये कारनाम करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के शतरंज खिलाड़ी बन गए. अभी उनकी उम्र 14 साल थी तो Elo Rasting System में उनका नंबर 2600 तक पहुंच गया, जो एक रिकॉर्ड था.
हर दौरे में साथ रहती हैं मां नागलक्ष्मी-
प्रज्ञानंद की मां का नाम नागलक्ष्मी है, जो हर दौरे में उनके साथ रहती हैं. नागलक्ष्मी एक इंडक्शन स्टोव और दो स्टील के बर्तन अपने साथ ले जाती हैं, ताकि प्रज्ञानंद के लिए रसम और चावल बना सकें. उनकी मां का मानना है कि जब आप अपना पसंदीदा भोजन करते हैं तो आपको लड़ाई के लिए तैयार होने में मदद मिलती है.
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