Altius Sports School: पति हैं स्पोर्ट्स टीचर तो पत्नी पुलिस अफसर, साथ मिलकर चला रहे हैं रेसलिंग स्कूल, बदली सैकड़ों बेटियों की जिंदगी

हरियाणा में हिसार जिले में एक कपल मिलकर स्पोर्ट्स स्कूल चला रहा है और इसके जरिए वे सैकड़ों बेटियों की जिंदगी बदल रहे हैं. यहां पर बेटियों को खेलों में आगे बढ़ाया जा रहा है.

Students of Altius Sports School, Sisai
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 31 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST
  • 14 सालों से चला रहे हैं स्कूल 
  • बुनियादी सुविधाएं हैं उपलब्ध 

'म्हारी छोरियां छोरों से कम है के,' यह सिर्फ एक फिल्म का डायलॉग नहीं है बल्कि हरियाणा की सैकड़ों बेटियों की जिंदगी है. आज भी यहां बेटियों को खुद को बेहतर साबित करने के मौके तक किस्मत से छीनने पड़ते हैं. बेटे-बेटी के बीच की होड़ में लगे इस राज्य में एक स्कूल ऐसा है जहां से न सिर्फ बेटियां सपना देख रही हैं बल्कि उनके सपनों को उड़ान मिल रही है. 

यह कहानी है हरियाणा में हिसार के सिसाय गांव में स्थित अल्टियास कुश्ती स्कूल की. दिल्ली से लगभग तीन घंटे की ड्राइव करके आप इस स्कूल तक पहुंच सकते हैं. इस स्कूल का उद्देश्य हर छोटे-बड़े वर्ग की बेटी को खेल से जोड़कर उसकी जिंदगी संवारना है. इस स्कूल को भारत की पहली महिला कुश्ती कोच उषा शर्मा अपने पति संजय सिहाग के साथ मिलकर चलाती हैं. उषा शर्मा एक पुलिस अफसर हैं और संजय सिहाग एक स्पोर्ट्स टीचर हैं. 

14 सालों से चला रहे हैं स्कूल 
उषा शर्मा ने रॉयटर्स को बताया कि गांवों में महिलाओं की कोई कीमत नहीं है. यहां एक महिला की तुलना में जानवर का मूल्य अधिक होता है, क्योंकि जानवर दूध देते हैं और इससे उन्हें पैसा मिलता है. लेकिन उषा शर्मा इस धारणा को बदलना चाहती हैं. इसलिए साल 2009 में उन्होंने पति के साथ मिलकर कुश्ती स्कूल की शुरुआत की. उनका मानना है कि भले ही लड़कियां चैंपियन बनें या नहीं, लेकिन खेल के जरिए अपनी किस्मत बना सकती हैं. 

गांव में ही जहां एक तरफ महिलाएं सिर से पांव तक खुद को ढंककर जानवर चराती हैं तो वहीं दूसरी तरफ स्कूल कुछ बेटियों को पढ़ने, खेलने और अपना नाम कमाने का मौका दे रहा है. उषा ने कहा कि जब उन्होंने अकादमी खोली और उन्हें पदक मिलने लगे, तो सबका हौसला बढ़ा. यह जानकर अच्छा लगा कि जो लड़कियां गाय और भैंस चराती थीं, वही लड़कियां अब परिवार का नाम बढ़ा रही हैं. और अब परिवार के पुरुष सदस्य इन बेटियों को आगे बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं. 

बुनियादी सुविधाएं हैं उपलब्ध 
संजय सिहाग अकादमी में रोजमर्रा के मामलों को मैनेज करते हैं, और लड़कियों को रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान देते हैं. यहां 8 से 22 वर्ष की आयु की छात्राएं ट्रेनिंग के लिए आती हैं. राज्य सरकार की फंडिंग से ट्रेनिंग का खर्च निकलता है, जबकि लड़कियों के माता-पिता बोर्ड और पढ़ाई के लिए फीस देते हैं और पास के ही एक स्कूल में बच्चियों का दाखिला कराया गया है. 

हॉस्टल इन लड़कियों के लिए परिवार की तरह है. वे एक साथ काम करती हैं, खेलती हैं और पढ़ाई भी करती हैं. लड़कियां आपस में बिस्तर और गद्दे शेयर करती हैं. रविवार को छोड़कर हर दिन वे सुबह 4 बजे उठती हैं और साथ मिलकर खाना बनाती हैं. उनके सुबह के व्यायाम में जॉगिंग, स्प्रिंट, स्क्वैट्स, पुश-अप्स और रैंप वर्क शामिल हैं, जबकि शाम को मैट वर्क और मुकाबले होते हैं. हर रविवार को, लड़कियां एक पुराने मोबाइल टेलीफोन से घर पर कॉल करती हैं, क्योंकि उनके पास इंटरनेट की पहुंच नहीं है. 

तरक्की कर रही हैं बेटियां 
खेलों से जुड़ी महिलाएं पुरस्कार राशि कमाती हैं, लेकिन राज्य स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने से उन्हें सरकारी नौकरी भी मिल सकती है. उषा कहती हैं कि उनको अपनी पुरानी छात्राओं को करियर बनाते, कार खरीदते और आगे बढ़ते हुए देखकर गर्व होता है. कुश्ती भारतीय पुरुषों के बीच लोकप्रिय है, जिसके देश भर में हजारों प्रशिक्षण केंद्र हैं.

लेकिन महिलाओं की एक नई पीढ़ी गीता फोगाट की जीत से प्रेरित हुई, जो 2010 में नई दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला भारतीय पहलवान बनीं. भारतीय महिलाओं ने हाल ही में चीन में हुए एशियाई खेलों में तीन कांस्य पदक जीते और पिछले साल ब्रिटेन में राष्ट्रमंडल खेलों में अल्टियस की एक पूर्व छात्रा ने कांस्य पदक जीता. 

अल्टियस की एक अन्य छात्रा, 27 वर्षीय सोनू कालीरमन ने गंभीर चोट लगने से पहले भारत का प्रतिनिधित्व किया. वह अब वहां कोचिंग करती हैं. कालीरमन पहले हर दिन खेतों में काम करने जाती थीं और खेतों में जाते समय स्कूल के प्रांगण में लड़कियों को व्यायाम करते हुए देखती थीं. जैसे-तैसे स्कूल से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई. वह हवाई जहाज की अपनी पहली झलक के रोमांच को याद करती है जब वह स्पर्धा के लिए विदेश गई थीं. वह कहती हैं कि हमने थोड़ी प्रगति की है और हम आगे भी प्रगति करते रहेंगे. 

मुश्किलें हैं लेकिन लड़ लेंगे 
भारत का राष्ट्रीय कुश्ती महासंघ मुश्किल दौर से गुजर रहा है. अगस्त में, खेल के लिए वैश्विक शासी निकाय, यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने समय पर चुनाव नहीं कराने के लिए इसे अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था. और इस साल कई महिला पहलवानों ने पूर्व महासंघ प्रमुख पर उत्पीड़न के आरोप लगाए और अब कार्यवाई चल रही है. भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) की देखरेख करने वाले खेल मंत्रालय ने कहा कि महिला एथलीटों के लिए सुरक्षा उपायों में सुधार के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा. 

इस विवाद पर शर्मा ने रॉयटर्स से कहा कि जब एक महिला को किसी मजबूत शक्ति के खिलाफ खड़ा होना होता है तो उसे बहुत सी चीजें दांव पर लगानी पड़ती हैं, अपना करियर, अपना जीवन. लेकिन घर-परिवार साथ हो ते मुश्किलें आसान हो जाती हैं. संडय कहते हैं कि उनकी बहन पहलवान है और इस तरह के मामलों के लिए उन्होंने अपनी बहन को सलाह दी थी कि पहले थप्पड़ मारो, विरोध करो और वहां से चले आओ. ऐसे में, पदक के बारे में नहीं सोचते हैं. 

उषा शर्मा और संजय सिहाग की कोशिशों और मेहनत को हमारा सलाम, क्योंकि आज उनकी वजह से सैकड़ों बेटियों के सपने पूरे हो रहे हैं. 

 

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