History of Olympic Torch: सूरज की रोशनी और शीशे से जलाई जाती थी ओलंपिक टॉर्च… ग्रीक पौराणिक कथाओं में मिलता है जिक्र, जानें इसका महत्व 

Olympic Torch: 1896 में, आधुनिक युग का पहला ओलंपिक एथेंस, ग्रीस में आयोजित किया गया था. वहीं अगर ओलंपिक लौ और मशाल रिले की परंपरा की बात करें, तो इसकी जड़ें प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं से जुड़ी हैं.

Olympic Torch (Photo: Reuters)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2024,
  • अपडेटेड 11:27 AM IST
  • पिछले कुछ सालों में हुए हैं बदलाव 
  • ओलंपिक का है समृद्ध इतिहास

एकता और खेल भावना का प्रतीक ओलंपिक टॉर्च बुधवार को फ्रांस के मार्सिले में अपनी यात्रा पर निकल पड़ी. इसका मतलब है कि पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों की उलटी गिनती शुरू हो गई है. मशाल की लौ सबसे पहले 16 अप्रैल को ओलंपिया नामक ग्रीक शहर में जलाई गई थी, जहां प्राचीन ओलंपिक की शुरुआत हुई थी. उसके बाद, एथेंस से मार्सिले के लिए जहाज पर रवाना होने से पहले इसने पूरे ग्रीस की यात्रा की. 

अब, मशाल को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाया जाएगा क्योंकि यह पूरे फ्रांस से होकर जाएगी. टॉर्च को ओलंपिक के उद्घाटन समारोह के ठीक समय पर 26 जुलाई को पेरिस पहुंचा दिया जाएगा. 

ओलंपिक का समृद्ध इतिहास

ओलंपिक की शुरुआत लगभग 3,000 साल पहले हुई थी. ये हर चार साल में ग्रीस के ओलंपिया में आयोजित होने वाली एथलेटिक प्रतियोगिताओं के रूप में शुरू हुई थी. इसको लेकर पहला लिखित दस्तावेज 776 ईसा पूर्व का है. ये इस दुनिया के सबसे पुराने खेल आयोजनों में से एक है.

यह केवल प्रतियोगिता ही नहीं बल्कि इससे काफी ज्यादा होता है. 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ओलंपिक ट्रूस या एकेचिरिया की स्थापना ने क्षेत्रीय स्तर चल रही लड़ाइयों को रोकने का काम किया था. इन खेलों ने शांति की भावना को बढ़ावा दिया था. 

कब हुई थी टॉर्च रिले शुरू 

1896 में, आधुनिक युग का पहला ओलंपिक एथेंस, ग्रीस में आयोजित किया गया था. वहीं अगर ओलंपिक लौ और मशाल रिले की परंपरा की बात करें, तो इसकी जड़ें प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में मिलती है. प्राचीन काल की टॉर्च रिले रेस से प्रेरित होकर, कार्ल डायम ने 1936 के बर्लिन ओलंपिक के लिए टॉर्च रिले का कांसेप्ट रखा था. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीक पौराणिक कथाओं में आग का काफी ज्यादा महत्व है. आग को पवित्रता और निरंतरता का प्रतीक माना जाता है. सबसे पहले लौ को पारंपरिक रूप से सूरज की रोशनी और शीशे का उपयोग करके जलाया गया था. 

हजारों मील तक फैली और कई प्रतिभागियों को शामिल करने वाली टॉर्च रिले, ओलंपिक भावना में निहित वैश्विक एकता और सौहार्द का प्रतीक है. 

पिछले कुछ सालों में हुए हैं बदलाव 

पिछले कुछ साल में, बदलते सामाजिक मानदंडों और मूल्यों को देखते हुए टॉर्च रिले भी बदली है. शुरुआत में युवा पुरुष एथलीटों का वर्चस्व था, 1972 के म्यूनिख ओलंपिक के बाद टॉर्च बेयरर रोस्टर में महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों को शामिल करने के लिए विस्तार किया गया. आखिरी में टॉर्च अक्सर खेल की दुनिया से प्रतिष्ठित हस्तियों या उभरते युवा लीडर्स के लिए आरक्षित होती है.


 

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