महज 50 लाख की आबादी वाला छोटा सा देश Norway बना Winter Olympics का बादशाह, कैसे?

पिछले कई सालों से अलग-अलग देश के स्पोर्ट्स लीडर यहां आकर इनकी तकनीक सीखकर जाते हैं. अमेरिकी स्की और स्नोबोर्ड के पूर्व डायरेक्टर ल्यूक बोडेनस्टेनेर कहते हैं कि पिछले गेम्स के बाद मैंने अपनी टीम से कहा था कि हमें नॉर्वे जाकर देखना चाहिए कि आखिर वे लोग कैसे ट्रेनिंग करते हैं.

Norway Winter Olympics
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 22 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:13 PM IST
  • दुनियाभर के स्पोर्ट्स लीडर्स आते हैं तकनीक सीखने
  • 1988 के बाद से आया मेजर चेंज

विंटर ओलंपिक में एक बार फिर नॉर्वे का ही दबदबा रहा. नॉर्वे ने अपने नाम पर 16 गोल्ड और 37 मेडल किए हैं. नॉर्वे आज विंटर ओलंपिक का बादशाह बन गया है. दूसर नंबर पर जर्मनी रहा जिसके खाते में 12 गोल्ड और कुल मिलाकर 27 मेडल आए हैं. वहीं, तीसरे पर चीन, फिर अमेरिका और फिर स्वीडन है. हालांकि, नॉर्वे की इस एकतरफा जीत की कई वजह बताई जा रही है. एडवांस टेक्नोलॉजी, बेहतरीन कोच, दिन-रात की ट्रेनिंग जैसे कईं फैक्टर हैं, जिससे आज ये छोटा-सा देश विंटर गेम्स का बादशाह बन गया है.

किस देश को मिले कितने मेडल?

देश गोल्ड सिल्वर ब्रॉन्ज कुल
नार्वे 16 8 13 37
जर्मनी    12 10 5 27
यूनाइटेड स्टेट्स  8 10 7 25
चीन  9 4 2 15
नीदरलैंड  8 5 4 17
स्वीडन  8 5 5 18
स्विट्जरलैंड  7 2 5 14
ऑस्ट्रिया  7 7 4 18
रशियन ओलंपिक कमिटी 6 12 14 32
फ्रांस  5 7 2 14

एयरोडायनामिक सूट, ट्रेनिंग, कोच, टेक्नोलॉजी है जीत की वजह 

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकन स्कीयर्स, अल्पाइन और क्रॉस-कंट्री दोनों कई साल से नॉर्वे के खिलाड़ियों के साथ ही एक ही पहाड़ और ग्लेशियर पर ट्रेनिंग कर रहे हैं. हर साल नॉर्वे के 150 इंटरनेशनल जूनियर खिलाड़ियों को बेहतरीन कोच के अंडर ट्रेन किया जाता है. इसके साथ नार्डिक स्कीइंग के लिए नॉर्वे ने ब्रिटेन के साथ वैक्स टेक्नोलॉजी के लिए पार्टनरशिप कर रखी है.

इसके साथ, स्कीयर्स के लिए नॉर्वे ने एयरोडायनेमिक सूट बनाये हुए हैं. यहां तक कि सैटेलाइट और जीपीएस सेंसर की मदद से ट्रेनिंग को और बेहतर बनाया जाता है.

दुनियाभर के स्पोर्ट्स लीडर्स आते हैं तकनीक सीखने 

पिछले कई सालों से अलग-अलग देश के स्पोर्ट्स लीडर यहां आकर इनकी तकनीक सीखकर जाते हैं. अमेरिकी स्की और स्नोबोर्ड के पूर्व डायरेक्टर ल्यूक बोडेनस्टेनेर कहते हैं कि पिछले गेम्स के बाद मैंने अपनी टीम से कहा था कि हमें नॉर्वे जाकर देखना चाहिए कि आखिर वे लोग कैसे ट्रेनिंग करते हैं.

1988 के बाद से आया मेजर चेंज 

दरअसल, इसकी शुरुआत 1988 से हुई. साल 1988 में नॉर्वे के हिस्से में केवल 5 मेडल ही आए, जिसकी वजह से उन्हें काफी धक्का लगा. इसमें से एक ही गोल्ड मेडल नहीं था. एक ऐसा देश जहां बच्चे-बच्चे को स्कीइंग सिखाई जाती है, ऐसे देश का हारना काफी शर्मनाक था. इसके बाद से ही नॉर्वे ने अपने स्कीइंग एसोसिएशन में पैसा लगाना शुरू किया. तब से लेकर  आज तक नॉर्वे विंटर ओलंपिक्स में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है.

और भी हैं जीत की वजह….

हालांकि, कई लोग मानते हैं कि मौसम भी इसकी एक वजह है. नॉर्वे एक ठंडा देश है. यहां का तापमान पूरे साल लगभग 2 डिग्री सेल्सियस ही रहता है. जिसका फायदा विंटर ओलंपिक्स में इस देश को मिलता है. वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि इसकी वजह पैसा भी है. 50 लाख की आबादी वाला ये छोटा सा देश आर्थिक तौर पर काफी सशक्त है. ये दुनिया का सातवें नंबर का सबसे अमीर देश है.

ओलंपिक के लिए लोगों को ट्रेन करना किसी भी देश के लिए काफी महंगा पड़ सकता है, ऐसे में नॉर्वे का आर्थिक पक्ष मजबूत होने से यहां के खिलाडियों को पैसों की तंगी से दो-चार नहीं होना पड़ता है.

खिलाड़ियों को दी जाती है बेहतरीन ट्रेनिंग 

सीएनएन को दिए अपने एक इंटरव्यू में गोल्ड मेडल इतने वाले क्रिस्टीएंसन कहते हैं कि तैयारियों में काफी पैसा खर्च होता है, ऐसे में नई-नई टेक्नोलॉजी और तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. वे कहते हैं, “मैच से पहले हम काफी चिंता में थे कि कहीं यहां की हवा के कारण हमें मुश्किल का सामना न करना पड़े. लेकिन जब हमारे पास नॉर्वे में असली हवा नहीं थी तब हमने विंड मशीन की मदद से इस हवा को जेनेरेट करके फिर तैयारी की है.”

यही कारण कि आज नॉर्वे इनइक्वालिटी  एडजस्टेड ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में पहले नंबर पर है.

 

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