एक दुर्घटना में खो दी चलने की ताकत, 6 साल तक बिस्तर पर रहीं और अब व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम की हैं कैप्टन

हालात ऐसे थे कि लगभग 6 साल तक इंशा बिस्तर पर ही रहीं. उनके परिवार और रिश्तेदारों ने उनकी लगातार देखभाल की. लेकिन कई बार उन्हें खुद को अपनी ज़िन्दगी बोझ लगने लगी. खासकर कि एक बार अपने पिता की तबियत खराब होने पर वह मदद नहीं कर पायीं. और उन के मन में इस बात का दुःख घर कर गया.

Inshah Bashir (Twitter)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 28 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST
  • 13 साल पहले लगी थी रीढ़ की हड्डी में चोट
  • आज हैं व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर

अक्सर किसी दिव्यांग शख्स को देखकर ज्यादातर लोगों के मन में उनके प्रति दया का भाव आता है. लोगों को उनकी ज़िन्दगी में कुछ अच्छा नजर नहीं आता है बल्कि वे उन्हें बेचारा ही मान लेते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी की पहचान सिर्फ इस बात से हो कि वे दिव्यांग हैं. 

क्योंकि आज देश में ऐसे बहुत से दिव्यांग लेकिन होनहार लोग हैं जिन्होंने अपनी काबिलियत से अपनी शारीरिक कमी को मात दी है. आज ऐसी ही एक कहानी हम आपको सुना रहे हैं. यह कहानी है जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखने वाली 27 वर्षीया इंशा बशीर की. 

13 साल पहले लगी थी रीढ़ की हड्डी में चोट: 

इंशा जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले से हैं. और फिलहाल दिल्ली से सोशल वर्क में मास्टर्स की डिग्री कर रही हैं. लगभग 13 साल पहले इंशा के साथ अपने घर पर ही एक दुर्घटना हो गई थी. जिसमें उनकी रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट आई और वह फिर कभी न चल सकीं.

हालात ऐसे थे कि लगभग 6 साल तक इंशा बिस्तर पर ही रहीं. उनके परिवार और रिश्तेदारों ने उनकी लगातार देखभाल की. लेकिन कई बार उन्हें खुद को अपनी ज़िन्दगी बोझ लगने लगी. खासकर कि एक बार अपने पिता की तबियत खराब होने पर वह मदद नहीं कर पायीं. और उन के मन में इस बात का दुःख घर कर गया.

इंशा के दिल में आत्महत्या का विचार आने लगा. लेकिन उनके परिवार ने उन्हें समझाया और कहा कि वह कभी भी उनके लिए बोझ नहीं हैं. 

डॉक्टर से बात करके मिली नई दिशा: 

इंशा अपने चेकअप के लिए एक बार डॉक्टर के पास गई और उन डॉक्टर ने पूछा कि वह अपने जीवन में क्या बनना चाहती हैं. उनका कहना था कि वह डॉक्टर बनना चाहेंगी. लेकिन उस डॉक्टर ने कहा कि वह एक डॉक्टर से भी ज्यादा बनने में सक्षम हैं. 

डॉक्टर ने इंशा को गहराई से सोचने के लिए कहा और उन्हें प्रोत्साहित किया कि अगर वह खुद अपनी मदद नहीं करेंगी तो अपने परिवार की मदद भी नहीं कर पाएंगी. इसके बाद इंशा ने घर से बाहर निकलकर पढ़ाई और नौकरी करने की ठानी. 

बास्केटबॉल ने बदली ज़िन्दगी: 

2017 में उन्होंने फिजियोथेरेपी लेना शुरू किया और धीरे-धीरे खुद अपनी व्हीलचेयर को हैंडल करना सीख लिया. इसके बाद दूसरों पर उनकी निर्भरता बहुत हद तक खत्म हो गई. उन्होंने रिहैब सेंटर में देखा कि कुछ दिव्यांग लड़के व्हीलचेयर बास्केटबॉल खेलते हैं. 

उन लड़कों की मदद से वह भी बास्केटबॉल खेलने लगीं और धीरे-धीरे उनकी रूचि इस खेल में बढ़ गई. उनका कहना है कि व्हीलचेयर बास्केटबॉल खेलने वाले 18 लड़कों में वह अकेली लड़की थीं. 

और आखिरकार इंशा ने सभी परेशानियों, अपने दर्द और खेल सुविधाओं की कमी को पार करते हुए बास्केटबॉल में अपनी पहचान बना ली. अब इंशा 2017 से व्हीलचेयर बास्केटबॉल खेल रही हैं- जिले से शुरू होकर, राज्य स्तर और फिर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर. 

कर रही हैं देश का प्रतिनिधित्व: 

वह देश का प्रतिनिधित्व करने वाली जम्मू-कश्मीर की पहली महिला व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी बनीं. उन्होंने 2017 में हैदराबाद में राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल चैंपियनशिप में खेला और 2018 में तमिलनाडु में दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया. 

उन्होंने 2019 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पहली बार जम्मू-कश्मीर टीम की कप्तानी भी की. उनकी टीम क्वार्टर फाइनल में पहुंची थी. इंशा ने मार्च 2019 में अमेरिका में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. वर्तमान में वह जम्मू-कश्मीर व्हीलचेयर बास्केटबॉल और राष्ट्रीय महिला टीम की कप्तान हैं.

इसके साथ ही इंशा अपने जैसी अन्य लड़कियों को भी अपनी कमियों को स्वीकार करते हुए ज़िदगी में आगे बढ़ने  प्रोत्साहित कर रही हैं. आज वह देश के सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं. 

 

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