मिलिए कश्मीर की पहली महिला ताइक्वांडो एथलीट से, देश के लिए ओलिंपिक मेडल जीतने का है सपना

23 साल की आफरीन हैदर पूरे देश की बेटियों के लिए मिसाल हैं. ताइक्वांडो में ऑल इंडिया रैंक 1 हेल्डर रहीं आफरीन का सपना है कि वह देश के लिए ओलिंपिक मेडल जीतें.

Afreen Hyder (Photo: Instagram)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 29 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 10:54 AM IST
  • एक्शन फिल्मों में थी दिलचस्पी
  • टीम में थीं अकेली लड़की

यह कहानी है कश्मीर की पहली महिला ताइक्वांडो एथलीट, आफरीन हैदर की, जो भारत की हर लड़की के लिए एक बड़ा उदाहरण स्थापित कर रही हैं. 23 वर्षीया आफरीन ऑल इंडिया रैंक 1 होल्डर रही हैं और उन्होंने खुद को दुनिया की टॉप 100 महिला ताइक्वांडो एथलीटों में भी साबित किया है. 

भारत में ताइक्वांडो इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है क्योंकि दो फेडरेशन, ताइक्वांडो फेडरेशन ऑफ इंडिया (टीएफआई) और इंडिया ताइक्वांडो देश का प्राथमिक बोर्ड बनने की चाहत में विवादों से घिरे हैं. टीएफआई खेल मंत्रालय और आईओए के तहत मान्यता प्राप्त है, जबकि भारत ताइक्वांडो को ताइक्वांडो विश्व महासंघ और एशियाई संघ द्वारा मान्यता प्राप्त है. दोनों संघों के बीच लगातार लड़ाई ने एशियाई खेलों के एथलीटों की भागीदारी को खतरे में डाल दिया है. लेकिन कम प्रतिस्पर्धी मैच खेले जाने के बावजूद, आफरीन की इच्छाशक्ति में कोई कमी नहीं आई है. 

एक्शन फिल्मों में थी दिलचस्पी
आफरीन ने अंतरराष्ट्रीय जी1 और जी2 टूर्नामेंट में पदक जीते हैं और फरवरी 2023 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक भी जीता है. लेकिन उनका अहम सपना ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतना है. अपने खेल की शुरुआत के बारे में उनका कहना है कि 7 साल की उम्र में उन्होंने अपने स्कूल में कुछ खिलाड़ियों को ताइक्वांडो का अभ्यास करते देखा था. अपने पिता की वजह से उनकी एक्शन फिल्मों में रुचि थी. इसलिए इस खेल को जानने के बाद उन्होंने मन बना लिया कि उन्हें यह करना है. 

लेकिन आफरीन का रास्ता आसान नहीं था. शुरुआत में उनके पास कोई प्रोफेशनल कोचिंग नहीं थी और न ही किसी की गाइडेंस. लेकिन उनके माता-पिता ने उनका साथ दिया. हालांकि, कश्मीर के हालात भी उनकी राह में आए. कभी कर्फ्यू, कभी लॉकडाउन, उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा. इसके कारण उन्हें कई स्कूल और राष्ट्रीय खेल मिस करने पड़े. लेकिन अब चीजें काफी बेहतर हैं और प्रगति कर रही हैं. 

टीम में थीं अकेली लड़की 
आफरीन ने जब नेशनल खेलना शुरू किया तो पूरी टीम में वह अकेली लड़की थीं. पहले माता-पिता वास्तव में अपने बच्चों को ज़्यादा खेलने की अनुमति नहीं देते थे. ऐसा लड़कियों के लिए नहीं है, लड़कों को भी इसी चीज़ से गुज़रना पड़ता था. माता-पिता को लगातार डर सताता था कि कहीं उनके बच्चे कर्फ्यू के कारण फंस न जाएं. और जब लड़कियों की बात आती है तो मानसिकता अधिक रूढ़िवादी थी. पर आफरीन रुकने वालों में से नहीं थीं. 

आज उनके कोच मास्टर सैयद हसन रज़ी हैं, जो अफगानिस्तान से हैं. वह वर्तमान में गुड़गांव में उनके अधीन प्रशिक्षण ले रही हैं. रज़ी पूर्व विश्व चैंपियन हैं और सभी के लिए प्रेरणा हैं. वह हर दिन लगभग 7-8 घंटे प्रशिक्षण लेती हैं. आफरीन का लक्ष्य ओलंपिक क्वालीफिकेशन है. उनका कहना है कि वह सिर्फ ओलंपिक या विश्व चैंपियनशिप के मंच पर अपना राष्ट्रगान सुनना चाहती हैं. 

 

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