भारत में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. यह दिन हॉकी के दिग्गज मेजर ध्यानचंद को समर्पित है क्योंकि इस दिन उनकी जयंती होती है. इस साल यह 'हॉकी के जादूगर' की 117वीं जयंती है।
इस अवसर पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को एक ट्वीट में दिवंगत हॉकी खिलाड़ी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा, “राष्ट्रीय खेल दिवस की बधाई और मेजर ध्यानचंद जी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि. हाल के वर्ष खेलों के लिए बहुत अच्छे रहे हैं. काश यह सिलसिला जारी रहे. खेल पूरे भारत में लोकप्रियता हासिल करते रहें."
शुरुआती दिन
मेजर ध्यानचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता उस समय ब्रिटिश-इंडियन आर्मी में थे. उनसे ही ध्यानचंद को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली. अपने गृहनगर में बुनियादी शिक्षा पूरी करने के बाद, साल 1922 में वह एक सैनिक के रूप में सेना में शामिल हो गए.
बचपन में ध्यानचंद को कुश्ती ज्यादा पसंद थी लेकिन सेना में अपनी सेवा के दौरान, वह अपने सीनियर्स को हॉकी खेलता देख प्रेरित हुए. और यहां से उन्होंने जो हॉकी पकड़ी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने वरिष्ठ सहयोगी सूबेदार मेजर तिवारी से हॉकी खेलना सीखा.
ध्यान सिंह से बने ध्यान चंद
उनका असल नाम ध्यान सिंह था. लेकिन अपनी ड्यूटी के बाद चांद की रोशनी में लगातार प्रैक्टिस करने के कारण उनके साथियों ने उनके नाम के साथ 'चांद' लगा दिया. और इस कारण उनका नाम ध्यानचंद पड़ गया.
उनका खेल लगातार बेहतर हुआ और आखिरकार उन्हें भारतीय सेना की हॉकी टीम में शामिल कर लिया गया.
लोग कहते थे 'हॉकी का जादूगर'
ध्यानचंद को उनके बेहतरीन खेल के लिए सब जगह जाना जाने लगा. उन्होंने 1928, 1932 और 1936 में भारत को तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए. उन्होंने जर्मनी पर भारत की 8-1 की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1936 के बर्लिन ओलंपिक फाइनल में टॉप स्कोरर बने.
1926 से 1948 तक अपने करियर के दौरान, मेजर ध्यानचंद ने 1,000 से अधिक गोल किए, जिसमें विभिन्न लीगों में 400 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय गोल शामिल हैं.
हॉकी में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण, उन्हें 1927 में 'लांस नायक' के रूप में नियुक्त किया गया था और बाद के वर्षों में उन्हें लेफ्टिनेंट के रूप में पदोन्नत किया गया था. अंत में, वह एक मेजर के रूप में अपनी सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त हुए. 1956 में, मेजर ध्यानचंद को भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
हिटलर भी था फैन
साल 1936 में हुए बर्लिन ओलंपिक में अपने प्रदर्शन से ध्यानचंद ने जर्मनी के तानाशाह को भी अपना फैन बना लिया था. और वह भी उनकी ही टीम को हराकर. जी हां, बर्लिन ओलंपिक का फाइनल मैच भारत और जर्मनी के बीच हुआ. इस मैच के दौरान स्टेडियम खचाखच भरा था और दर्शकों के बीच हिटलर भी बैठा था.
हर कोई ध्यानचंद के खेल से हैरान था. उन्होंने एक के बाद एक गोल दागे. यहां तक कि खुद को हारता देख, जर्मनी के एक खिलाड़ी ने अपनी हॉकी उनके मुंह पर मार दी लेकिन चोट के बावजूद ध्यानचंद ने खेल नहीं छोड़ा और जर्मनी को 8-1 से हराया. उनके खेल से प्रभावित होकर दिटलर नें उन्हें डिनर पर बुलाया और उन्हें जर्मनी की तरफ से खेलने के लिए कहा. बदले में उन्हें जर्मन सेना में कर्नल पद का ऑफर दिया. लेकिन ध्यानचंद ने बिना झिझके इस पद को ठुकरा दिया और कहा कि वह अपने वतन में खुश हैं.