मुंबई के जमशेद फारूकी का कमाल! वॉलीबॉल के खेल के सहारे बदली हजारों की जिंदगी, निकाला ड्रग्स की चपेट से

पिछले कुछ सालों में जमशेद फारूकी के मार्गदर्शन में तकरीबन  30 व्यक्तियों ने ड्रग्स की लत से छुटकारा पाया है. साथ ही उन्होंने वॉलीबाल के खेल को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बनाया है.

जमशेद फारूकी
पारस दामा
  • मुंबई ,
  • 22 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:43 AM IST
  • स्टेट लेवल खिलाड़ी रहे हैं जमशेद 
  • नशा करने वाले लोगों को बचाया 

खेल-कूद हो या शिक्षा का क्षेत्र एक गुरु किसी की भी जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं. गुरु ही वो कड़ी बनते हैं जो किसी का भी मार्गदर्शन करते हैं. वे उसको आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग रास्ते बनाते हैं. ठीक ऐसे ही मुंबई में रहने वाले जमशेद फारुकी हैं. ये एक ऐसे गुरु हैं जिन्होंने पिछले 2 दशक में हजारों बच्चों की जिंदगी सवारी है. वॉलीबाल खेल से उन्होंने कई बच्चों को ड्रग्स की चपेट से निकाला है. 

स्टेट लेवल खिलाड़ी रहे हैं जमशेद 

दरअसल, मुंबई के जमशेद फारूकी एक जमाने में स्टेट वॉलीबॉल खिलाड़ी थे. वे भारत का नेशनल लेवल पर प्रतिनिधित्व करने के लिए भी तैयार थे. लेकिन कुछ कारणों की वजह से उनका यह सपना अधूरा ही रह गया. उनका खुद का सपना तो टूट गया मगर उन्होंने साल 1996 में उन लोगों का जीवन संवारना शुरू किया जो ड्रग्स की चपेट में थे.

नशा करने वाले लोगों को बचाया 

जमशेद फारूकी ने 1996 में फुटपाथ पर रहते हुए नशा करने वालों लोगों को काफी नजदीक से देखा है. इस बीच उन्होंने कई छोटे बच्चों को भी नशे की लत से जूझते हुए देखा. तब उन्होंने कुछ बच्चों को निःशुल्क वॉलीबॉल की ट्रेनिंग देना शुरू किया. उन्होंने उनपर इस ट्रेनिंग का सकारात्मक प्रभाव देखा. और यही देखते हुए उन्होंने पुनर्वास के साधन के रूप में खेल का उपयोग करने का फैसला किया. 

30 लोगों को निकाला नशे की लत से बाहर  

पिछले कुछ सालों में जमशेद फारूकी के मार्गदर्शन में तकरीबन  30 व्यक्तियों ने ड्रग्स की लत से छुटकारा पाया है. साथ ही उन्होंने वॉलीबाल के खेल को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बनाया है. जमशेद फारूकी कहते हैं कि वे काफी खुश हैं. उनको इस मुहिम के चलते एक अच्छा जीवन जीने का उद्देश्य मिला है. जमशेद फारूकी अभी मुंबई उपनगरीय जिला वॉलीबॉल एसोसिएशन के महासचिव भी हैं.

बता दें, जमशेद फारूकी उन बच्चों की भी मदद करते हैं जो वॉलीबॉल सीखना चाहते हैं, मगर घर की माली हालत की वजह से वंचित रह जाते हैं. वे यह चाहते हैं कि यह बच्चे खेल में भारत के लिए कुछ बड़ा करें और समाज भी उनको मान-सम्मान दे.

 

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