हिमांशी राठी ने चीन में आयोजित पैरा एशियाई गेम्स की चेस स्पर्धा में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत और गुजरात का नाम रोशन किया है. हिमांशी अब यूपीएससी एग्जाम क्रैक करके आईएएस अफसर बनना चाहती हैं. इसी लक्ष्य के साथ वह आगे बढ़ रही हैं.
पीएम मोदी ने बढ़ाया उत्साह
दिव्यांग हिमांशी राठी ने कहा कि गोल्ड जितना लक्ष्य था पर ब्रॉन्ज जीत पाई हूं. मेरी इस सफलता में परिवार के साथ कोच का अच्छा सपोर्ट रहा. पीएम मोदी ने पैरा एशियाई गेम्स में मेडल विजेता खिलाड़ियों से मुलाकात की थी. हिमांशी ने कहा, पीएम ने ब्रॉन्ज जीतने पर कितने सतुष्ट हो ये पूछा था, तब मैंने कहा था कि गोल्ड का लक्ष्य था.
पीएम ने मनोबल बढ़ाते हुए गोल्ड जीतने का विश्वास दिलाया था. हिमांशी ने कहा, कई बार जीवन में कुछ समस्या के कारण लोग हिम्मत हार जाते हैं लेकिन अपनों का साथ मिले तो सफलता हासिल की जा सकती है. सरकार भी यदि खिलाड़ियों को मदद करती रहे तो इस बार से भी ज्यादा मेडल हम हांसिल कर पाएंगे.
माता-पिता ने नहीं मानी हार
हिमांशी राठी का जन्म 30 अक्टूबर 1999 के रोज बनासकांठा जिले के पालनपुर में हुआ था. पिता भावेश राठी बिजनेसमैन हैं और माता दीपाली राठी गृहणी. हिमांशी का जन्म हुआ तब माता-पिता को बिल्कुल पता नहीं था कि उनकी बच्ची की दृष्टि में खामी है, पर जब ढाई साल की हुई तब माता-पिता को इस बात का पता चला. इसके बाद अनेक जगहों पर इलाज कराने के बाद आखिर में पता चला कि हिमांशी की दृष्टि धीरे-धीरे चली जाएगी और वह संपूर्ण ब्लाइंड हो जाएगी. इसके बावजूद माता-पिता ने हताश हुए बगैर अपनी बच्ची के जीवन में निश्चित ध्येय के साथ आगे बढ़ने का फैसला लिया.
कक्षा चौथी तक सामान्य बच्चों के साथ की पढ़ाई
पहले तो माता-पिता ने हिमांशी को सामान्य बच्चों के साथ स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा. जहां चौथी तक सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाई की पर यह ज्यादा दिन तक न हो सका और हिमांशी को आगे पढ़ाई के लिए अहमदाबाद की अंध कन्या स्कूल में जाना पड़ा. जहां उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि वह चौथे तक सामान्य बच्चों की तरह पढ़ाई की थी और अचानक पांचवी में ब्रेल लिपि सीखना पड़ा.
डेढ़ महीने में हिमांशी ने ब्रेल लिपि सिख ली
हिमांशी की हिम्मत और माता-पिता की मेहनत रंग लाई और सिर्फ डेढ़ महीने में हिमांशी ने ब्रेल लिपि सिख ली. इसके बाद पढ़ाई में हमेशा वह अव्वल रहीं. 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षा में अंधजन कैटेगरी में हिमांशी रैंक काफी अच्छी रही. उसके बाद गुजरात यूनिवर्सिटी में बीए लिटरेचर की पढ़ाई में गोल्ड मेडल के साथ स्नातक की डिग्री हासिल की. हिमांशी जीपीएससी क्रैक कर चुकी हैं, अब हिमांशी स्पीपा के माध्यम से यूपीएससी की तैयारी कर रही हैं.
चेस में रुचि ने दिलाई सफलता
सामान्य तौर पर अंध स्कूल में बच्चे संगीत की तरफ ज्यादा आकर्षित रहते हैं पर हिमांशी के अंदर चेस में रुचि जागृत हुई और चेस के लिए तालीम लेना शुरू किया. वो एक के बाद एक स्पर्धा में हिस्सा लेती गईं और लगातार सफलता हिमांशी के कदम चूमती रही. हिमांशी खेल महाकुंभ में राज्य स्तर में पांच बार चैंपियन का खिताब और चार बार राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियन का खिताब जीत चुकी हैं. अब पैरा एशियाई गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया है.
2018 में मेडल नहीं जीत पाई थीं
ऐसा नहीं है कि इस साल हिमांशी पहली बार पैरा एशियाई गेम्स में पहुंचीं. इससे पहले 2018 में इंडोनेशिया में आयोजित पैरा एशियाई गेम्स में भी हिमांशी ने हिस्सा लिया था. हालांकि उस वक्त वह मेडल जीत नहीं पाई थी और चौथे क्रम पर रही थीं. उसके बाद वर्ष 2022 में हिमांशी ने फ्रांस में आयोजित वर्ल्ड वुमन्स चेस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था और 14वें क्रम पर रही थीं.
हिमांशी ने साल 2023 में चंडीगढ़ में आयोजित नेशनल वुमन चेस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था. इस इवेंट से चीन में आयोजित पैरा एशियाई गेम्स के लिए खिलाड़ियों का चयन होना था. हिमांशी ने स्पर्धा में अपनी कैटेगरी में पहला स्थान हासिल किया और फिर एक बार पर एशियन गेम्स जाने के दरवाजे खोल दिए.
(अतुल तिवारी की रिपोर्ट)