हरियाणा के पानीपत में जन्मे नवदीप सिंह को जब बचपन में 'बौना' कहकर चिढ़ाया जाता था तो वह अपने आप को कमरे में बंद कर लिया करते थे. इन फब्तियों की वजह से कई बार तो नवदीप कई-कई दिनों तक घर से बाहर नहीं निकला करते थे. पेरिस पैरालंपिक्स में शनिवार देर रात जब नवदीप ने जैवलिन थ्रो एफ41 प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता, तो उन्होंने इन तमाम फब्तियों और तानों को ही अपने हौसलों के सामने छोटा साबित कर दिया.
कुश्ती से शुरू हुआ सफर
पानीपत जिले के बुआना लखु गांव में नवदीप को अपने आस-पड़ोस के बच्चों से उनके बौनेपन की वजह से कई ताने सुनने पड़ते थे. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट नवदीप के भाई मनदीप सिंह के हवाले से बताती है, "नवदीप (ताने सुनकर) कई-कई दिन खुद को कमरों में बंद कर लिया करता और बाहर नहीं आता. आस-पड़ोस के सब बच्चे उसके कद का मजाक बनाते थे. उसे बौना कहकर पुकारते थे. बाद में हमारे पिता दलवीर सिंह उसके लिए किताबें लाकर उसका हौसला बढ़ाते और उससे बात करते."
नवदीप का जन्म सात महीने की गर्भावस्था के बाद ही हो गया था. उनके माता-पिता को यह समझने में दो साल लगे कि उनका बेटा बौना है. उन्होंने रोहतक और दिल्ली में इसका इलाज करवाने की कोशिश भी की. बहरहाल, चारों तरफ से कानों में पड़ने वाले तानों के शोर को पीछे छोड़ने के लिए नवदीप ने खेलों की ओर रुख करने का फैसला किया.
पिता दलवीर सिंह पहलवान थे. इसलिए नवदीप ने भी कुश्ती से शुरुआत की लेकिन बचपन में कमर में एक चोट लगने के कारण उनका यह करियर वहीं समाप्त हो गया. इसके बाद उन्होंने एथलेटिक्स का दामन थाम लिया. जब 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया, तब जाकर वह इन तानों को नजरंदाज करने का साहस जुटा पाए.
दिल्ली गए, नीरज से हुए प्रभावित
एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि पुरस्कार पाने के चार साल बाद नवदीप ने कोच नवल सिंह के साथ ट्रेनिंग लेने के लिए नई दिल्ली जाने का फैसला किया. यहां उन्होंने संदीप चौधरी जैसे खिलाड़ियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ट्रेनिंग ली. साल 2019 में नवदीप ने स्विट्जरलैंड में विश्व पैरा जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक भी जीता.
मनदीप कहते हैं, “जब उसने दिल्ली में ट्रेनिंग लेने का फैसला किया तो वह नीरज चोपड़ा को विश्व जूनियर अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए देखकर प्रभावित हुआ. उसने हमारे पिता से कहा कि वह अकेला से रह सकता है. मैं उसके लिए भाला मेरठ से या विदेश से भी लाता था. हमारे पिता ने नवदीप का समर्थन करने के लिए अपनी एलआईसी पॉलिसी से कर्ज भी लिया था.”
तकनीक में किया सुधार तो आया गोल्ड
साल 2019 में नवदीप की उम्र 19 बरस हो चुकी थी. सीनियर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हुए नवदीप ने 2019 वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप में 31.62 मीटर के साथ नौंवा स्थान हासिल किया. दो साल बाद 2021 में हुए टोक्यो पैरालंपिक्स में उन्होंने अपने खेल में सुधार किया, हालांकि 40.80 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ वह चौथे स्थान पर ही रहे.
इसके बाद उन्होंने भारतीय पैरा टीम के कोच विपिन कसाना से ट्रेनिंग लेना शुरू की. कसाना ने इससे पहले कम कद-काठी वाले एथलीट को प्रशिक्षण नहीं दिया था लेकिन नवदीप के लिए उन्होंने खास काम किया. कसाना ने जरूरी तकनीक को समझा और नवदीप को उसमें ढालने की पूरी-पूरी कोशिश की.
धीरे-धीरे इसका नतीजा भी दिखा. नवदीप ने 2021 में दुबई ग्रां प्री में गोल्ड मेडल जीतने के बाद अगले साल मराकेश ग्रां प्री 2022 में सिल्वर हासिल किया. जब इस साल की शुरुआत में नवदीप ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लिया तो यहां भी वह ब्रॉन्ज लाने में सफल रहे.
नवदीप ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में नौंवे स्थान से तीसरे स्थान का लंबा सफर तय किया था. अब बारी थी पैरालंपिक्स की. टोक्यो में चौथा स्थान हासिल करने वाले नवदीप ने पेरिस में 47.32 मीटर के थ्रो के साथ सिल्वर मेडल हासिल कर लिया था. लेकिन कुछ देर बाद गोल्ड मेडल जीतने वाले ईरान के सदेग बेत सयाह को डिसक्वालिफाई कर दिया गया और सोना नवदीप के हाथ लग गया.
मनदीप जानते हैं कि नवदीप अपनी इस जीत का जश्न किस तरह मनाने वाले हैं. वह कहते हैं, "वह अपने सारे मेडल गांव के सारे बच्चों को दिखाता है. इस बार भी ऐसा ही करेगा."