Paris Paralympics 2024 के क्लब थ्रो F51 इवेंट में 29 साल के भारतीय पैरा-एथलीट, प्रणव सूरमा ने सिल्वर मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है. प्रणव 16 साल के थे जब एक दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और उनका छाती से नीचे का हिस्सा पैरालाइज्ड हो गया. व्हीलचेयर पर आने के बाद एक बार उन्हें लगा कि उनकी जिंदगी मानो थम सी गई है लेकिन स्पोर्ट्स ने उन्हें जिंदगी जीने की उम्मीद दी और साथ ही, दुनियाभर में पहचान भी.
यह कहानी है हरियाणा में फरीदाबाद के रहने वाले प्रणव सूरमा की, जो आज एक बैंकर और पैरा-एथलीट हैं. प्रणव की जिंदगी का मंत्रा है कि जिंदगी से जो मौका मिले उसे बेस्ट बनाने की कोशिश करो. हर दिन कुछ नया ट्राई करो और जो आपको पसंद है वही करो. इसी दृढ़ संकल्प के साथ प्रणव ने अपनी किस्मत खुद लिखी है.
एक एक्सीडेंट ने बदला सबकुछ
साल 2011 में प्रणव के साथ एक दुर्घटना घटी और इसके बाद सबकुछ बदल गया. प्रणव 16 साल के थे और स्कूल की पढ़ाई के बाद उनके बहुत से सपने थे. लेकिन एक दिन उनके सिर पर सीमेंट शीट गिर गई और वह गंभीर रूप से चोटिल हुए. अस्पताल में इलाज के बाद डॉक्टर ने बताया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण अब वह कभी नहीं चल पाएंगे. प्रणव ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब उन्हें पता चला कि उन्हें अपनी जिंदगी व्हीलचेयर पर बितानी होगी तो उन्हें लगा था कि उनकी जिंदगी शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई.
लगभग छह महीने तक वह इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में रहे और यहं उन्हें दूसरे मरीजों से बात करने का मौका मिला. इन लोगों के साथ से वह नई जिंदगी में आगे बढ़ने लगे. हालांकि, कहीं न कहीं उनके दिमाग में यह बात थी कि शायद वह एक दिन चलने लगेंगे. पर कुछ सालों में उन्हें समझ में आ गया कि उन्हें व्हीलचेयर के साथ ही जीना है और उन्होंने अपनी पूरी एनर्जी को पढ़ाई पर लगाया. उन्होंने स्कूल के बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कॉमर्स में ग्रेजुएशन की. फिलहाल, वह बैंक ऑफ बड़ौदा में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं.
पैरा-स्पोर्ट्स ने दी नई पहचान
व्हीलचेयर खेल में उनका पहला अनुभव रग्बी में था, जिसमें उन्होंने रिहैबिलिटेशन के लिए पार्ट लिया. साल 2016 में, उन्होंने इंडोनेशिया में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया. तब तक प्रणव का पूरा ध्यान पढ़ाई पर था और खेल सिर्फ रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम का पार्ट था. साल 2017 में, उन्होंने मुंबई में मिस्टर व्हीलचेयर इंडिया प्रोग्राम जीता.
2018 में, प्रणव पूर्व पैरालिंपियन गिर्राज सिंह से जुड़े, और तब उनकी पैरा-एथलेटिक्स में रुचि जगी. व्हीलचेयर पर होने के कारण, प्रणव को ट्रेनिंग के दौरान मदद के लिए एक एस्कॉर्ट की जरूरत थी. 2019 में, उनके पिता, संजीव ने अपने बेटे के खेल करियर के लिए अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया. व्हीलचेयर पर बैठे एथलीटों के लिए एक एस्कॉर्ट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए पैरा-एथलेटिक्स में उनके पहले दिन से, उनके पिता साथ रहे.
प्रणव ने साल 2022 के पैरा-एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था. उन्होंने सर्बिया ओपन 2023 में भी गोल्ड जीता और अब पैरालंपिक्स में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है.