देश के महान खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण का जन्म आज ही के दिन (10 जून 1955) कर्नाटक में हुआ था. प्रकाश ने ही देश में बैडमिंटन की सफलता की नींव रखी थी. उन्होंने दुनिया के स्टार शटलरों को एक नहीं कई बार हराकर देश का मान बढ़ाया. आइए जानते हैं भारत को वैश्विक पटल पर बैडमिंटन में पहचान दिलवाने इस खिलाड़ी के बारे में कुछ रोचक बातें.
उन दिनों स्टेडियम और इंडोर कोर्ट नहीं थे इतने
भारतीय बैडमिंटन इतिहास की जब भी बात होगी तो प्रकाश पादुकोण की चर्चा जरूर होगी. आपको हम बता दें कि प्रकाश पादुकोण के चैंपियन बनने का सफर एक मैरिज हॉल से शुरू हुआ था. जी हां, उस समय स्टेडियम और इंडोर कोर्ट उतने नहीं होने के कारण प्रकाश मैरिज हॉल में बैडमिंटन खेल की प्रैक्टिस करते थे. इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी बेटी एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण को लिखे एक पत्र में किया था. उन्होंने बताया था कि उन्होंने बेंगलुरु में अपना करियर शुरू किया तो उन दिनों आज की तरह कोर्ट नहीं हुआ करते थे, जहां खिलाड़ी प्रैक्टिस कर पाएं. हमारा बैडमिंटन कोर्ट हमारे घर के पास कैनरा यूनियन बैंक का मैरिज हॉल था. जहां मैंने खेल के बारे में सब कुछ सीखा था.
करियर का पहला मैच हार गए थे
प्रकाश के पिता रमेश पादुकोण मैसूर बैडमिंटन असोसिएशन में सचिव थे. उन्होंने ही प्रकाश को बैडमिंटन से रूबरू कराया और खेल की तकनीकी बारिकियां सिखाई है. प्रकाश का पहला ऑफिशियल टूर्नमेंट कर्नाटक स्टेट जूनियर चैंपियनशिप-1970 था. यहां वह पहले ही दौर में हार गए लेकिन दो वर्ष बाद उन्होंने इस टूर्नमेंट का खिताब जीता.
पुरुष एकल का गोल्ड मेडल किया अपने नाम
प्रकाश पादुकोण का चैंपियन बनने का सफर जो शुरू हुआ तो उन्हें लगातार 7 सालों तक कोई हरा नहीं सका. 1972 से 1978 तक वह नेशनल चैंपियन रहे. 1978 कॉमनवेल्थ गेम्स कनाडा के इडमॉन्टॉन में खेला गया. प्रकाश ने दुनिया के स्टार शटलरों को धूल चटाते हुए पुरुष एकल का गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इसके साथ ही उन्होंने इस खेल में नए अध्याय की शुरुआत कर दी थी. यह बैडमिंटन में देश का पहला बड़ा खिताब था. उसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 1980 से 1985 के दौरान 15 अंतरराष्ट्रीय खिताब अपने नाम किए.
1980 में आल इंग्लैंड जीतकर बढ़ाया मान
1980 से पहले भारतीय बैडमिंटन टीम आल इंग्लैंड चैंपियनशिप में केवल भागीदार के तौर पर जाती थी लेकिन उन्होंने उस साल आल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतकर देश के लाखों युवाओं को यह सपना देखने का अधिकार दिया कि वो बतौर करियर बैडमिंटन को चुन सकते हैं. वो ऐसा करने वाले पहले भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी थे. उन्होंने इंडोनेशिया के लियेम स्वी किंग को 15-3, 15-10 से हराकर ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप में तिरंगे की शान को बढ़ाया था. इस खिताब को जीतने का नतीजा यह हुआ कि वर्ल्ड रैंकिंग में वो पहले नंबर पर पहुंच गए. 1981 में उन्होंने एल्बा वर्ल्ड कप पर कब्जा किया वो ऐसा करने वाले पहले भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी थे.
1972 में मिला अर्जुन अवॉर्ड
प्रकाश को 1972 में अर्जुन अवॉर्ड और 1982 में पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. उन्हें खेल में योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया गया. 1991 में रिटायर्मेंट के बाद प्रकाश पादुकोण ने बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन के रूप में अपनी सेवाएं दीं. 1993-1996 के दौरान वे भारतीय बैडमिंटन टीम के कोच भी रहे.