सपने बड़े हों तो एक न एक दिन वे पूरे हो ही जाते हैं. ठीक ऐसा ही हुआ है एक राजमिस्त्री की बेटी के साथ. आज पूजा सींग एशियन गेम्स में पहुंच गई हैं. हालांकि, उन्हें वहां तक पहुंचाने में उनके कोच का सबसे बड़ा हाथ रहा जिन्होंने पूजा को योग कैंप में स्पॉट किया था. कोच बलवान सिंह एक योग शिविर में प्रतिभा-खोज के लिए गए थे, तभी उनकी नजर चक्रासन कर रही एक लड़की पर पड़ी. इसके बाद उस लड़की ने धनुरासन किया. कोच ने वहां 11 साल की बच्ची को देखा. ये बात करीब पांच साल पहले की थी. तभी से ही पूजा का लक्ष्य भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर रिप्रेजेंट करना था. आज पूजा चीन में एशियाई खेलों में भारत के लिए पदक की उम्मीद कर रही हैं.
पहले भी जीत चुकी हैं कई मेडल
इस साल की शुरुआत में ताशकंद में चैंपियनशिप में पूजा ने जूनियर एशियाई चैम्पियनशिप में सिल्वर और त्रिनिदाद एवं टोबैगो में यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. इसके अलावा, पूजा सीनियर इंटर स्टेट चैंपियनशिप में 1.8 मीटर की छलांग लगाकर गोल्ड मेडल भी जीत चुकी हैं और एशियाई खेलों के लिए भी उन्होंने क्वालीफाई किया है.
दरअसल, सरकारी योग शिविर में जहां पूजा 2018 में अपने पिता के साथ गई थी, कोच बलवान सिंह उनके पास गए और हाई जम्प का मौका देने का प्रस्ताव रखा. वे इससे सहमत हुए. और यहीं से पूजा की कहानी शुरू हुई. पूजा का पहला टेस्ट 2 फुट की ऊंचाई पार करना था और उन्होंने यह काम आसानी से कर लिया. इसे लेकर कोच बलवान सिंह कहते हैं, “वह पहले से ही फ्लेक्सिबल थी क्योंकि वह काफी मुश्किल योग मुद्राएं कर रही थी. हालांकि, साइड-स्ट्रैडल तकनीक पर पूजा को टेस्ट करने में कुछ अटेम्प करने पड़े, लेकिन उन्होंने इसे पास कर लिया.''
कोच ने की हर मौके पर मदद
पूजा की क्षमता से आश्वस्त होकर, कोच ने पूजा को ट्रेनिंग देने में अपना सब कुछ लगाने का फैसला किया. हालांकि, हाई जम्प गियर उनके लिए बहुत महंगा था. बलवान सिंह के पास सीमित साधन थे और पूजा के पिता एक राजमिस्त्री थे, जो ज्यादातर दैनिक मजदूरी कमाते थे. इसलिए, कोच ने एक इनोवेशन किया. उनके पास सलाखों के लिए बांस के खंभे थे और पूजा के लिए गद्देदार सतह पर उतरने के लिए घास के ढेर से एक जंपिंग पिट बनाया गया. ये संघर्ष रंग लाया. आज पूजा एशियाई गेम्स तक पहुंच चुके हैं.
पूजा को मिल गए हैं स्पोंसर
एक प्राइवेट कंपनी अब पूजा को स्पांसर कर रही है. 16 साल की पूजा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उसके लिए यह विश्वास करना मुश्किल था कि एथलेटिक्स उसका भविष्य हो सकता है. हम खेल को एक पेशे के रूप में अपनाने का सपना भी नहीं देख सकते थे. इसमें बहुत ज्यादा इन्वेस्टमेंट की जरूरत होती है- समय, धन और ऊर्जा. मुझे खुशी है कि हमारी वित्तीय स्थिति में अब सुधार होने लगा है.'' पूजा ने बताया कि जब लोगों ने देखा कि जिले में हाई जम्प में भाग लेने वाली कोई दूसरी लड़की नहीं है, तो लोग उसे पहचानने लगे. एथलेटिक्स कोच की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, "जब मैंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने शुरू किए तो फाइनेंशियल सपोर्ट में सुधार होना शुरू हुआ."
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