कहते हैं कि भारतीयों के लिए क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि इमोशन है. चाय और क्रिकेट, उन चीजों में से है जो भारत को बांटती नहीं बल्कि जोड़ती हैं. क्रिकेट का खेल दो अनजान लोगों की भी जान-पहचान करा सकता है. यहां थोड़े दुख की बात यह है कि पुरुष खिलाड़ियों के बारे में, उनकी पारी या उनके रिकॉर्ड्स के बारे में तो लोगों को जबानी पता होता है लेकिन जब बात महिला क्रिकेट की आती है तो लोग ज्यादा फॉलो नहीं करते हैं.
हालांकि, पिछले कुछ सालों में महिला क्रिकेट के प्रति लोगों का नजरिया बदला है. भले ही अभी भी उन्हें बहुत ज्यादा व्यूअरशिप नहीं मिलती है लेकिन लोग महिला क्रिकेट और क्रिकेटर्स को फॉलो करने लगे हैं. और आज हम आपको बता रहे हैं भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआत और हमारे देश में आयोजित हुए पहले महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप के बारे में.
भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआत
भारतीय महिला क्रिकेट की जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत से जमना शुरू हुई थी. हालांकि, 1970 के दशक तक इस खेल को औपचारिक मान्यता और संगठन मिलना शुरू नहीं हुआ था. 1973 में, भारतीय महिला क्रिकेट संघ (WCAI) का गठन किया गया, जो देश में महिला क्रिकेट के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ. यह उसी साल था जब इंग्लैंड ने दुनिया के पहले महिला क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी की. इस दैरान लखनऊ की गलियों में एक रिक्शे से आवाज सुनाई दे रही थी- "कन्याओं की क्रिकेट होगी, जरूर आइए."
हाथ में माइक्रोफोन लिए महेंद्र कुमार शर्मा उर्फ शर्माजी, एक सॉफ्टबॉल कोच यह नारे लगा रहे थए. सफेद स्कर्ट में खिलाड़ियों को देखने के लिए उत्सुक, लगभग दो सौ लोग एक स्थानीय लड़कियों के कॉलेज में पहुंचे. इसके पांच साल बाद कोलकाता, पटना, दिल्ली और हैदराबाद के स्टेडियम्स में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और भारत की बेटियों को क्रिकेट खेलता देख लगभग 30,000 लोग पहुंचे थे. जी हां, WCAI के गठन के पांच साल बाद भारत में दूसरा महिला विश्व कप आयोजित किया गया और इसमें भारतीय टीम ने भी भाग लिया. इससे लगभग दो साल पहले 31 अक्टूबर 1976 को भारतीय महिला टीम ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ बैंगलोर में खेला. दोनों टीमों के बीच खेला गया यह टेस्ट मैच ड्रॉ पर समाप्त हुआ.
आपको बता दें कि 1970 और 1980 के दशक में अग्रणी महिला क्रिकेटरों का उदय हुआ जिन्होंने भावी पीढ़ियों के लिए नींव रखी. डायना एडुल्जी, शुभांगी कुलकर्णी और अंजलि भागवत जैसी खिलाड़ियों ने भारतीय महिला क्रिकेट के लिए मार्ग प्रशस्त किया, अंतरराष्ट्रीय मैचों में देश का प्रतिनिधित्व किया और उत्कृष्टता के नए मानक स्थापित किए. अब बात करें महिला विश्व कप की तो भारत में आयोजित वर्ल्ड कप में- ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और भारत- चार टीमों में हिस्सा लिया. यह दूसरा विश्व कप ऑस्ट्रेलिया के नाम रहा.
आसान नहीं थी महिला क्रिकेट की राह
महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप का दूसरा एडिशन भारत में होना छोटी बात नहीं थी. लेकिन बावजूद इसके भारतीय महिला क्रिकेट बोर्ड के पास फंड्स नहीं थे. खिलाड़ियों को ताने दिए जा रहे थे, एक क्रिकेट किट को दो-तीन खिलाड़ी शेयर कर रहे थे और सामने बहुत से सवाल खड़े थे- "क्या वे (महिला खिलाड़ी) पुरुषों की तरह गेंदबाजी करती हैं या वे सिर्फ विकेट पर गेंद फेंकती हैं? क्या उनके बल्ले और गेंद हल्के हैं? क्या वे चौका मारने में सक्षम हैं?" लेकिन जिन लोगों ने 1973 में पुणे में भारत का पहला राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टूर्नामेंट देखा था वे जानते थे महिला खिलाड़ी किसी भी मायने में पुरुषों से कम नहीं हैं. लेकिन फिर भी महिला क्रिकेट बोर्ड को बहुत ज्यादा आर्थिक समर्थन नहीं था.
भारत में वर्ल्ड कप के दौरान अपने अनुभव के बारे में एक इंटरव्यू में, अंग्रेजी खिलाड़ी मेगन लियर ने बताया था कि ट्रेन से अभ्यास मैदान तक की यात्रा के दौरान, टीम देखा कि उन्होंने होटल को जो कपड़े धोने के लिए थे, उन्हें लोकल नदी में धोया जा रहा था और चट्टानों पर सूखने के लिए रखा गया था. हालांकि,स्पॉन्सर्स की कमी के बावजूद, WC टूर्नामेंट सुचारू रूप से संपन्न हुआ. पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत के आखिरी गेम के बीच में, एडुल्जी ने कथित तौर पर जाकर आयोजकों से नकदी में गेट मनी इकट्ठी की थी. क्योंकि WCAI ने पिछले कुछ मैचों में खिलाड़ियों को पैसे नहीं दिए थे. इस टूर्नामेट में भारत देश सभी ग्रुप मैच हार गया और ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड के खिलाफ अपनी पहली विश्व कप हार का बदला हैदराबाद में ट्रॉफी जीतकर लिया.
पंडित को ट्रॉफी पकड़ने का मौका मिला जब टीम कलकत्ता से पटना तक खचाखच भरी ट्रेन में यात्रा कर रही थी. महिला क्रिकेटर कड़ी मेहनत करती थीं और कोई रिटर्न नहीं मिलता था. उन्हें एक टेस्ट मैच के लिए एक पैसा भी नहीं दिया जाता है. 1988 में ऑस्ट्रेलिया में चौथे महिला क्रिकेट विश्व कप में इन खिलाड़ियों को पहली बार चेस्ट नंबर पहने हुए देखा गया था. लेकिन इस क्रिकेट विश्व कप के लिए भारत को हरी झंडी नहीं मिलने के बाद निराशा फैल गई.
1986 और 1991 के बीच अंतर्राष्ट्रीय दौरों की कमी, सरकार और WCAI के समर्थन की कमी के अलावा, बीसीसीआई के साथ विलय की मांग उठने लगी. इस बीच, गार्ड बदलने का मतलब था कि मद्रास स्थित क्वेस्ट मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड को इंग्लैंड में 1993 महिला विश्व कप के लिए भारतीय टीम के प्रायोजक के रूप में नियुक्त किया गया था, जिसमें देश आठ टीमों के बीच चौथे स्थान पर रहा था. चार साल बाद, 1997 में भारत ने छठे विश्व कप की मेजबानी की थी और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच फाइनल के लिए कलकत्ता के ईडन गार्डन में 80,000 लोग आए थे.
सालों की मेहनत से बदली तस्वीर
आज बीसीसीआई के डब्ल्यूसीएआई के साथ विलय के कई साल बाद, महिलाओं का खेल बहुत ज्यादा बदला है. टीम ने कई विश्व कप में भाग लिया और डायना एडुल्जी, शांता रंगास्वामी, अंजुम चोपड़ा और मिताली राज जैसी खिलाड़ी प्रमुख शख्सियत बनकर उभरीं. साल 2005 का महिला क्रिकेट विश्व कप भारतीय महिला क्रिकेट के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. टीम फाइनल में पहुंची लेकिन ऑस्ट्रेलिया से हार गई. फिर भी, इस आयोजन ने भारत में महिला क्रिकेट की प्रतिष्ठा बढ़ाने में मदद की.
टी20 इंटरनेशन के आने से और महिला टी20 चैलेंज जैसी घरेलू टी20 लीग की लोकप्रियता के साथ, भारतीय महिला क्रिकेटरों को अपने कौशल दिखाने के लिए अधिक प्रदर्शन और अवसर मिले. भारतीय महिला क्रिकेट टीम 2017 में एक बाक फिर आईसीसी महिला विश्व कप के फाइनल में पहुंची. मिताली राज के नेतृत्व में, टीम ने शानदार टूर्नामेंट खेला, लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ करीबी मुकाबले में फाइनल हार गई. आज मिताली राज, हरमनप्रीत कौर, झूलन गोस्वामी, स्मृति मंधाना और पूनम यादव जैसी खिलाड़ी भारतीय महिला क्रिकेट में दिग्गज बन गई हैं. उनके प्रदर्शन ने न केवल टीम की सफलता में योगदान दिया है बल्कि युवा क्रिकेटरों की नई पीढ़ी को भी प्रेरित किया है.