Dutee Chand Birthday: कहानी उस धाविका की जिसने जूतों को गहना बना छू लिया पूरा आसमान

दो बार की ओलंपियन और 100 मीटर में नेशनल रिकॉर्ड बनाने वाली दुती चंद 2013 से भारतीय एथलेटिक्स के लिए एक इंजन रही हैं. दुती की कहानी से प्रेरित होकर कई युवा देश के लिए रेस लगाने का सपना देख रहे हैं. दुती चंद शुरू से ही बेहद शानदार प्रदर्शन करते हुए लोगों के दिल में जगह बनाने में कामयाब रही हैं. प्रोफेशनल और पर्सनल दोनों ही तौर पर वह देश की सबसे होनहार एथलीटों में से एक के रूप में उभरकर सामने आई हैं.

दुती चंद
नाज़िया नाज़
  • नई दिल्ली,
  • 03 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST
  • 2014 में जब दुती ने एशियन इवेंट में गोल्ड जीता था
  • दुती पर पुरुष होने के आरोप भी लगाए गए थे

खेलों के महाकुंभ में कई पर‍िंदों ने खूब ऊंचाई तय की है. कई चाहतों ने उस आकाश को छूआ भी है. ऐसा ही एक नाम है दुती चंद का. दुती महिलाओं के ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला हैं. जिस पर देश ही नहीं, फैमिली और गांव वालों को भी नाज़  था. लेकिन जब इस ऐथलीट ने अपनी लेस्बियन लव स्टोरी का खुलासा किया तो सब कुछ उल्टा हो गया था. अचानक से सब इस स्टार के खिलाफ हो गए थे. सारे अपने बेगाने हो गए थे. आज हम ये सब इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि आज यानी 3 फरवरी दुती का बर्थडे है.

गरीबी से लड़कर बनीं महिला धावक

ओड़िशा के जयपुर में जन्मी दुतीचंद (dutee chand) के गोल्ड मेडलिस्ट बनने का सफर आसान नहीं था. लेक‍िन दुती थी काफी बहादुर, तभी वो इतना सब कुछ कर पाईं. वरना एक गांव से निकलकर पूरी दुनिया में जगमगाना कहां आसान होता है.लब्बोलुआब ये है कि एक गरीब परिवार में पैदा  होकर और नौ सदस्यों के बीच रहकर अपना भविष्य बनाने वाली दुती के अंदर वो पागलपन था जो उनको इतना आगे लाया. दुती पागलों की तरह लगातार ट्रेनिंग करती थीं, कड़ी मेहनत करती थी. वो गांव की कच्ची सड़कों पर ही जॉगिंग करती थीं. एक बात सबसे अच्छी ये थी कि दुती को सही समय पर पता चल गया था कि गरीबी से बाहर आने का यही एक रास्ता है.

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सुदीप मिश्रा ने अपनी किताब  "फियर्सली फीमेल: द दुती चंद स्टोरी" में दुती की जो कहानी बताई है उसको पढ़ कर हर किसी का दिल कसमसाया जरूर है. सुदीप मिश्रा ने अपनी किताब में एक ऐसी खिलाड़ी की कहानी बताई है जिसने सबसे बुरे दिन भी देखे थे, जिसके घर में दो वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से बन पाता था. इसी परिवार में दुती के समलैंगिक रिश्तों को लेकर तनातनी भी रही. तो वहीं इस लड़की ने सिस्टम से भी अपने र‍िश्ते को लेकर जंग लड़ी. इसी वजह से दुती से राष्ट्रमंडल खेलों और एशियन गेम्स में खेलने का मौका छीन लिया गया.

जब जूतों को बनाया फेवरेट गहना

साल 2005 की बात है, जब दुती के लिए सफेद चमचमाते स्नीकर आए थे. वो मासूम लड़की घंटो उन जूतों को हाथ में लेकर निहारती रही, उसके दिमाग में एक ही बात चल रही होगी क‍ि भला इतने अच्छे जूते पैर में कैसे पहनूं. कीचड़ से खराब हो जाएंगे. दुती के लिए तो वो जूते कांच के कीमती खिलौने की तरह थे. लेकिन दुती जब इन जूतों को पहन कर दौड़ी... और क्या खूब दौड़ी. दौड़ खत्म होते ही दुती ने उन जूतों को नजाकत से साफ किया और अपनी अलमारी में रख दिया. 

जब झेला "तुम लड़की नहीं लड़का हो " वाला अपमान

2014 में जब दुती ने एशियन इवेंट में गोल्ड जीता था, ऐथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआई) ने उन्हें अनौपचारिक रूप से आखिरी मौके पर कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने के लिए ड्रॉप कर दिया था. वजह थी उन पर पुरुष होने का आरोप का लगाया जाना जिसे साइंटिफिक टर्म में हाइपरैंड्रोजेनिज्म कहते हैं. उस वक्त तक आईएएफ़ का एक नियम था जो अब बदला जा चुका है. पुराने नियम के मुताबिक़, जिस महिला धावक में मेल सेक्स हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरॉन की मात्रा ज़्यादा पाई जाती थी तो उसे हार्मोन ट्रीटमेंट के लिए कहा जाता था. उनके मुताबिक टेस्टोस्टेरॉन की ज़्यादा मात्रा से इस खेल में बेहतर धावक होने की क्षमता बढ़ जाती है.

इस टेस्ट को फ़ीमेल हाइपरएंड्रोजेनिज्म कहते हैं. जब दुती के ख़ून की जांच हुई तो वह इस टेस्ट में फ़ेल हो गईं और उनमें मेल सेक्स हार्मोन की मात्रा ज़्यादा पाई गई. इस पर आईएएफ ने उन्हें ट्रीटमेंट कराने की सलाह दी और वह 2014 के राष्ट्रमंडल खेल और एशियन गेम्स में नहीं खेल पाईं. लेकिन दुती ने तब भी हिम्मत नहीं हारी, और उन्होंने इस जंग को भी लड़ने का फैसला लिया. दुती ने स्विट्जरलैंड के कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स में केस किया. दुती ने 2015 में ये केस जीता भी और इसी बदौलत अब 100 मीटर रेस पर ये नियम लागू नहीं होता. लेकिन केस जीतने से पहले तक दुती को बहुत अपमान झेलना पड़ा.

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जब बहन ने भी छोड़ दिया था दुती का साथ

दुती की जिंदगी में उनकी बहन सरस्वती उनकी रोल मॉडल रही हैं. सरस्वती ने ही दुती को धाविका बनने का रास्ता दिखाया था. लेकिन जब दुती के समलैंगिक होने की बात बहन के सामने आई तो दोनों के रिश्तों में दूरी आ गई. 

वापसी के बाद दुती ने बनाया नैशनल रेकॉर्ड

दुती पर आईएएएफ के लगे बैन का खूब विरोध भी हुआ था. अच्छी बात ये रही कि  कोर्ट ऑफ अरबिट्रेशन ने उन्हें बड़ी राहत दी थी और आईएएएफ के स्टैंड को निराधार बताया और दुती को खेल के लिए योग्य बताया था. इसके बाद 2016 में दुती ने नई दिल्ली में फेडरेशन कप में हिस्सा लिया और नेशनल रेकॉर्ड बनाया था. 2016 के रियो ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करके वह ओलंपिक खेलों में महिलाओं के 100 मीटर दौड़ में ह‍िस्सा लेने वाली पांचवीं भारतीय एथलीट बनीं.

कुल मिलाकर कहें तो दुती खेलों की दुनिया का वो दस्तावेज, वो किस्सा हैं जिसके बिना खेल की दुनिया कभी पूरी नहीं हो पाती. वैसे कहने को तो दुती के बारे में ढेरों अच्छी अच्छी बाते हैं, लेकिन दुती के एक इंसान के तौर पर, उनके जज्बात के लिए, उनके प्यार और उनके सम्मान की बात करें तो कहीं ना कहीं हम पीछे रह गए हैं. हम एक समाज के तौर पर हार गए हैं. वो भी सिर्फ इसलिए की दुती प्राकृतिक तौर पर एक लेस्बियन थी. क्योंकि ये कहानी सिर्फ एक दुती चंद या एक लड़की की नहीं है ये कहानी हमारे समाज के उन सभी तबकों की हैं जो गे या लेस्बियन होने पर ऐसा अपमान झेलते हैं. 

 

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