उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी पीडीए के विस्तार का फॉर्मूला अपना रही है. अखिलेश यादव का पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानी PDA का नारा लोकसभा चुनाव में खूब हिट रहा. पीडीए के दम पर अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ बड़ी सफलता हासिल की और अब जब वह दिल्ली पहुंचे हैं तो PDA का विस्तार करने में जुट गए हैं. PDA के बाद अब अखिलेश यादव इसमें ब्राह्मण को भी जोड़ने लगे हैं. यानी PDA का एक्सटेंशन दिखाई देने लगा है. अखिलेश यादव ने यह प्रयोग दोनों सदनों में किया है.
समाजवादी पार्टी का पीडीए प्लस का फॉर्मूला-
लखनऊ के विधान मंडल दल में समाजवादी पार्टी की नियुक्तियों और संसद में संसदीय दल की अलग-अलग नियुक्तियों से यह साफ है कि अखिलेश यादव अब 2027 की तैयारी में PDA प्लस यानी पीडीए से आगे बढ़कर ABDP यानी अल्पसंख्यक, ब्राह्मण, दलित और पिछड़े का कंबीनेशन बनाने में जुट गए हैं.
असेंबली में अखिलेश यादव की रणनीति-
विधानसभा में सबको हैरत में डालते हुए अखिलेश यादव ने नेता विपक्ष के तौर पर माता प्रसाद पांडे को चुन लिया, जो ब्राह्मण बिरादरी से आते हैं और पुराने समाजवादी हैं. मुलायम सिंह यादव के नजदीकी और संस्थापक सदस्यों में रहे माता प्रसाद कई बार के विधायक और मंत्री हैं. अखिलेश यादव ने उन्हें सदन में अपनी पार्टी का नेता और नेता विपक्ष चुन दिया.
दूसरी नियुक्तियों में मुस्लिम समाज से आने वाले महबूब अली को मुख्य सचेतक और कमाल अख्तर को उपमुख्य सचेतक बनाकर अपने मुस्लिम वोट बैंक को मैसेज दिया. कुर्मी बिरादरी से आने वाले आरके वर्मा को उप सचेतक और मोहम्मद जसमेर अंसारी को विधायक दल का उपनेता बना दिया.
अखिलेश यादव ने अपने यादव वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिए लाल बिहारी यादव को विधान परिषद में सदन का नेता बनाया तो
विधान परिषद में किरण पाल कश्यप को मुख्य सचेतक और कायस्थ जाति से आने वाले आशुतोष सिंह को सचेतक का पद दिया.
ऐसे में विधानसभा और विधान परिषद में अखिलेश यादव ने जातियों का एक गुलदस्ता बनाया है. जिसमें उनका पीडीए प्लस की तस्वीर दिखाई दी.
पीडीए से आगे बढ़कर उन्होंने इसमें ब्राह्मण और कायस्थ को जोड़ने की कोशिश की है. यह वह दोनों जातियां हैं, जो बीजेपी की वोट बैंक मानी जाती है और अब अखिलेश उन्हें भी अपनी ओर खींचने की कोशिश में लगे हैं.
संसद में समाजवादी पार्टी की रणनीति-
अखिलेश यादव जब संसद पहुंचे तो अपने साथ हाथों में हाथ डालकर अवधेश प्रसाद को संसद भवन ले गए. जो हमेशा अखिलेश यादव के बगल में आगे की पंक्ति में बैठते हैं. अखिलेश यादव ने यहां से दलित के पासी बिरादरी को संदेश दिया. यह वह दलित बिरादरी है जो ज्यादातर पिछले एक दशक से बीजेपी के साथ रही है. लेकिन अब अखिलेश दलितों में पासी बिरादरी को सीधा संदेश भेज रहे हैं.
कुशवाहा या मौर्य बिरादरी जो की मायावती से छिटकी तो बीजेपी के पास आई. लेकिन कुशवाहा बिरादरी के बड़े चेहरे बाबू सिंह कुशवाहा को जौनपुर से सांसद बनने के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें लोकसभा में सदन का उपनेता बना दिया यानी अखिलेश यादव के बाद उनका नंबर दूसरा होगा. वहीं आजमगढ़ से सांसद और अपने भाई धर्मेंद्र यादव को उन्होंने लोकसभा में मुख्य सचेतक बनाया. जबकि अवधेश प्रसाद को अधिष्ठाता मंडल का सदस्य बना दिया है.
कुल मिलाकर अपनी पार्टी के भीतर विधान मंडल और संसद में जो अखिलेश यादव ने नियुक्तियां की है. यह उनके पीडीए के फार्मूले को आगे बढ़ाने की कवायद दिखाई दे रही है.
अखिलेश यादव पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यकों के बाद अब अगड़ी जातियों को भी साधते दिखाई दे रहे हैं. उनके रणनीति में वह ब्राह्मण वोट है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि वह धीरे-धीरे यूपी में बीजेपी से नाराज हो रहा है. ऐसे में कांग्रेस को साथ लेने के बाद अब अखिलेश यादव ब्राह्मण बिरादरी को साधने में जुट गए हैं और उन्हें लगता है कि 2027 में अगर पीडीए से आगे बढ़कर उन्होंने इन बिरादरियों को साध लिया तो उनके लिए जीत का फार्मूला आसान हो जाएगा.
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