हाल ही में, भारत की वैशाली रमेशबाबू ने स्पेन में IV एल लोब्रेगेट ओपन टूर्नामेंट में एफएम टैमर सेलेब्स को हराया. जीत ने उन्हें भारत की 84वीं ग्रैंडमास्टर का दर्जा दिला दिया. कोनेरू हम्पी (जो 2002 में 15 साल की उम्र में वहां पहुंची थीं) और हरिका द्रोणावल्ली (जो 2011 में 20 साल की उम्र में जीएम बनी थीं) के बाद वैशाली ग्रैंडमास्टर खिताब हासिल करने वाली भारत की तीसरी महिला बन गईं हैं.
22 वर्षीय वैशाली ने रेटिंग को पार करने के लिए दूसरे राउंड में तुर्की के एफएम टैमर तारिक सेलेब्स (2238) को हराया है और लगातार दो जीत के साथ टूर्नामेंट की शुरुआत की है. अब वह टूर्नामेंट जीतने पर फोकस कर रही हैं. लेकिन ग्रैंड मास्टर के खिताब से वह बहुत खुश हैं.
भाई-बहन की जोड़ी का कमाल
इस उपलब्धि के साथ, वैशाली और उनके छोटे भाई, रमेशबाबू प्रगनानंद, इतिहास में पहली ग्रैंडमास्टर भाई-बहन की जोड़ी बन गए हैं. वे उम्मीदवार बनने वाले पहले भाई-बहन की जोड़ी भी बन गए हैं. शतरंज में वैशाली की यात्रा उनके भाई प्रज्ञानंद के साथ जुड़ी हुई है. दोनों ने लगातार समानांतर सफलता हासिल की है, विभिन्न प्रतियोगिताओं में समान पदक अर्जित किए हैं, जैसे ओलंपियाड में डबल ब्रॉन्ज और एशियाई खेलों में डबल सिल्वर.
वैशाली का शतरंज से परिचय उनके पिता रमेशबाबू ने कराया था, जो खुद एक शौकीन शतरंज खिलाड़ी थे. अपनी बेटी की क्षमता को पहचानकर उन्होंने उसे पांच साल की उम्र से ही शतरंज की कोचिंग के लिए भेज दिया. वह तेजी से आगे बढ़ी और अपने आयु वर्ग में वैशाली ने कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट जीते.
ग्रैंडमास्टर आरबी रमेश ने किया तैयार
वैशाली और प्रज्ञानंद के शुरुआती कदमों पर उन्हें ग्रैंडमास्टर आरबी रमेश के तहत प्रशिक्षण मिला. दोनों भाई-बहन को बहुत पहले ही चेन्नई की ब्लूम शतरंज अकादमी में भेज दिया गया था. उन्होंने पहले ही अकादमी में खेल की बुनियादी बारीकियां सीख ली थीं. लेकिन अब उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो उनके दिमाग को तराश सके. और यह मेंटर बने आरबी रमेश.
साल 2015 में, वैशाली ने अंडर-14 लड़कियों की श्रेणी में एशियाई युवा शतरंज चैंपियनशिप जीतकर अंतरराष्ट्रीय शतरंज परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़ी. इसी दौरान उन्हें इंटरनेशनल मास्टर (आईएम) की उपाधि भी मिली. अंतर्राष्ट्रीय मास्टर से तीसरी ग्रैडमास्टर बनने में उन्हें कई साल लग गए लेकिन उनकी मेहनत लगातार जारी है.