पेरिस ओलंपिक 2024 के बाद अब भारतीय खिलाड़ी पेरिस पैरालंपिक 2024 (Paris Paralympics 2024) में पदक जीतने के लिए तैयार हैं. पेरिस पैरालंपिक 2024 का आगाज 28 अगस्त को हुआ. इसका समापन 8 सितंबर 2024 को होगा. पेरिस पैरालंपिक में भारत के कुल 84 खिलाड़ी 12 खेलों में हिस्सा ले रहे हैं.
इससे पहले टोक्यो में साल 2020 खेले गए पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने 5 स्वर्ण, 8 रजत और 6 कांस्य सहित कुल 19 पदक जीते थे. इस बार पदकों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पैरांलपिक में भारत के पहले पदक विजेता कौन हैं? यदि नहीं तो हम बता रहे हैं. भारत के लिए सबसे पहले पैरांलपिक में मुरलीकांत पेटकर ने पदक जीता था. मुरलीकांत पेटकर पर कबीर खान ने अभिनेता कार्तिक आर्यन को लेकर बायोपिक बनाई है. चंदू चैंपियन नाम की यह फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आई. आइए आज मुरलीकांत पेटकर के बारे में जानते हैं.
इस तरह आर्मी किए थे ज्वाइन
मुरलीकांत पेटकर का जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले के पेठ इस्लामापुर गांव में 1 नवंबर 1944 को हुआ था. उन्हें बचपन से खेलों में रुचि थी, लेकिन हॉकी और कुश्ती में उनकी खास दिलचस्पी थी. जब मुरलीकांत पेटकर 12 साल के थे तो उन्होंने कुश्ती के एक मुकाबले में गांव के मुखिया के बेटे को हरा दिया था. इस कुश्ती को जीतने के बाद पेटकर और उनके घरवालों को जान से मारने की धमकी मिलने लगी. इसके कारण मुरलीकांत पेटकर गांव छोड़कर भाग गए. भागने के बाद वह आर्मी में भर्ती हो गए.
आर्मी में रहते हुए सीखी बॉक्सिंग
मुरलीकांत पेटकर की आर्मी ज्वाइन करने के बाद खेलों के प्रति उनकी रुचि कम नहीं हुई है. वह भारतीय सेना के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) कोर में क्राफ्ट्समैन के पद पर तैनात थे. पेटकर ने आर्मी में रहते हुए अपने हुनर को और तराशा. वहां रहकर मुरली ने बॉक्सिंग सीखी. उन्होंने साल 1964 में टोक्यो में आयोजित इंटरनेशनल स्पोर्ट्स मीट में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व किया. यहां उन्होंने बॉक्सिंग में मेडल जीता था.
मुरलीकांत पेटकर के लाइफ में 1965 में आया नया मोड़
साल 1965 में मुरलीकांत पेटकर के लाइफ में नया मोड़ आया. मुरलीकांत मेडल जीतकर जब अपने बेस पर वापस गए तो उन्हें देश की सेवा के लिए जम्मू-कश्मीर भेजा गया. साल 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान के युद्ध में मुरलीकांत पेटकर ने भी हिस्सा लिया. इस युद्ध में पेटकर की जांघ, गाल, खोपड़ी और रीढ़ में कुल नौ गोलियां लगीं.
युद्ध में घायल होने के बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया. मुरलीकांत इतनी बुरी तरह घायल हुए थे कि उनकी याददाश्त तक चली गई थी. एक गोली उनकी रीढ़ की हड्डी में फंस गई थी, जिसके कारण वह घुटने से नीचे पैरालाइज हो गए. पेटकर लगभग एक साल तक कोमा में रहे और दो साल तक बिस्तर पर रहे. इस बड़े हादसे के बाद भी पेटकर ने अपनी उम्मीद नहीं खोई.
पैरालंपिक में भारत के लिए जीता गोल्ड
शरीर का निचला हिस्सा पैरालाइज होने के बाद मुरलीकांत पेटकर को डॉक्टर ने तैराकी करने की सलाह दी थी. फिर उन्होंने स्विमिंग शुरू की और उन्होंने तैराकी को अपना खेल बना लिया. साल 1972 में जर्मनी में समर पैरालंपिक खेलों का आयोजन हुआ था. इसमें भारत की तरफ से मुरलीकांत पेटकर ने भी हिस्सा लिया. पैरालंपिक में उन्होंने स्विमिंग में हिस्सा लिया था. 50 मीटर फ्रीस्टाइल इवेंट में गोल्ड मेडल जीता था. उन्होंने जीत दर्ज करने के लिए 37.33 सेकेंड का समय निकाला था, जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था.
इस तरह से मुरलीकांत पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने. देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर दिया. आपको मालूम हो कि समर पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लेने से दो साल पहले पेटकर ने स्कॉटलैंड में कॉमनवेल्थ पैराप्लेजिक खेलों में हिस्सा लिया था. वहां उन्होंने 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्विमिंग में गोल्ड मेडल जीता था. मुरलीकांत पेटकर साल 1969 में आर्मी से रिटायर हुए थे. साल 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. पेटकर के नाम अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में 12 गोल्ड, नेशनल कॉम्पिटिशन में 34 गोल्ड और स्टेट लेवल पर 40 गोल्ड मेडल शामिल हैं.