अज़रबैजान के लिए कुश्ती खेलने वाले जियोर्जिया के पहलवान जियोर्जी मेशविलदिशविल्ली ने हाल ही में यूरोपियन कुश्ती चैंपियनशिप जीतकर अपने आपको यूरोप के चोटी के पहलवानों में शामिल कर लिया. जियोर्जी ने पिछले साल 32 साल की उम्र में पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था.
जियोर्जी ने पिछले तीन सालों में सात इंटरनेशनल मेडल जीते हैं. उन्होंने विश्व कुश्ती में अपनी धाक जमाना भले ही हाल ही में शुरू की हो, लेकिन इसकी तैयारी 10 साल पहले भारत की मिट्टी में शुरू हो गई थी. जियोर्जी भारत के कुश्ती सर्किट का एक अहम हिस्सा रहे हैं और उनके चैंपियन बनने की कहानी यहीं से शुरू हुई थी.
ट्रैक्टर, मोटरसाइकल के लिए कुश्ती खेलते थे जियोर्जी
जियोर्जी भारत में पिछले एक दशक से कुश्ती टूर्नामेंट्स में हिस्सा ले रहे हैं. उन्होंने इतने टूर्नामेंट्स खेले हैं कि अब भारत के कुश्ती सर्किट में लोग उन्हें पहचानने लगे हैं. ये राष्ट्रीय स्तर के कॉम्पिटीशन नहीं होते थे, बल्कि मिट्टी पर खेले जाने वाले दंगल होते थे जहां ईनाम में भी गांव का तड़का लगा होता था.
स्पोर्टस्टार की एक रिपोर्ट जियोर्जी के हवाले से बताती है कि वह भारत में जिन कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते थे उनमें ईनाम के तौर पर ट्रैक्टर, बुलेट मोटरसाइकल और बैल दिए जाते थे. जियोर्जी कहते हैं, "मुझे भारतीय दंगल बहुत पसंद हैं. बहुत अच्छे मैच होते हैं. एकदम ग्लैडियेटर जैसा महसूस होता है."
जियोर्जी 'जॉर्जिया' के नाम से मशहूर
यूट्यूब पर व्यापक रूप से उपलब्ध और सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने वाले मुकाबलों में इस पहलवान को 'जॉर्जिया के जियोर्जी' के नाम से पहचाना जाता है. जियोर्जी जस्सा पट्टी, सिकंदर शेख और प्रीतपाल सिंह जैसे बड़े भारतीय नामों के खिलाफ कुश्ती लड़ चुके हैं. उन्होंने पंजाब, हरियाणा, जम्मू और महाराष्ट्र के गांवों में ढोल के शोर के बीच चिल्लाती भीड़ के सामने लंगोट पहनकर मिट्टी पर कई दंगल खेले हैं.
जियोर्जी भले ही आज यूरोप के चैंपियन हैं लेकिन भारत में उनकी शुरुआत बहुत अच्छी नहीं हुई थी. यूट्यूब पर मौजूद एक वीडियो में देखा जा सकता है कि जस्सा पट्टी ने महज़ एक मिनट में जियोर्जी को चित्त कर दिया था. हालांकि वह भारत आते रहे. सीखते रहे. और अपने भारत के हालिया दौरे पर उन्होंने जस्सा को मात भी दी थी.
इस अखाड़े की रही अहम भूमिका
जियोर्जी जब भी भारत आए तो उन्होंने पंजाब के मुलानपुर में मौजूद विश्वकर्मा महावीर अखाड़े में अभ्यास किया है. यानी उन्हें वर्ल्ड क्लास रेसलर बनाने में इस अखाड़े की अहम भूमिका रही है. स्पोर्टस्टार की रिपोर्ट इस अखाड़े के संस्थापक विजय शर्मा उर्फ गोलू पहलवान के हवाले से कहती है, "जब वह पहली बार भारत आए थे तो इतने मशहूर पहलवान नहीं थे, जितने अब हैं."
दरअसल गोलू पहलवान ने यह अखाड़ा 2012 में शुरू किया था. वह जॉर्जिया के कोच व्लादिमीर मेस्तरविशविली को पहली बार भारत लाए थे. मेस्तरविशविली अपने साथ-साथ जॉर्जिया के कई पहलवानों को भारत लाए. उन्हीं में से एक थे जियोर्जी. गोलू पहलवान बताते हैं कि जियोर्जी दरअसल एक अलग माहौल में ढलने के इरादे से भारत आए थे लेकिन यहां आकर उन्होंने दंगल में हाथ आज़माने का फैसला किया.
भारत में रहने के दौरान जियोर्जी ने न सिर्फ दंगल खेलना सीखा, बल्कि अब उन्हें चपाती खाना भी पसंद है. साथ ही उन्होंने मेडिटेशन करना भी शुरू कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय करियर में चमकने के बाद जियोर्जी भारत नहीं लौटे हैं. लेकिन उन्होंने भारत आने की बात से इनकार नहीं किया है. गोलू पहलवान बताते हैं, "मैं अब भी जियोर्जी के टच में हूं. वह भारत आ सकता है. 50-50 चांस हैं."