जैसे ही दिल्ली में सर्दियों का मौसम आता है, वैसे ही यहां की हवा में प्रदूषण बढ़ने लगता है. इसी को देखते हुए इस साल, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय (Delhi’s Environment Minister Gopal Rai) ने एक बार फिर केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि प्रदूषण से लड़ने के लिए आपातकालीन उपाय के रूप में क्लाउड सीडिंग पर विचार किया जाए.
दिवाली के दौरान जब दिल्ली की एयर क्वालिटी बेहद खराब स्तर पर पहुंच जाती है, तो आर्टिफिशियल बारिश से इसे कंट्रोल करने की चर्चा तेज हो जाती है. लेकिन क्लाउड सीडिंग (Cloud seeding) आखिर है क्या? इसे अमेरिका और चीन जैसे देशों में कैसे इस्तेमाल किया गया है, और भारत में इसके सामने क्या चुनौतियां हैं?
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक वेदर मॉडिफिकेशन टेक्निक (weather modification technique) है यानि इसमें मौसम में कुछ बदलाव किए जाते हैं, ये आर्टिफिशियल तरीके से होते हैं. इसका उद्देश्य बादलों में मौजूद नमी को बढ़ाकर बारिश करवाना होता है. इसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, और सोडियम क्लोराइड जैसी चीजों का उपयोग किया जाता है. ये सभी बर्फ के छोटे पार्टिकल की तरह काम करते हैं, जो नमी को इकट्ठा करते हैं और फिर बारिश का रूप ले लेते हैं. क्लाउड सीडिंग का मुख्य उद्देश्य बारिश करना होता है.
क्लाउड सीडिंग कैसे काम करता है?
क्लाउड सीडिंग की थ्योरी ये होती है कि बादलों की बारिश करने की क्षमता को बढ़ाया जाए. इसके लिए, पहले से ही बादल मौजूद होने चाहिए जिनमें नमी हो, लेकिन बारिश करने के लिए उन्हें थोड़ा और प्रेशर डालना पड़ता है. एयरक्राफ्ट या ग्राउंड जनरेटर से बादलों में सीडिंग मटेरियल छोटा जाता है, जो पानी की बूंदों के आकार को बढ़ते हैं. जब ये बूंदें भारी हो जाती हैं, तो वे बारिश के रूप में गिरने लगती हैं.
सिल्वर आयोडाइड और दूसरे मटेरियल बादलों में ठंडी पानी की बूंदों को बनने में मदद करते हैं. ये बूंदें भारी हो जाती हैं और फिर बारिश के रूप में गिरने लगती हैं. क्लाउड सीडिंग का मेथड सफल होगा या नहीं ये कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे बादलों की उपस्थिति, ह्यूमिडिटी, और मौसम.
क्लाउड सीडिंग कहां-कहां इस्तेमाल की गई है?
क्लाउड सीडिंग कोई नई तकनीक नहीं है. इसका उपयोग अमेरिका, चीन, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में किया जा चुका है. इसका इस्तेमाल सूखा कम करने, बर्फबारी बढ़ाने और ओलों की तीव्रता को कम करने के लिए किया जाता है.
-अमेरिका में क्लाउड सीडिंग
अमेरिका में क्लाउड सीडिंग का उपयोग मुख्य रूप से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में बारिश बढ़ाने के लिए किया जाता है. कैलिफोर्निया और टेक्सास जैसे राज्यों ने पानी की कमी के दौरान क्लाउड सीडिंग की जाती है. इसके अलावा, नेवादा और कोलोराडो ने बर्फबारी को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया था.
-चीन में क्लाउड सीडिंग
चीन क्लाउड सीडिंग तकनीक का व्यापक उपयोग करने वाले प्रमुख देशों में से एक है. 2008 बीजिंग ओलंपिक के दौरान मौसम को ठीक करने के लिए इसका उपयोग किया गया था.
-रूस और दूसरे देश
रूस ने भी क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया है. 2015 में, रूस ने मॉस्को के मौसम को साफ करने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया था. संयुक्त अरब अमीरात जैसे कई मध्य पूर्वी देशों ने भी सूखा रोकने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक को अपनाया था.
भारत में क्लाउड सीडिंग का इतिहास
भारत में क्लाउड सीडिंग का इतिहास 1950 के दशक से शुरू होता है जब बारिश बढ़ाने के लिए एक्सपेरिमेंट किए गए थे. 1980 और 1990 के दशक में, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने सूखे और पानी की कमी से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीकों का उपयोग किया था. महाराष्ट्र ने विशेष रूप से मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में इसे अपनाया था.
2017 में, कर्नाटक ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों में बारिश बढ़ाने के लिए एक बड़े क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन "प्रोजेक्ट वर्षाधारी" को लॉन्च किया था.
2018 में पहली बार दिल्ली के प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए क्लाउड सीडिंग पर विचार किया गया था, लेकिन इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं मिली थी. अब एक बार फिर से इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है.
क्लाउड सीडिंग से दिल्ली के प्रदूषण में कैसे कमी लाई जा सकती है?
दिल्ली को सर्दियों के महीनों में हवा बहुत प्रदूषित हो जाती है. एक मोटी धुंध शहर को ढक लेती है. इसमें गाड़ियों का धुंआ, पराली, पटाखे आदि सब शामिल होते हैं.
आर्टिफिशियल रूप से बारिश कराने से इस प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है. जब बारिश होती है, तो हवा में मौजूद प्रदूषित चीजें पानी की बूंदों में घुलकर जमीन पर गिर जाती हैं, जिससे हवा साफ हो जाती है,
क्लाउड सीडिंग के साथ हैं कई चुनौतियां
हालांकि क्लाउड सीडिंग को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियों और संभावित नुकसान भी हैं:
-भारत में क्लाउड सीडिंग के लिए कई लेवल पर अप्रूवल लेना होता है. जैसा कि दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने सितंबर में बताया था कि दिल्ली सरकार को पहले ही कई केंद्रीय एजेंसियों से मंजूरी लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. इसमें नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) आदि शामिल हैं.
-क्लाउड सीडिंग केवल तभी की जा सकती है जब आसमान में बादल हों. दिल्ली में विशेष रूप से नवंबर के दौरान, जब प्रदूषण अपने चरम पर होता है, बादल कम होते हैं. बिना बादलों के, क्लाउड सीडिंग संभव नहीं है.
-क्लाउड सीडिंग एक महंगी प्रक्रिया है. इसमें एयरक्राफ्ट, सीडिंग मटेरियल से जुड़ा खर्चा होता है. हालांकि दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग के लिए पैसों की व्यवस्था करने की बात कही है, लेकिन यह एक महंगा उपाय है.
-हालांकि क्लाउड सीडिंग को एक सुरक्षित तकनीक मानी जाती है, लेकिन सिल्वर आयोडाइड के उपयोग को लेकर कुछ पर्यावरणीय चिंताएं भी हैं.
दिल्ली अपनी बिगड़ती वायु गुणवत्ता से जूझ रही है, इसलिए प्रदूषण को कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग एक संभावित उपाय हो सकता है. इससे दिल्ली में जहरीली हवा से पीड़ित लाखों लोगों को अस्थायी राहत मिल सकती है.