क्या आपने कभी सोचा कि एक भारी-भरकम पुल का टुकड़ा आसमान में कैसे उठ सकता है? या फिर समुद्र के बीच बना एक रेलवे ब्रिज जहाजों को रास्ता देने के लिए कैसे खुल जाता है? अगर नहीं, तो आज हम आपको ले चलते हैं "बेस्क्युल तकनीक" की उस हैरान करने वाली दुनिया में, जिसने भारत के पहले समुद्री पुल- पंबन ब्रिज को इतना खास बनाया.
बेस्क्युल तकनीक के नाम में ही छुपा है रहस्य
"बेस्क्युल" शब्द सुनते ही दिमाग में कुछ जटिल सा लगता है, है ना? लेकिन इसका मतलब बेहद आसान है. ये शब्द फ्रेंच भाषा से आया है, जिसका अर्थ है "सी-सॉ" या "झूला". यानी, ये एक ऐसी तकनीक है जो पुल के एक हिस्से को झूले की तरह ऊपर उठाती है. इसका मकसद है कि नीचे से जहाज या नावें आसानी से गुजर सकें. इस तकनीक में एक भारी काउंटरवेट (प्रतिभार) का इस्तेमाल होता है, जो पुल के हिस्से को संतुलित करता है और उसे ऊपर-नीचे करने में मदद करता है.
सोचिए, एक विशाल स्टील का ढांचा, जो सैकड़ों टन वजन का होता है, वो चंद मिनटों में हवा में उठ जाए और फिर वापस अपनी जगह पर आ जाए- ये है बेस्क्युल तकनीक का कमाल! भारत में इसका सबसे शानदार उदाहरण है तमिलनाडु का पंबन ब्रिज, जिसके पुराने वर्जन में डबल-लीफ बेस्क्युल डिजाइन ने लोगों को हैरत में डाला था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये तकनीक सैकड़ों साल पुरानी है?
मध्यकाल से शुरू हुआ सफर
बेस्क्युल तकनीक का इतिहास मध्यकालीन यूरोप तक जाता है. उस दौर में, जब नदियों और समुद्रों पर व्यापार बढ़ने लगा, तो जरूरत पड़ी ऐसी संरचनाओं की, जो यातायात और नौवहन दोनों को संभाल सकें. मध्यकाल में बने किले और महल अक्सर खाई से घिरे होते थे, और इन खाइयों पर ड्रॉब्रिज (खुलने वाले पुल) बनाए जाते थे. ये ड्रॉब्रिज बेस्क्युल तकनीक का शुरुआती रूप थे. इन्हें रस्सियों और चरखियों से हाथों से उठाया जाता था, ताकि दुश्मन अंदर न घुस सकें और जरूरत पड़ने पर अपने लोग आ-जा सकें.
18वीं और 19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने इस तकनीक को नया रूप दिया. लोहे और स्टील के इस्तेमाल ने बेस्क्युल पुलों को पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और बड़े पैमाने पर बनाने की राह खोली. इस दौरान यूरोप और अमेरिका में कई मशहूर बेस्क्युल पुल बने, जैसे लंदन का टावर ब्रिज. लेकिन भारत में इस तकनीक की एंट्री हुई 20वीं सदी की शुरुआत में, जब ब्रिटिश इंजीनियरों ने पंबन ब्रिज को डिजाइन किया.
पंबन ब्रिज और बेस्क्युल का जादू
24 फरवरी, 1914 को जब पंबन ब्रिज का उद्घाटन हुआ, तो ये भारत का पहला समुद्री पुल था. 2.065 किलोमीटर लंबा ये पुल मंडपम को रामेश्वरम से जोड़ता है. इसमें 143 खंभों के साथ एक डबल-लीफ बेस्क्युल सेक्शन था, जिसे जर्मन इंजीनियर शेरजर ने डिजाइन किया था. इस हिस्से को "शेरजर रोलिंग लिफ्ट" कहा जाता था, जो जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए खुलता था. हर पत्ते का वजन 415 टन था, और इसे मैन्युअल लीवर से खोला जाता था.
सोचिए उस दौर को- कोई हाइड्रॉलिक सिस्टम नहीं, कोई ऑटोमेशन नहीं, फिर भी मजदूरों और इंजीनियरों की मेहनत से ये विशाल ढांचा हर दिन खुलता और बंद होता था. ये तकनीक उस समय की सबसे उन्नत इंजीनियरिंग का नमूना थी. पंबन ब्रिज ने न सिर्फ व्यापार को बढ़ावा दिया, बल्कि रामेश्वरम के तीर्थयात्रियों के लिए भी एक नई राह खोली. लेकिन क्या ये तकनीक सिर्फ पंबन तक सीमित रही? बिल्कुल नहीं!
दुनिया भर में बेस्क्युल तकनीक
बेस्क्युल तकनीक आज भी दुनिया भर में इस्तेमाल होती है. लंदन का टावर ब्रिज इसका सबसे मशहूर उदाहरण है. 1894 में बना ये पुल अपने डबल-लीफ बेस्क्युल डिजाइन के लिए जाना जाता है. हर साल लाखों पर्यटक इसे देखने आते हैं. अमेरिका में शिकागो नदी पर कई बेस्क्युल पुल हैं, जो शहर के व्यस्त जलमार्गों को संभालते हैं. पुर्तगाल का डोम लुइस प्रथम ब्रिज और नीदरलैंड के कई छोटे बेस्क्युल पुल भी इस तकनीक के शानदार नमूने हैं.
इन पुलों की खासियत ये है कि ये न सिर्फ实用 हैं, बल्कि देखने में भी बेहद आकर्षक होते हैं. जब ये खुलते हैं, तो ऐसा लगता है मानो कोई विशाल मशीन जादू दिखा रही हो. लेकिन इनके पीछे की इंजीनियरिंग आसान नहीं होती. तो आइए, इसके तकनीकी पहलू को समझते हैं.
कैसे काम करती है बेस्क्युल तकनीक?
बेस्क्युल तकनीक का मूल सिद्धांत संतुलन पर टिका है. इसमें दो मुख्य हिस्से होते हैं - एक जो ऊपर उठता है (स्पैन) और दूसरा जो इसे संतुलित करता है (काउंटरवेट). काउंटरवेट का वजन इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि स्पैन को उठाने में ज्यादा ताकत न लगे. पुराने समय में इसे हाथों से या साधारण मशीनों से चलाया जाता था, लेकिन आजकल हाइड्रॉलिक सिस्टम और इलेक्ट्रिक मोटरों का इस्तेमाल होता है.
पंबन ब्रिज के पुराने संस्करण में मैन्युअल सिस्टम था, जहां मजदूर लीवर को घुमाकर स्पैन को उठाते थे. लेकिन नए पंबन ब्रिज (2025 में उद्घाटन हुआ) में आधुनिक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम है, जो इसे सिर्फ 5 मिनट में 17 मीटर ऊपर उठा सकता है. ये तकनीक इतनी सटीक होती है कि भारी-भरकम ढांचा भी आसानी से संभल जाता है.
आसान नहीं होता इसे बनाना
बेस्क्युल पुल बनाना आसान नहीं है. समुद्र के बीच में काम करने का मतलब है तेज हवाएं, ऊंची लहरें और जंग की समस्या. पंबन ब्रिज के पुराने संस्करण को 108 साल तक चलाने के बाद 2022 में बंद करना पड़ा, क्योंकि समुद्री नमी ने इसे कमजोर कर दिया था. नए पुल में एंटी-कोरोजन तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, ताकि ये लंबे समय तक टिके.
इसके अलावा, भूकंप और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी चुनौती होती हैं. पंबन का इलाका चक्रवातों के लिए मशहूर है, और 1964 के रामेश्वरम चक्रवात ने पुराने पुल को भी प्रभावित किया था. इसलिए नए डिजाइनों में इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है.
अब 6 अप्रैल, 2025 को रामनवमी के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया. ये भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट समुद्री रेलवे ब्रिज है, जो पुरानी बेस्क्युल तकनीक को आधुनिक रूप देता है. इसके 72.5 मीटर लंबे स्पैन को 17 मीटर ऊपर उठाया जा सकता है, जिससे बड़े जहाज गुजर सकते हैं.