कभी आपके मन में ख्याल आए कि बिना टीवी का रिमोट दबाए ही टीवी चल जाए...या बिस्तर पर लेटे-लेटे पंखा चल जाए.. लाइट जल जाए... तो कंप्यूटिंग की दुनिया में ऐसा जल्द ही हो सकेगा. इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए कंपनियां ब्रेन कंप्यूटिंग इंटरफेस तकनीक पर काम कर रही हैं. एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक इस साल बीसीआई का ह्यूमन ट्रायल शुरू करने वाली है.
क्या है ब्रेन कंप्यूटिंग इंटरफेस तकनीक
आपकी सोच को एक्शन में तब्दील करने की तकनीक को ब्रेन कंप्यूटिंग इंटरफेस कह सकते हैं. इसके लिए आपके दिमाग में स्टेंट्रोड नाम की एक चिप लगाई जाएगी. जोकि आपके दिमाग को सिग्नल भेजेगा और आप वो कर सकेंगे जो आपने सोचा है. इस तकनीक के जरिए किसी दिव्यांग या लकवाग्रस्त व्यक्ति को बातचीत करने या कोई काम करने में मदद मिल सकती है. ब्रेन कंप्यूटिंग इंटरफेस में दिमाग की इलेक्ट्रिकल गतिविधियों और बाहरी डिवाइस के बीच सीधे संचार से जुड़ना शामिल है.
कैसे काम करेगी ये तकनीक
इंसान के दिमाग में स्टेंट्रोड नाम की चिप लगाई जाएगी और इसी के जरिए ये संचालित होगी. ये चिप दिमाग से मिलने वाले संकेतों को स्टोर करके डिवाइस तक पहुंचाएगी, चिप में डेटाबेस मौजूद रहेगा, ऐसे में जब कोई व्यक्ति कुछ भी करने का सोचेगा तो चिप सक्रिय हो जाएगी और चिप को पता चलेगा कि व्यक्ति क्या करना चाहता है. इसके बाद चिप डिवाइस को सिग्नल भेजकर सोच को एक्शन में तब्दील किया जा सकेगा. वैसे तो यह तकनीक अपनी ट्रायल के दौर में है, लेकिन कुछ टेक कंपनियां ब्रेन इम्प्लांट का प्रयोग भी कर रही हैं.
किन लोगों को मिलेगी मदद
व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले लोगों को मदद मिलेगी. इसके जरिए इंसान सिर्फ सोचेगा कि उसे व्हीलचेयर खिसकानी है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस व्हीलचेयर उसकी उसकी सोच के मुताबिक मूव करेगी. इसके अलावा लकवाग्रस्त लोग सोच कर अपने काम आसान कर पाएंगे. बोलने में असमर्थ लोग आसानी से इसके जरिए बातचीत कर पाएंगे.
रोजमर्रा के काम आसान हो जाएंगे, आप बिस्तर पर बैठे-बैठे केवल सोचकर ही अपने काम को अंजाम दे पाएंगे. कंप्यूटर से जुड़ी किसी भी चीज को चलाने के लिए एक्टिविटी की जरूरत नहीं रह जाएगी. आदमी सोचेगा और चीज काम करेगी.