जरा सोचिए अगर आप केवल सोचने से ही अपने डिवाइसेज जैसे फोन और कंप्यूटर कंट्रोल कर लें? जी हां, ऐसा मुमकिन है. एलन मस्क की कंपनी ने एक ऐसी चिप बनाई है जिसको इंसान के दिमाग में लगाया जा सकता है. उसकी मदद से वो अपने डिवाइसेज कंट्रोल कर सकता है. एलन मस्क ने मंगलवार को इसकी घोषणा कर दी है. उनकी कंपनी न्यूरालिंक ने एक मरीज में पहली ब्रेन चिप सफलतापूर्वक इम्प्लांट कर दी है. एलन मस्क का उद्देश्य टेलीपैथी की क्षमता को देखना है. इसकी मदद से व्यक्तियों को मानसिक रूप से संवाद करने की अनुमति मिल सकती है.
शुरुआती परिणाम हैं आशावादी
एलन मस्क ने "आशाजनक न्यूरॉन स्पाइक डिटेक्शन" का हवाला देते हुए शुरुआती परिणामों को आशावादी बताया है. ये एक्सपेरिमेंट न्यूरोटेक्नोलॉजी और ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस के क्षेत्र में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है.
न्यूरालिंक की ब्रेन चिप का नाम इसकी टेलीपैथिक क्षमताओं के नाम पर रखा गया है. इसकी मदद से ऐसे लोगों की सहायता हो सकेगी जो बोल और सुन नहीं सकते हैं. ब्रेन को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से जोड़कर, ये इम्प्लांट शारीरिक विकलांग लोगों को अपनी बात कहने का मौका देगा.
यह कैसे काम करता है?
ब्रेन इम्प्लांट ब्रेन और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के बीच संचार की सुविधा देता है. इससे केवल सोचने भर से ही कंट्रोल किया जा सकता है. एलन मस्क ने स्टीफन हॉकिंग उदाहरण देते हुए कहा कि इससे उन व्यक्तियों की मदद हो सकेगी जिन्होंने अपने अंगों का उपयोग खो दिया है.
सुरक्षा को लेकर हो रही चर्चा
यूं तो न्यूरालिंक का मिशन महत्वाकांक्षी है. लेकिन फिर भी दुनियाभर में एक्सपर्ट्स इसकी सेफ्टी को लेकर चिंतिति हैं. कंपनी इससे पहले ट्रायल का उल्लंघन करने और टेक्नोलॉजी की सुरक्षा को लेकर परेशानी का सामना कर चुकी है. कंपनी को इन सभी चीजों को लेकर गुमराह करने के लिए जांच का सामना करना पड़ा था.
इन्वेस्टीगेशन ट्रायल
न्यूरालिंक के इन्वेस्टीगेशन ट्रायल को PRIME (Precise Robotically Implanted Brain-Computer Interface) के रूप में जाना जाता है. इसमें quadriplegic रोगी, रीढ़ की हड्डी की चोट से पीड़ित और ALS वाले व्यक्ति शामिल होंगे. इसका उद्देश्य उनको सशक्त बनाना है. साथ ही उनकी जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी की मदद लेना है.