हमारे देश में इंजीनियर्स के ऊपर जोक्स बनना बहुत आम बात हो गई है. सोशल मीडिया पर आये दिन ये जोक्स और पोस्ट शेयर होते हैं. और इन्हें पढ़कर हम भी अपने इंजीनियर दोस्त या कजिन को टैग करना नहीं भूलते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे इंजीनियर के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में पढ़कर आपको हंसी नहीं आएगी बल्कि गर्व महसूस होगा.
यह कहानी है झारखंड के इंजीनियर विशाल प्रसाद गुप्ता की. 42 वर्षीय विशाल फ्यूल बनाकर बेच रहे हैं और वह भी सामान्य डीजल से सस्ते दामों पर. है न चौंकने वाली बात. क्योंकि कोई फ्यूल कैसे बना सकता है? बाइक-गाड़ी तो पेट्रोल-डीजल से चलती हैं.
यह सच है कि वाहनों को चलाने के लिए फ्यूल की जरूरत होती है और भारत में इसके लिए पेट्रोल और डीजल ही मशहूर हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वाहन किसी और तरह के फ्यूल से नहीं चल सकते हैं. वाहनों को बायो-फ्यूल यानी की जैव-ईंधन से चलाया जा सकता है.
तालाबों में जमने वाली काई से बनाया फ्यूल:
इस बात को ध्यान में रखते हुए विशाल ने एक ऐसी प्रक्रिया ईजाद की, जिससे वह काई से बायो फ्यूल बना सकें. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक विशाल कच्चे तेल नहीं बल्कि झारखंड में तालाबों में मिलने वाली ‘माइक्रोएलगी’ से बायो फ्यूल बना रहे हैं.
‘एलगी’ को हिंदी में ‘शैवाल’ कहते हैं और सामान्य तौर पर इसे काई के नाम से जाना जाता है. आप अगर अपने आसपास किसी भी पानी वाली जगह जाएंगे तो देखेंगे कि पानी स्त्रोतों में एक न एक जगह यह हरे-से रंग की काई जमी हुई होती है.
पर्यावरण की दिशा में काम:
तालाबों में काई जमना जलीय जीवों के लिए अच्छा नहीं है. इसलिए सलाह दी जाती है कि सभी पानी के स्त्रोतों की समय-समय पर साफ-सफाई होनी चाहिए. विशाल का कहना है कि अगर उनकी तरह काई का इस्तेमाल बायो फ्यूल बनाने में किया जाए तो यह हर तरह से पर्यावरण के अनुकूल है.
क्योंकि बायो फ्यूल से सामान्य पेट्रोल-डीज़ल की तुलना में बहुत कम प्रदूषण होता है. और काई को तालाबों से नियमित निकालने से इनकी साफ-सफाई होती रहेगी. जिससे जलीय जीवन प्रभावित नहीं होगा. उनका कहना है कि बायो फ्यूल ज्यादा माइलेज देता है और साथ ही, रिन्यूएबल है और वायु प्रदूषण को कम करता है.
रांची में लगाया फ्यूल-स्टेशन:
अच्छी बात यह है कि विशाल ने न सिर्फ काई से फ्यूल बनाया है. बल्कि उन्होंने रांची के बाहरी क्षेत्र में एक छोटा-सा फ्यूल स्टेशन भी लगा लिया है. जहां वह फ्यूल बनाकर लोगों को बेच रहे हैं.
उनका कहना है कि फ्यूल स्टेशन लगाने के लिए उन्होंने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से अप्रूवल लिया है. उन्हें पेट्रोलियम कंज़र्वेशन रिसर्च एसोसिएशन से भी अनुमति मिली है. और टाटा मोटर्स ने उनके इस काम की सराहना की है.
डीज़ल से 14 रुपए सस्ता है उनका बायो-फ्यूल:
उनका दावा है कि उनके बायो फ्यूल को भारत में बन रहे EM590 डीज़ल इंजन में इस्तेमाल किया जा सकता है. वह हर दिन लगभग 2,500 लीटर बायो फ्यूल की बिक्री कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल डीज़ल की कीमत 92 रुपए/लीटर है, लेकिन उनके बायो फ्यूल की कीमत 78 रुपए लीटर है.
कहा जा रहा है कि बायो फ्यूल कीमत में किफायती होने के साथ-साथ इंजन और वाहन की सेहत के लिए भी अच्छा रहता है. क्योंकि इससे इंजन को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है.
आने वाले समय में विशाल अपने फ्यूल स्टेशन को बड़े स्तर पर ले जाना चाहते हैं. इसके लिए वह नगर निगम के साथ बातचीत कर रहे हैं. यकीनन, विशाल का यह इनोवेशन और उनकी पहल न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए बेहतरीन साबित हो सकती है.