भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, ड्रोन तकनीक और मोबाइल फोन के लिए लिथियम की आवश्यकता होती है. लिथियम की कमी के कारण भारत को विदेशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. जम्मू कश्मीर के रियासी में लिथियम का बड़ा भंडार मिला है, लेकिन अभी भी लिथियम के लिए भारत पूरी तरह से विदेशों से आयात पर निर्भर है.
रीसाइकलिंग की जरूरत
लिथियम की कमी को पूरा करने के लिए लिथियम आयन रीसाइकलिंग एक महत्वपूर्ण विकल्प है. ग्रेटर नोएडा की लोहम फैक्टरी में लिथियम रीसाइकलिंग की प्रक्रिया चल रही है. कंपनी के असिस्टेंट वाईस प्रेसिडेंट विनायक सिंघल ने बताया, "जो भी एंड ऑफ दी लाइट बैटरीज आती है, फ़ोन की या इव्स की, कोई भी उससे हम लोग ब्लैक मास्क निकालते हैं." यह ब्लैक मास्क लिथियम कार्बोनेट में परिवर्तित किया जाता है, जो बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में उपयोग होता है.
रीसाइकलिंग की प्रक्रिया
रीसाइकलिंग की प्रक्रिया में बैटरी को क्रश किया जाता है और उसमें से लिथियम, निकल और कोबाल्ट निकाला जाता है. विनायक सिंघल ने बताया, "यह बिलकुल लिथियम कार्बोनेट है, जो की इसमें से निकाला गया रॉ मटेरियल में से तो इसमें से लिथियम निकाला उसको फिर कार्बोनेट की फॉर्म दी गई और ये बिल्कुल बैटरी ग्रेड मटेरियल है." यह प्रक्रिया हाइड्रोमेटलर्जिकल प्रोसेसर के माध्यम से की जाती है, जिसमें हर स्टेप पर इसे प्यूरीफाई किया जाता है.
भविष्य की तैयारी
लिथियम भंडार के मामले में दुनिया भर में चीन का दबदबा है. भारत को तकनीकी रूप से चीन से टक्कर लेने के लिए लिथियम का भंडार बढ़ाना जरूरी है. फिलहाल हमारी जरूरत पूरी हो रही है, लेकिन भविष्य में भी इसके लिए तैयारी पूरी है. विनायक सिंघल ने बताया, "हमारा अनुमान है कम से कम 200 गीगा वाटर का लिथियम एंड बैटरी कैपेसिटी चाहिए." अभी हमारे देश में जीरो कैपेसिटी है और इसके लिए जो लिथियम चाहिए, वह भी हमारे देश में नहीं है.
सरकार की पहल
लिथियम रीसाइकलिंग के अलावा सरकार का जोर देश के अलग-अलग राज्यों में इसके प्राइमरी सोर्स की खोज पर भी है. चीन इस पूरे मार्केट पर डोमिनेट कर रहा है, इसलिए लिथियम आयरन बैटरी के रीसाइकल पर ध्यान देना जरूरी है. यह जिम्मेदारी एक आम नागरिक की भी है कि वह अपनी बैटरीज को सही जगह देकर आए, ताकि वे आसानी से रीसाइकल फैक्टरीज़ तक पहुंच सकें.