बिना धूप वाले इलाकों में भी अब बनेगी सौर ऊर्जा, इस असिस्टेंट प्रोफेसर ने खोजी नायाब तकनीक, सोलर प्लेट्स की भी नहीं होगी जरूरत

सौर ऊर्जा बनाने के लिए ऐसे इलाकों में परेशानी होती है जहां धूप ज्यादा नहीं आती है. लेकिन अब एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने इस परेशनी का भी हल निकाल लिया है.

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रशांत सैनी
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 18 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST
  • UK के जर्नल में पब्लिश हो चुका है पेपर 
  • रिमोट लोकेशन्स पर होगी पहुंच

गोरखपुर जनपद की मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (MMMUT) के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रशांत सैनी ने ऊर्जा स्रोत के विकल्प की खोज की है. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में इस नए इनोवेशन को लेकर डॉ प्रशांत सैनी का कहना है कि इस सोलर प्लांट का उद्देश्य गैर परम्परागत ऊर्जा का बढ़ावा देना है.

अभी तक के उनके शोध कार्य के आधार पर अनुमान है कि इस प्लांट से प्रति यूनिट बिजली बनाने में 8.50 रुपये की लागत आएगी. इसमे किसी प्रकार की बैटरी का उपयोग नही किया जा रहा है. जिससे यह प्लांट पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बहुत उपयोगी होगा. 

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रशांत सैनी ने इस नए सोलर प्लांट का कॉन्सेप्ट तैयार किया है, जिसमें बादलों के पीछे छिपे सूरज से ऊर्जा प्राप्त कर लेने की क्षमता होगी. यह प्लांट 10 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को भी सौर ऊर्जा में बदल देगा. इस सोलर प्लांट का प्रयोग ऐसे स्थानों पर किया जा सकेगा, जहां कई दिनों तक धूप नहीं निकलती है. 

संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग अध्यक्ष प्रो. जीऊत सिंह के मार्गदर्शन में इस शोध कार्य को पूरा कराया गया है.

UK के जर्नल में पब्लिश हो चुका है पेपर 
डॉ. प्रशांत की ओर से तैयार किए गए सोलर प्लांट के प्रारूप से संबंधित शोध पत्र को यूनाइटेड किंगडम के अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनर्जी कन्वर्जन एंड मैनेजमेंट ने भी प्रकाशित किया है. 

सोलर एनर्जी के लिए छतों पर या फिर खाली स्थानों पर आपने सोलर प्लेट लगे देखे होंगे. लेकिन, डॉ. प्रशांत के शोध में इसकी जरूरत नहीं है. कंबाइंड कूलिंग, हीटिंग, पावर एंड डिसैलिनेशन नामक यह सोलर प्लांट सौर ऊर्जा की जगह वातावरण की गर्मी से खुद को चार्ज कर सकता है. 

जल्द मिलेगा भौतिक रूप 
दरअसल, इस नए इनोवेशन के तहत थर्मल आयल से भरी इनक्यूबेटेड ट्यूब से बना सोलर क्लेक्टर सौर ऊर्जा को एकत्र कर सकता है. फेज चेंज मटेरियल टैंक में उसे सुरक्षित करके बिजली से चलने वाले यंत्रों को संचालित किया जा सकता है. 

इस नई तकनीक के जरिए दूषित पानी को भी पेयजल में परिवर्तित किया जा सकेगा. डॉ. प्रशांत को इस शोध में आईआईटी बीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. जे. सरकार का भी सहयोग मिला है. डॉ. प्रशांत अब साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता के माध्यम से प्लांट को भौतिक रूप देने में जुटे हुए हैं.

रिमोट लोकेशन्स पर होगी पहुंच
डॉ प्रशांत सैनी ने बताया कि जैसे हम रिमोट लोकेशन पर देखते हैं कि देश में ऐसे कई गांव हैं जहां बिजली नही पहुंच पाती है. उसके साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों में भी जैसे उत्तराखंड व शिमला हैं जहां आज भी बिजली हर घर में पहुंचाना मुश्किल हैं. ऐसे परिस्थिति में सरकार को बिजली विभाग के लिए बिजली कनेक्शन देना मुश्किल हो जाता हैं.

ऐसे स्थानों पर बिजली कनेक्शन देने मे ज्यादा खर्च होता है. इन परिस्थितियों के लिए हमने ये पैनल बनाया हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में गर्म पानी करने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती हैं. इसलिए टीम ने पांच सिस्टम डिजाइन किए थे. जिसमें चार सिस्टम ऐसे हैं जिसमे पानी भी ठंडा-गर्म किया जा रहा है. बिजली भी बन रही हैं और एक सिस्टम है जिसमे पानी भी प्यूरीफाई होगा.

(विनीत पांडे की रिपोर्ट)

 

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