AI advisory on elections: छोटे स्टार्टअप को छूट तो बड़ी कंपनियों पर कसा शिकंजा, AI और चुनाव को लेकर सरकार ने किया अपना रुख साफ

एआई-जनित डीपफेक का खतरा संभावित रूप से चुनावों को प्रभावित कर सकता है. लोग इसका इस्तेमाल बदला लेने के लिए, अश्लीलता फैलाने के लिए या बाल यौन शोषण सामग्री बनाने के लिए कर सकते हैं. ऐसे में इनपर शिकंजा कसना जरूरी है.

Artificial Intelligence
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST
  • AI और चुनाव को लेकर सरकार ने कही अपनी बात
  • डीपफेक का खतरा कर सकता है चुनाव प्रभावित 

बीते दिनों सरकार ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चुनाव को लेकर एक एडवाइजरी जारी की थी. अब इसे लेकर सरकार ने अपना रुख साफ कर दिया है. सरकार ने स्पष्ट किया है कि पिछले सप्ताह जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सर्विस और चुनावों पर उनकी सलाह कुछ प्लेटफार्मों के लिए थी, न कि स्टार्टअप के लिए. 

दरअसल, हाल ही में लोकसभा चुनावों की घोषणाओं के बीच आईटी मंत्रालय ने Google और OpenAI जैसी जेनेरेटिव AI कंपनियों को एक एडवाइजरी भेजी थी. जिसके बाद इस सलाह की काफी आलोचना होने लगी थी. 

क्या कहा गया था एडवाइजरी में?

एडवाइजरी में कहा गया था कि Google और OpenAI जैसी जेनेरेटिव AI कंपनियों द्वारा ऐसी प्रतिक्रियाएं नहीं आनी चाहिए जो अवैध हैं. या फिर जिसकी वजह से भारतीय कानून या चुनावी प्रक्रिया की अखंडता खतरे में आती है. एडवाइजरी के मुताबिक, जो प्लेटफॉर्म वर्तमान में भारतीय यूजर्स को एआई सुविधा देते हैं, उन्हें केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होगी. हालांकि, इस कुछ एआई स्टार्टअप्स ने इस सलाह की काफी आलोचना की. 

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “ये सलाह कुछ प्लेटफॉर्म को टारगेट करते हुए दी गई है. सरकार से अनुमति केवल बड़े प्लेटफार्मों को लेनी होगी, ये स्टार्टअप पर लागू नहीं होगी. इसका उद्देश्य भारतीय इंटरनेट पर ऐसे एआई प्लेटफार्मों को अलग करना है जिनकी अभी तक टेस्टिंग नहीं हुई है.”

क्या है आलोचकों का तर्क?

आईटी मंत्रालय ने जो एडवाइजरी जारी की थी उसमें "अंडर-टेस्टिंग/अविश्वसनीय" एआई सिस्टम या बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) वाले प्लेटफार्मों को केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेने और उनकी सेवाओं को उचित रूप से लेबल करने के लिए अनिवार्य किया था. जिसके बाद इसकी काफी आलोचना हुई. आलोचकों का तर्क है कि एआई सेवाओं को तैनात करने से पहले सरकार की मंजूरी की जरूरत लेना एक तरह से इनोवेशन को रोकने जैसा है. इंडस्ट्री में आए दिन विकास हो रहा है, ऐसे एडवाइजरी से ये कहीं न कहीं बाधित हो सकता है. 

हालांकि, कुछ लोग ये भी मान रहे हैं कि सरकार अपने राजनीतिक संदेश देने के ऐसे टूल्स को टारगेट कर रही है. सरकार ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह इंटरनेट यूजर्स को जेनरेटिव एआई प्लेटफार्मों के कुछ नुकसानों से बचाने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार है. 

आलोचकों का कहना है कि एआई प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल करने से पहले अगर हर बार सरकार की मंजूरी लेनी होगी तो इसे अधिकारी मनमाने ढंग से निर्णय लेंगे. एआई कंपनियां फिर इसके लिए कानून का सहारा भी नहीं ले सकेंगी. 

डीपफेक का खतरा कर सकता है चुनाव प्रभावित 

जबकि सरकार के मुताबिक, एआई-जनित डीपफेक का खतरा संभावित रूप से चुनावों को प्रभावित कर सकता है. लोग इसका इस्तेमाल बदला लेने के लिए, अश्लीलता फैलाने के लिए या बाल यौन शोषण सामग्री बनाने के लिए कर सकते हैं. इसी को देखते हुए आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने स्पष्ट किया कि चुनावी प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए एहतियाती उपाय के रूप में सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के तहत सलाह जारी की गई थी. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की एआई टेक्नोलॉजी की जवाबदेही और जिम्मेदार उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया है.


 

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