लचीली बैटरी से लेकर AI तक... 2023 की ये 10 Technology, जिनसे बदल सकती है दुनिया

World Economic Forum ने साल 2023 के लिए 10 ऐसी टेक्नोलॉजी का चुनाव किया है, जो भविष्य में बड़ा बदलाव कर सकती हैं. इसमें लचीली बैटरी, AI, वियरेबल्स फॉर प्लांट्स, बैक्टीरिया खाने वाले वायरस शामिल हैं.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने साल 2023 के लिए 10 टेक्नोलॉजी को चुना है
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 27 जून 2023,
  • अपडेटेड 11:19 AM IST

दुनिया लगातार नए खतरों और संकटों से जूझ रही है. लेकिन इन खतरों से निपटने के लिए नई टेक्नोलॉजी पर भी खूब काम हो रहा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने साल 2023 के लिए 10 ऐसी टेक्नोलॉजी को चुना है, जो भविष्य के लिए बड़े काम की हो सकती हैं. इसमें लचीली बैटरी से लेकर AI तक और वियरेबल्स फॉर प्लांट्स से लेकर बैक्टीरिया खाने वाले वायरस तक शामिल हैं. इस लिस्ट में उन टेक्नोलॉजी को जगह दी गई है, जिससे समाज और अर्थव्यवस्थाओं को फायदा हो, जो इन्वेस्टर्स और रिसर्चर्स को लुभा सके. इसके अलावा इनसे उम्मीद है कि ये अगले 5 साल में बड़ी भूमिका निभाएंगे. चलिए आपको इस लिस्ट में जगह बनाने वाली नई टेक्नोलॉजीज के बारे में बताते हैं.

लचीली बैटरी-
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की इस लिस्ट में लचीली बैटरी को शामिल किया गया है, जो लाइटवेट मैटेरियल से बनी हैं, जिसे आसानी से मोड़ा जा सकता है, खींचा जा सकता है. जल्द ही ऐसी बैटरियां मार्केट में आएंगी. इसके साथ ही आज इस्तेमाल हो रही बैटरियां पुरानी हो जाएंगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि वियरेबल्स डिवाइसेस, लचीले इलेक्ट्रॉनिक्स और मोड़ने वाले डिस्प्ले की तेजी से बढ़ती दुनिया में ऐसे पॉवर सोर्स की जरूरत होती है, जो इन सिस्टम्स से मेल खाती हो. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक लचीली बैटरी का मार्केट साल 2022-27 तक 240.47 मिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा. सैमसंग, एलजी, एप्पल, नोकिया जैसी कई बड़ी कंपनियां लचीली बैटरी टेक्नोलॉजी का कारोबार कर रही हैं.

ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-
आजकल चैटजीपीटी की खूब चर्चा हो रही है. ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के असीमित क्षमता का एक छोटा सा उदाहरण है. AI के जरिए दवाओं को डिजाइन किया जा सकता है, आर्किटेक्चर और इंजीनिरिंग में मदद कर सकता है. नासा भी स्पेस में इसके इस्तेमाल करने पर काम कर रहा है. हालांकि अभी तक इस टेक्नोलॉजी पर पूरा भरोसा कायम नहीं हुआ है. इसके लिए इस टेक्नोलॉजी पर और काम करने की जरूरत है.

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल-
इसे बायो जेट फ्यूल भी कहा जाता है, जो खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधे के बीजों से बनाया जाता है. इसका इस्तेमाल कार, बाइक और सड़कों पर चलने वाले वाहनों में आसानी से किया जा रहा है. हालांकि एविएशन क्षेत्र में इसके इस्तेमाल की लागत बहुत ज्यादा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि अभी सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल सिर्फ डिमांड का एक फीसदी ही पूरा कर रहा है. लेकिन साल 2040 तक इसे 13-15 फीसदी तक बढ़ाना चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल की इतनी मात्रा के उत्पादन के लिए 300-400 नए प्लांट्स की जरूरत पड़ेगी. इसके लिए एयरलाइंस, मैन्युफैक्चरर और फ्यूल कंपनियां लगातार काम कर रही हैं.

डिजाइनर फेज-
वायरस को इंसानों को फायदा पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये वायरस विशेष प्रकार की बैक्टीरिया पर असर डालते हैं. ये वायरस अपने जेनेटिक इंफॉर्मेशन को बैक्टीरिया में इंजेक्ट करते हैं, जो बैक्टीरिया के फंक्शन को बदल सकते हैं. इसे किसी दवा के प्रति संवेदनशील बनाया जा सकता है. इसके अलावा भी इसका और भी इस्तेमाल किया जा सकता है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि फेज को पशुधन के विकास को बढ़ाने, कुछ पौधे की बीमारियों का इलाज करने और फूड सप्लाई चेन में खतरनाक वैक्टीरिया को खत्म करने के लिए फीड सप्लीमेंट के तौर पर डिजाइन किया जा रहा है. लोकस बायोसाइंसेज और एलिगो बायोसाइंसेज एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया से निपटने के लिए इस एप्रोच का इस्तेमाल कर रहे हैं.

मेटावर्स फॉर मेंटल हेल्थ-
कोरोना ने मेंटल हेल्थ की समस्या को इतना बढ़ा दिया है कि दुनिया में हेल्थ की सुविधाओं की कमी होती जा रही है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि मेंटल हेल्थ ट्रीटमेंट के लिए उपयुक्त परिस्थितियां मेटावर्स उपलब्ध करा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मैच्यूरिंग इंटरफेस टेक्नोलॉजीज डिस्टेंस पार्टिसिपेंट के बीच सामाजिक और भावानात्मक संबंधों को बढ़ा सकती है. कई लोग इसपर गेमिफिकेशन ऐर दूसरे तरीकों से काम कर रहे हैं, जो मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या को कम कर सकते हैं.

वियरेबल्स प्लांट सेंसर- 
परंपरागत तौर पर फसलों की निगरानी मिट्टी परीक्षण और उसे देखकर की जाती है, जो काफी महंगे और समय लेने वाले हैं. हाल ही में लो-रिजॉल्यूशन वाले सैटेलाइट डेटा की मदद से फसल की सेहत की निगरानी की जा रही है. इसमें सेंसर से लैस ड्रोन और ट्रैक्टर्स भी शामिल हैं, जिससे जानकारी हासिल होती है. अब इसके आगे की प्लानिंग एक-एक पौधे की निगरानी वियरेबल्स तरीके से करना है. रिपोर्ट के मुताबिक ये सेंसर छोटे है, जिन्हें तापमान, ह्यूमिडिटी और मॉस्चराइजर के लेवल की निगरानी के लिए फसल के साथ जोड़ा जा सकता है. 
ग्रोवेरा और फाइटेक ने माइक्रो साइज के सुई सेंसर विकसित किए हैं , जिसे पौधों की पत्तियों में चुभो दिया जाता है. ये इलेक्ट्रिकल रेसिस्टेंस में बदलाव को मापने के काम आते हैं. हालांकि ये तकनीक बहुत ज्यादा खर्चीली है. इतना ही नहीं, इसे डेटा को पढ़ने के लिए विशेषज्ञ की जरूरत पड़ सकती है. इसके साथ डेटा एनालिटिक्स टूल की जरूरत है, जो किसानों को इसे समझने में मदद कर सके.

स्थानिक ओमिक्स-
इंसान लाखों कोशिकाओं से बने हैं. लेकिन इसे अंदर क्या होता है? बायोलॉजिकल प्रोसेस कैसे काम करता है. इसको समझने में Spatial omics मदद कर सकते हैं. कोरोना से मारे गए लोगों के नमूनों के Spatial omics स्टडी से पता चला है कि SARS-CoV-2 सभी टिश्यू में सेलुलर पाथवे में व्यापक डिस्रप्शन का कारण बनता है। वैज्ञानिकों ने न्यूरॉन्स के एक समूह की भी पहचान की है, जो लकवाग्रस्त चूहों को जल्दी चलने में मदद करते हैं. हालांकि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का मानना है कि इस टेक्नोलॉजी को डेमोक्रेटिक बनाने की जरूरत है. साल 2021 में इसका कुल बाजार 232.6 मिलियन डॉलर था. जबकि साल 2030 में 587.2 मिलियन डॉलर होने का अनुमान है.

फ्लेक्सिबल न्यूट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स-
ब्रेन मशीन इंटरफेस दिमाग के इलेक्ट्रिकल सिंग्नल्स को सेंसर हार्डवेयर के जरिए कैप्चर करने की इजाजत देता है. इसे पहले से ही मिर्गी के मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और नर्वस सिस्टम से जुड़े कृत्रिम अंग बनाते हैं. हालांकि वर्तमान इंप्लांट्स चिप्स जैसे हार्ड मटेरियल से बने होते हैं, जो इंसानों को जख्मी कर सकते हैं और काफी असुविधाजनक हो सकते हैं. वे दिमाग के मूवमेंट के मुताबिक झुक या अनुकूल नहीं हो सकते हैं. लेकिन अब रिसर्चर्स ने इस सर्किट्स को बायोकॉम्पेटिबल मटेरियल से बनाया है, जो सॉफ्ट और फ्लेक्सिबल हैं. इसका इस्तेमाल कार्डियक पेसमेकर बनाने के लिए भी किया जा सकता है.

सस्टेनेबल कंप्यूटिंग-
जब हम गूगल पर सर्च करते हैं, कोई मेल भेजते हैं या एआई के किसी फॉर्म का इस्तेमाल करते हैं तो हम डेटा सेंटर्स से कनेक्ट करते हैं. इसमें दुनिया में बिजली उत्पादन का एक फीसदी खर्च होता है. हालांकि आने वाले समय में हम नेट जीरो एनर्जी डेटा सेंटर्स की तरफ बढ़ सकते हैं. सबसे पहले गर्मी कम करने के लिए कूलिंग सिस्टम का इस्तेमाल करना है. स्टॉकहोम घरों को गर्म करने के लिए डेटा सेंटर्स के गर्मी का इस्तेमाल कर रहा है. AI खुद से उत्पन्न होने वाली गर्मी का सॉल्यूशन लेकर आ सकता है. DeepMind ने AI-पॉवर्ड एनर्जी मैनेजमेंट की क्षमता को सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है. जिससे गूगल के डेटा सेंटर्स पर एनर्जी खर्च में 40 फीसदी की कमी आई है. Crusoe Energy अपने मॉड्यूलर डेटा सेंटर्स को उन जगहों पर बनाती है, जहां मीथेन फ्लेयरिंग होती है, ताकि क्लाउट कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मीथेन गैस से चलाया जा सके. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि इसमें इन्वेस्टमेंट और इनोवेशन को देखत हुए आने वाले समय में इसको लेकर बड़ी उम्मीद है.

AI फैसिलिएटेड हेल्थकेयर-
कोरोना महामारी के बाद सरकार और एकेडमिक टीमें एआई और एमएल मॉडल का इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि मरीजों के इलाज में देरी ना हो. इससे विशेष तौर पर विकासशील देशों को मदद मिल सकती है. इसके लिए भारत का उदाहरण ले सकते हैं. भारत की आबादी 1.4 अरब है और उसने मेडिकल पहुंच बनाने के लिए AI पर आधारित एप्रोच को अपनाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार ने डॉक्टरों को जरूरी प्राइवेसी सेफगार्ड्स के साथ टेक्नोलॉजी की मदद से दूरदराज के लोगों से जुड़ने में सक्षम बनाया है. हालांकि इस सिस्टम में मरीज अनुपालन और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताएं बांधा बनी हुई हैं.

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