Explainer: क्या है डार्क वेब, जानिए साइबर की दुनिया में क्यों है इसका खौफ

डार्क वेब कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरफेस वेब 19TB तक डाटा स्टोर करता है, वहीं डार्क वेब 7,500TB तक. 19TB के स्पेस में लगभग 980,000,000 वेबसाइट फंक्शन कर सकती हैं. तो जरा सोचिये की आखिर डार्क वेब में कितनी वेबसाइट होंगी...

Dark Web
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 25 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 2:27 PM IST
  • इंटरनेट का कुल 4 प्रतिशत करते हैं हम इस्तेमाल
  • बड़े-बड़े अपराधों का है डार्क वेब से कनेक्शन

आपने वो फोटो देखी है जिसमें ग्लेशियर का कुछ टुकड़ा समुद्र के ऊपर होता है और उसका बचा हुआ टुकड़ा समुद्र के नीचे. समुद्र के नीचे वाला जो हिस्सा होता है वो ऊपर वाले से कहीं ज्यादा बड़ा होता है. बस ठीक ऐसे ही इंटरनेट की दुनिया है. ये दुनिया बहुत बड़ी है, इतनी की हम पूरे इंटरनेट का कुल 4% ही इस्तेमाल कर पाते हैं. इंटरनेट को तीन केटेगरी में बांटा जा सकता है, सरफेस वेब (Surface web), डार्क वेब (Dark Web)और डीप वेब (Deep Web). 

इसी डीप वेब में होता है ‘डार्क वेब’. ये डार्क वेब कहलाने वाला स्पेस इंटरनेट का कुल 48 प्रतिशत तक हिस्सा कवर करता है. इस स्पेस में ब्लैक में काम होते हैं.

इंटरनेट का कुल 4 प्रतिशत होता है इस्तेमाल 

डार्क वेब इंटरनेट पर एक छिपा हुआ स्पेस है जहां कुछ स्पेसिफिक साइट्स और वेब ब्राउजर से ही एक्सेस कर पाते हैं. ये इंटरनेट पर आपको नॉर्मल सर्च इंजन में नहीं मिलती हैं. आपको बता दें, इस नॉर्मल 4% वाले स्पेस को हम ‘सरफेस वेब’ (Surface Web) कहते हैं. 

डार्क वेब कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरफेस वेब 19TB तक डाटा स्टोर करता है, वहीं डार्क वेब 7,500TB तक. 19TB के स्पेस में लगभग 980,000,000 वेबसाइट फंक्शन कर सकती हैं. तो जरा सोचिये की आखिर डार्क वेब में कितनी वेबसाइट होंगी?

सरफेस वेब और डार्क वेब

बड़े-बड़े अपराधों का है डार्क वेब से कनेक्शन

एक रिसर्च के अनुसार, 1% डार्क वेब पिस्टल और गन जैसे हथियार, 8.1% अवैध ड्रग्स, 6.3% अवैध फाइनेंसिंग के लिए इस्तेमाल होता है. इसका लगभग 22.6% हिस्सा ‘Non-illicit’ और ‘unknown’ केटेगरी में मार्क किया गया है.

दरअसल, डार्क वेब को एक सुरक्षित जगह के रूप में नहीं देखा जाता है. कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि डार्क वेब पर करीब 50,000 से ज्यादा आतंकवादी ग्रुप हैं. न जाने कितने ऐसे खतरनाक काम हैं जो इस स्पेस से किये जाते हैं.हाल ही में शाइनी हन्टर्स (Shiny Hunters) नाम के एक हैकिंग ग्रुप ने 10 कंपनियों का करीब 7.3 करोड़ यूज़र्स का डेटा डार्क वेब पर बेच दिया था.

भारत में सबसे ज्यादा यूज़र करते हैं डार्क वेब का इस्तेमाल 

आपको बता दें, स्टेटिस्टिक्स की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इसके सबसे ज्यादा यूज़र पाए गए हैं. पूरी दुनिया में इस्तेमाल कर सभी लोगों में 26 प्रतिशत लोग भारत के हैं. वहीं, अगर सभी यूज़र की बात करें तो इसमें 70.6% पुरुष हैं और 29.4% महिलाएं हैं. 

डार्क वेब कैसे है सरफेस वेब से अलग?

हम जब इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं तो हमारा कंप्यूटर या डिवाइस एक आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस जनरेट करता है. ये हमारी एक ऑनलाइन पहचान होती है, जिससे हमें ट्रैक किया जा सकता है. आपका आईपी एड्रेस आपको सही जगह पर सही जानकारी भेजने में सक्षम बनाता है. किसी व्यक्ति की इंटरनेट गतिविधि को आसानी से इस आईपी एड्रेस का इस्तेमाल करके ट्रैक और मॉनिटर किया जा सकता है. डार्क वेब में ऐसा नहीं हो पाता है.

वहीं, 'डार्क वेब' में एक ऐसे सिस्टम का इस्तेमाल होता है जो यूज़र के आईपी एड्रेस को हटा देता है. जिससे यह पता लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि अपने अपने डिवाइस से किन वेबसाइट पर विज़िट किया है, ये पूरी तरह गोपनीय होता है. 

कैसे कर सकते हैं एक्सेस 

इसे आम तौर पर एक स्पेसिफिक सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके एक्सेस किया जाता है. इस सॉफ्टवेयर में सबसे ज्यादा पॉपुलर है टोर (The Onion Router). लगभग 2.5 मिलियन लोग हर दिन इस Tor का इस्तेमाल करते हैं. टॉर अपने आप में 'डार्क वेब' नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा तरीका है जिससे बिना किसी यूज़र की पहचान किए या उनकी एक्टिविटी को ट्रैक किए बिना ओपन और डार्क वेब दोनों को ब्राउज़ किया जा सकता है.

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