पेजर, जिन्हें "बीपर्स" भी कहा जाता है, एक समय में एक दूसरे से बात करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे. मोबाइल फोन के आने से पहले पूरी दुनिया में पेजर का ही कॉन्सेप्ट था. ये छोटे, पोर्टेबल डिवाइस होते हैं जिसमें रेडियो वेव्स के माध्यम से मैसेज भेज सकते हैं. इसमें छोटे मैसेज न्यूमेरिक और अल्फान्यूमेरिक में आते हैं.
पेजर 1980 और 1990 के दशक की शुरुआत में ज्यादा पॉपुलर हो गए थे. डॉक्टरों, इमरजेंसी सर्विस में, पत्रकारों, और यहां तक कि बिजनेस मैनेजर इनका उपयोग करते थे.
पेजर ने मचा दी तबाही
अब इसी छोटे से पेजर ने बड़ी तबाही मचा दी है. लेबनान में मंगलवार को 3000 पेजरों में विस्फोट हो गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें 11 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 4000 लोग घायल हुए हैं. इसे एक तरह का साइबर हमला कहा जा रहा है, जिसे कथित तौर पर इजराइल की मोसाद एजेंसी ने अंजाम दिया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, मोसाद ने हिज़्बुल्लाह के कम्युनिकेशन नेटवर्क के लिए मंगाए गए 5,000 ताइवान निर्मित पेजरों के अंदर विस्फोटक लगाए थे.
पेजरों को ताइवान की एक कंपनी, गोल्ड अपोलो, द्वारा आयात किया गया था. हालांकि, ताइवान स्थित गोल्ड अपोलो ने सीधे तौर पर संलिप्तता से इनकार किया है. उनका कहना है कि पेजर एक अलग कंपनी, बीएसी ने बनाए थे, जो लाइसेंस के तहत गोल्ड अपोलो के ब्रांड का उपयोग करती थी. प्रत्येक पेजर में कथित तौर पर लगभग 3 ग्राम विस्फोटक थे. हालांकि यह मात्रा छोटी लग सकती है, लेकिन इससे हजारों लोग घायल हुए हैं.
कैसे काम करता है पेजर?
एक पेजर नॉर्मल सी थ्योरी पर काम करता है. जब पेजर को मैसेज भेजा जाता है, तो यह एक रेडियो सिग्नल मिलता है और फिर बीप या वाइब्रेशन से यूजर को सतर्क करता है. मोबाइल फोन के आने से पहले लोग इन्हीं का इस्तेमाल करते थे. उन्हें मैसेज एक छोटी स्क्रीन पर दिखाई देता था, फिर इसका जवाब देने के लिए एक लैंडलाइन या सार्वजनिक फोन ढूंढते थे.
पेजर की टेक्नोलॉजी एक रेडियो कम्युनिकेशन नेटवर्क के इर्द-गिर्द घूमती है.
1. पेजिंग ट्रांसमिटर्स: किसी भी पेजर कम्युनिक्शन के केंद्र में एक पेजिंग ट्रांसमिटर नेटवर्क होता है. ये ट्रांसमिटर एक निर्धारित फ्रीक्वेंसी पर रेडियो सिग्नल ब्रॉडकास्ट करते हैं. हर पेजर की अपनी एक अलग आइडेंटिटी होती है. ये आइडेंटिटी इनका यूनिक नंबर होता है.
2. पेजिंग टावर्स: मोबाइल फोन टावर्स की तरह, पेजिंग टावर्स अलग-अलग क्षेत्रों में फैलाए जाते हैं ताकि पर्याप्त कवरेज हो सके. ये टावर्स सेंट्रल टर्मिनल सिस्टम के भेजे गए रेडियो सिग्नलों को पेजरों तक ब्रॉडकास्ट करते हैं. पेजिंग टावर्स का नेटवर्क जितना मजबूत और बड़ा होता है, पेजर की सीमा उतनी ही ज्यादा होती है.
3. रेडियो सिग्नल्स: जब कोई व्यक्ति संदेश भेजना चाहता है, तो उसे एक रेडियो सिग्नल में एन्कोड किया जाता है और पेजिंग टर्मिनल की मदद से ट्रांसमिट किया जाता है.
4. मैसेज मिलना: एक बार जब पेजर को उसकी यूनिक आईडी पर सिग्नल मिलता, तो वह या तो बीप-बीप या वाइब्रेशन अलर्ट एक्टिव करता है. पेजर मॉडल के आधार पर, यूजर को वो मैसेज मिलता है.
बता दें, पेजर के कई प्रकार होते थे. जैसे न्यूमेरिक पेजर , जिसमें केवल संख्याएं दिखती हैं..आमतौर पर एक फोन नंबर जिसे यूजर को वापस कॉल करना होता हैं. कुछ लोगों के पास वॉयस पेजर भी होते हैं, जिनमें पेजर वॉइस मैसेज रिकॉर्ड और प्ले कर सकते हैं.
मोबाइल फोन से कैसे अलग है पेजर
हालांकि, ये मोबाइल फोन से अलग होते हैं. पेजर में दोनों तरफ बातचीत जरूरी नहीं होती. जब तक यूजर पेजिंग टावर की सीमा के अंदर होता है, वह मैसेज रिसीव कर सकता है. इस तरह का पेजर ग्रामीण या दूर-दराज वाली जगहों पर काफी काम आता है.
पेजर |
मोबाइल फ़ोन |
कोई कैमरा नहीं |
फोटो और वीडियो के लिए कैमरे |
कोई GPS नहीं |
रियल टाइम और लोकेशन के लिए GPS |
कोई ट्रैकिंग क्षमता नहीं |
GPS, सेल टावर ट्राइंगुलेशन, वाई-फाई या ऐप्स का उपयोग करके ट्रैक किया जा सकता है |
1990 के दशक में पेजर का उपयोग कम होने लगा. ये वो समय था जब मोबाइल फोन किफायती और सुलभ हो गए. मोबाइल फोन से दो तरफा संचार हो सकता था. इसे ही देखते हुए लोगों ने इनका उपयोग कम कर दिया. 2000 के दशक की शुरुआत तक, पेजर लोगों की जिंदगीं और बाजारों से लगभग गायब ही हो गए.
हालांकि पेजर आम जनता की नजर से लगभग गायब हो चुके हैं, लेकिन कुछ समूहों ने इनका उपयोग आज भी जारी रखा है. इनमें हिज़्बुल्लाह भी शामिल है. बताया जाता है कि हिज़्बुल्लाह के लड़ाके इजरायली खुफिया एजेंसी, मोसाद, से बचने के लिए संचार के एक लो-टेक साधन के रूप में पेजरों का उपयोग करते है. पेजरों को आसानी से ट्रैक भी नहीं किया जा सकता.