Kailash Darshan From India: कैलाश दर्शन के लिए अब चीन की नहीं है जरूरत…भारत से ही देख पाएंगे कैलाश पर्वत… कैसे करें ये धार्मिक यात्रा...कितना आएगा खर्च...जानिए फुल डिटेल्स

Kailash Yatra From India: कैलाश पर्वत (Kailash Parvat) के दर्शन के लिए पहले 21 दिन की लंबी और कठिन यात्रा करनी पड़ती थी. अब कैलाश दर्शन के लिए चीन की जरूरत नहीं है. भारत से ही कैलाश पर्वत के दर्शन (Kailash Darshan From India) कर पाएंगे. उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए स्पेशल पैकेज भी लाई है.

Kailash Parvat Darshan Uttarakhand (Photo Credit: Getty Images)
ऋषभ देव
  • नई दिल्ली,
  • 06 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 7:58 PM IST

Kailash Yatra From India: कैलाश पर्वत (Kailash Parvat) को भगवान शिव का घर कहा जाता है. कैलाश दर्शन के लिए हजारों लोग कई दिनों तक लंबी किमी. की यात्रा करते हैं. अभी तक कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा करनी पड़ती थी.

कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए तिब्बत (Kailash Mansarovar Tibbet) से होकर जाना पड़ता था लेकिन अब कैलाश पर्वत के दर्शन भारत से ही कर सकते हैं. दरअसल, उत्तराखंड में एक जगह है लिपुलेख दर्रा. इस जगह से ही कैलाश पर्वत (Lipulek Pass kailash View) दिखाई देता है.

कैलाश पर्वत की अहमियत
कैलाश पर्व हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए बेहद खास और पवित्र है. कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर माना जाता है. कहते हैं कि भगवान शिव-पार्वती के साथ यहीं रहते हैं. कहा जाता है कि इसी जगह पर भगवान ऋषभ देव को निर्वाण मिला था. 

कैलाश पर्वत की ऊंचाई लगभग 6,714 मीटर है. इसे धरती का केन्द्र बिंदु माना जाता है. कैलाश पर्वत पर चढ़ने की काफी लोगों ने कोशिश की लेकिन कोई सफल नहीं हुआ. हालांकि, माना जाता है कि 11वीं सदी में तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने कैलाश पर्वत की चढ़ाई की थी. 

कहा तो ये भी जाता है कि कैलाश पर समय बहुत तेजी से बीतता है. इसके अलावा वहां जाने वाले लोगों के नाखून और बाल काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं. अब कैलाश दर्शन के लिए चीन जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

कैलाश मानसरोवर यात्रा
अभी तक कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा करनी पड़ती थी. कैलाश पर्वत से सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतुलज और घाघरा नदी निकलती है. कैलाश पर्वत के नीचे दो झीलें हैं. इनमें से एक को मानसरोवल लेक के नाम से जानते हैं. वहीं दूसरी झील का नाम राक्षस लेक है.

मानसरोवर लेक दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित झील में से एक है. कहा जाता है इस लेक में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं. गर्मियों में जब ये झील पिघलती है तो इसमें से एक अलग तरह की आवाज आती है. मान्यता है लेक में से मृदंग की आवाज निकलती है.

चीन के नए नियम
कैलाश मानसरोवर की यात्रा भारत के लिपुलेख बॉर्डर से नेपाल होते हुए तिब्बत जाना पड़ता था. इसके लिए चीन से परमिशन लेनी पड़ती थी. कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए वीजा और पासपोर्ट भी जरूरी होता था. कोविड आने के बाद से कैलाश मानसरोवर की यात्रा बंद है. 5 साल से कैलाश मानसरोवर की यात्रा नहीं हुई है. 

चीन ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा के नियम भी कड़े कर दिए थे. इससे भारतीय व्यक्ति के कैलाश यात्रा के लिए काफी खर्चा हो जाता था. व्यक्ति को चीन एंबेसी जाकर वीजा लेना पड़ता था. कैलाश मानसरोवर की यात्रा में कम से कम 21 दिन का समय लगता है. अब कैलाश पर्वत के दर्शन सिर्फ 5 दिन की यात्रा में ही कर सकेंगे. 

कैसे हुई खोज?
लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 18,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं. इस जगह को सबसे पहले स्थानीय लोगों ने देखा. इसकी सूचना के बाद एक टीम यहां गई. कुछ महीने पहले उत्तराखंड टूरिज्म डिपार्टमेंट, सीमा सड़क संगठन (BRO) और आईटीबीपी (ITBP) के आधिकारियों की टीम सर्वे के लिए इस जगह पर आई. 

उत्तराखंड की इस जगह से कैलाश पर्वत बिल्कुल साफ दिखाई देता है. इस जगह की खोज के बाद उत्तराखंड सरकार को इस बारे में बताया गया. उत्तराखंड सरकार ने केन्द्र सरकार से इसको लेकर मंजूरी ली. इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने सेना की मदद से पायलट पैकेज चलाया. 

कैलाश पर्वत के दर्शन
उत्तराखंड के इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहले बैच ने लिपुलेख दर्रा से कैलाश पर्वत के दर्शन किए हैं. इस बैच में 5 लोग शामिल थे. इन सभी लोगों को पिथौरागढ़ से हेलीकॉप्टर से गुंजी गांव लाया गया. इसके बाद कुछ किमी. का ट्रेक करने के बाद कैलाश पर्वत के दर्शन किए.

उत्तराखंड सरकार का पायलय प्रोजेक्ट पूरी तरह से सफल रहा. सैलानियों को कैलाश पर्वत दर्शन के लिए उत्तराखंड सरकार 5 दिन का स्पेशल पैकेज लाई है. कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए हेलीकॉप्टर की सर्विस ले सकते हैं. इसके अलावा सड़क मार्ग से भी लिपुलेख तक पहुंच सकते हैं. इस पैकेज में आदि कैलाश के दर्शन भी करवाए जाते हैं.

क्या है पूरा पैकेज?
उत्तराखंड के टूरिज्म डिपार्टमेंट ने कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए एक स्पेशल पैकेज तैयार किया है. ये पूरा पैकेज 4 रात और 5 दिन का है. इसी पैकेज में हेलीकॉप्टर से कैलाश पर्वत के दर्शन कराए जाएंगे. 

पिथौरागढ़ से हेलीकॉप्टर से गुंजी ले जाया जाएगा. गुंजी से गाड़ियों से आगे ले जाएगा. फिर लगभग 3 किमी. का ट्रेक करने के बाद वो जगह आएगी, जहां से कैलाश पर्वत का खूबसूरत व्यू देखने को मिलेगा. इसी पैकेज में आदि कैलाश और ओम पर्वत के दर्शन भी शामिल हैं. इसके बाद गुंजी से वापस पिथौरागढ़ लाया जाएगा.

कैसे करें बुकिंग?
उत्तराखंड सरकार के इस पैकेज से कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए पहले से बुकिंग करानी होगी. बुकिंग के लिए उत्तराखंड पर्यटन विभाग या कुमाऊं मंडल विकास निगम की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाएं. वहां से आप इस टूर के पैकेज को बुक कर सकते हैं.

इसके अलावा रूकने की सारी व्यवस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम कर रहा है. KMVN से ही आप रूकने की बुकिंग करा सकते हैं. साथ ही इस यात्रा को कई टूर ऑपरेटर भी करा रहे हैं. सैलानी उनके टूर पैकेज भी ले सकते हैं.

कैसे करें कैलाश यात्रा?
भारत से कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रा पहुंचना होगा. इसके दो रास्ते है, एक हेलीकॉप्टर से और दूसरा सड़क मार्ग से.

हेलीकॉप्टर से:
सबसे पहले हेलीकॉप्टर से कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग करानी होगी. इसके बाद उत्तराखंड के पिथौरागढ़ पहुंचना होगा. पिथौरागढ़ उत्तराखंड के सबसे बड़े शहरों में से एक है. पिथौरागढ़ उत्तराखंड के कुमाऊं में आता है. ऋषिकेश से पिथौरागढ़ लगभग 460 किमी. दूर है.

पिथौरागढ़ पहुंचने में लगभग एक दिन का समय लग जाएगा. पिथौरागढ़ से गुंजी लगभग 160 किमी. है. रास्ते में धारचूला पड़ेगा. हर यात्री को धारचूला में हेल्थ चेकअप कराना पड़ेगा. साथ में यहीं से परमिट लेना पड़ेगा. पहले दिन हेलीकॉप्टर से पिथौरागढ़ से गुंजी लाया जाएगा. गुंजी में ही सैलानी रात में रूकेंगे.

कैलाश व्यू प्वाइंट
गुंजी से अगले दिन सैलानियों को आदि कैलाश के दर्शन के लिए जॉलिकॉन्ग ले जाया जाएगा. गुंजी से जॉलिकॉन्ग लगभग 25 किमी. दूर है. आदि कैलाश के दर्शन के बाद शाम को गुंजी वापस लौट आएंगे.

तीसरे दिन गुंजी से गाड़ियों से ओल्ड लिपुलेख ले जाया जाएगा. कैलाश पर्वत के व्यू प्वाइंट तक पहुंचने के लिए लगभग 3 किमी. का ट्रेक करना पड़ेगा. वहां से कैलाश पर्वत के विहंगम नजारे देखने को मिलेंगे. उसी दिन शाम को वापस गुंजी आ जाएंगे. अगले दिन हेलीकॉप्टर से वापस पिथौरागढ़ छोड़ दिया जाएगा. इस तरह ये पैकेज पूरा हो जाएगा.

वाया रोड:
कैलाश पर्वत के दर्शन वाया रोड भी किए जा सकते हैं. इसके लिए धारचूलना पहुंचना होगा. ऋषिकेश और देहरादून वाले रास्ते से पिथौरागढ़ दूर पड़ता है. टनकपुर के रास्ते से पिथौरागढ़ काफी पास है. टनकपुर से पिथौरागढ़ सिर्फ 145 किमी. दूर है.

पिथौरागढ़ से धारचूला लगभग 90 किमी. है. पिथौरागढ़ से धारचूला के लिए बस चलती है. धारचूला नेपाल बॉर्डर पर स्थित एक छोटी-सी जगह है. दोनों देशों के बीच में नदी बहती है. दिलचस्प बात ये है कि नेपाल की तरफ बसे गांव का नाम भी धारचूला है.

धारचूला से परमिट
धारचूला से आगे जाने के लिए परमिट लेना पड़ता है. साथ ही हेल्थ चेकअप भी जरूरी है. ये सब होने के बाद धारचूला से गुंजी निकल जाइए. धारचूला से गुंजी के लिए शेयर टैक्सी चलती हैं. इसके अलावा बुकिंग करके भी गुंजी तक जा सकते हैं.

गुंजी से पहले आदि कैलाश के दर्शन के लिए निकल जाइए. फिर उसके बाद कैलाश व्यू प्वाइंट को देखिए. इसी रास्ते से वापस धारचूला आ सकते हैं. वाया रोड यात्रा में समय जरूर लगता है लेकिन यहां जाने पर निराश नहीं होंगे. वैसे भी खूबसूरत जगह के लिए कठिन रास्तों से ही गुजरना पड़ता है.

इन चीजों का रखें ध्यान:
कैलाश दर्शन की यात्रा करते समय कुछ चीजों का ध्यान जरूर रखें. इससे आपकी यात्रा आसान हो जाएगी

  • अपने साथ गर्म कपड़े जरूर रखें.
  • इसके अलावा रेन कोट, टॉर्च और एक्सट्रा कपड़े भी रखें
  • अपने साथ ज्यादा से ज्यादा कैश लेकर चलें. ऐसे जगहों पर एटीएम नहीं होता है और नेट भी कम चलता है.
  • साथ में मेडिसिन का एक बॉक्स जरूर रखें. जिसमें सामान्य बीमारी की सभी दवाई होनी चाहिए.
  • दस्तावेजों को साथ रखें और सुरक्षित रखें. 
  • पहाड़ों में जंगल में अकेले न जाएं और रात के समय बाहर न निकलें.

Read more!

RECOMMENDED