भारत एक ऐसी जगह है जहां आपको ढेर सारे प्राचीन और रहस्यमय मंदिर देखने को मिलेंगे. उनमें से एक स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है, जो गुजरात में स्थित है. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर देश के बाकी सभी मंदिरों से एकदम अलग है और इसके पीछे बहुत ही कमाल की बात है. दरअसल यह मंदिर दिन में दो बार गायब हो जाता है और इस कारण इसे 'गायब मंदिर' या 'खोया हुआ मंदिर' का उपनाम मिला है.
क्या है पौराणिक कहानी
गुजरात के जंबुसर में कवि कंबोई गांव में स्थित इस मंदिर की जड़ें भगवान कार्तिकेय से जुड़ी हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस तारकासुर पर विजय पाने के बाद उन्होंने स्तंभेश्वर महादेव लिंग की स्थापना की. स्कंद पुराण में माही सागर संगम तीर्थ क्षेत्र में देवताओं द्वारा विश्वानंदक स्तंभ नामक एक स्तंभ की स्थापना का वर्णन है.
मंदिर के बारे में किंवदंती है कि तारकासुर, एक राक्षस और भगवान शिव का प्रबल भक्त था. उसके राक्षसी स्वभाव के बावजूद, उसकी अटूट भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हुए, और उसे वरदान दिया. वरदान में उसने कभी न मरने की इच्छा व्यक्त की. तारकासुर की इच्छा इस शर्त के साथ पूरी की गई कि सिर्फ भगवान शिव का छह दिन का पुत्र ही उसका जीवन समाप्त कर सकता है. यह कहानी भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय की उत्पत्ति के साथ समाप्त हुई, जिन्होंने तारकासुर के कहर का अंत किया.
कैसे गायब होता है मंदिर
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर का महत्व इसके दिन में दो बार लुप्त होने के कारण बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. जबकि इसका कारण है कि यह मंदिर समुद्र तट से कुछ मीटर की दूरी स्थित है. समुद्र में उच्च ज्वार (High Tide) के दौरान, मंदिर डूब जाता है, और निम्न ज्वार (Low Tide) के दौरान फिर से दिखने लगता है. समुद्र का स्तर बढ़ने और घटने पर यह घटना हर दिन दो बार घटित होती है।
अभिलेखों के आधार पर, गर्भगृह (जहां शिवलिंग विराजमान है) उच्च ज्वार के दौरान पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है, जिससे पानी के ऊपर सिर्फ मंदिर की ऊपरी संरचना दिखाई देती है. यह प्राकृतिक घटना इस प्राचीन पूजा स्थल के आकर्षण और विशिष्टता को बढ़ाती है. दूर-दूर से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है जो इसके आध्यात्मिक महत्व और प्राकृतिक चमत्कार से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.