रमज़ान का महीना ईद-उल-फित्र या मीठी ईद के जश्न के साथ पूरा होता है. यह पाक महीना और मीठी ईद भारत में बहुत ही खास है. भारत में न सिर्फ मुस्लिम समुदाय बल्कि हर समुदाय के लोगों की ईद से जुड़ी यादें होती हैं. खासतौर पर दिल्ली जैसे शहर में जहां हर धर्म, मज़हब और समुदायों के लोग प्यार और सम्मान के साथ रहते हैं. यहां लोग सभी त्योहार भी साथ मनाते हैं. इसलिए आपको मुस्लिम दिवाली मनाते दिखेंगे तो वहीं बहुत से हिंदू ईद पर किसी खास मस्जिद-मजार पर जाते दिख जाएंगे. आज हम आपको बता रहे हैं कि ईद के मौके पर आप दिल्ली में कौन-सी जगहों पर घूमने जा सकते हैं.
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह दिल्ली के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित सबसे लोकप्रिय मस्जिदों में से एक है, जहां हर दिन आपको भीड़ मिलेगी. निज़ामुद्दीन दरगाह को प्रसिद्ध सूफी संत निज़ाम-उद-दीन औलिया की कब्र के रूप में बनाया गया था और यह घूमने के लिए सबसे पॉपुलर जगहों में से एक है. इस खूबसूरत मकबरे को जालियों, संगमरमर के मेहराबों, तोरणद्वारों और आंगनों से सजाया गया है. यहां पर कई बार शाम के समय कव्वाली भी होती है. ईद के मौके पर दरगाह का नूर कुछ अलग ही होता है. हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह के निकटतम मेट्रो स्टेशन प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन और ब्लू लाइन पर इंद्रप्रस्थ मेट्रो स्टेशन हैं. मेट्रो स्टेशनों से आप दरगाह परिसर तक पहुंचने के लिए ऑटो ले सकते हैं.
जामा मस्जिद
दिल्ली को मिले शाहजहां के सबसे शानदार उपहारों में से एक है जामा मस्जिद. यह पुरानी दिल्ली शहर में लाल किले के सामने स्थित है. इसमें चार मीनारें और तीन प्रवेश द्वार हैं. इसमें पवित्र कुरान की आयतें भी अंकित हैं. पुरानी दिल्ली की इस मस्जिद में 25,000 लोग एक साथ बैठ सकते हैं. संगमरमर और लाल-बलुआ पत्थर की इस संरचना को 'फ्राइडे मस्जिद' के रूप में भी जाना जाता है. यह शाहजहां की आखिरी वास्तुशिल्प थी, जिसे 1644 और 1658 के बीच बनाया गया था. आप दिल्ली मेट्रो से आसानी से जामा मस्जिद पहुंच सकते हैं.
फतेहपुरी मस्जिद
यह 17वीं सदी की मस्जिद है जो चांदनी चौक के पश्चिमी छोर के पास स्थित है. यह लाल किले के सामने स्थित है. इस मस्जिद को 1650 में शाहजहां की पत्नियों में से एक, फ़तेहपुरी बेगम ने बनवाया था. मस्जिद बड़े पैमाने पर लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई है और इसके ऊपर एक ही गुंबद है. यह मस्जिद मुगल वास्तुकला की भव्यता का एक सुंदर नमूना है और मुगल और ब्रिटिश काल से लेकर आज तक सभी ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी हुई है.
जमाली कमाली मस्जिद और मकबरा
दिल्ली के महरौली में पुरातत्व ग्राम परिसर में स्थित, जमाली कमाली मस्जिद और मकबरे में एक दूसरे से सटे दो स्मारक शामिल हैं, मस्जिद और मकबरा. मस्जिद का निर्माण हुमायूं के शासनकाल के दौरान 1528 और 1536 के बीच शेख फजल अल-अल्लाह ने किया था, जिन्हें जलाल खान जलाली या जमाली के नाम से भी जाना जाता था. वहीं, एक सूफी संत जलाल खान, जिन्हें जमाली भी कहा जाता था, उनकी मृत्यु 1526 में पानीपत की लड़ाई के दौरान हुई थी. उनकी याद में मकबरे का निर्माण किया गया था.
मोठ की मस्जिद
इस मस्जिद को 'दाल वाली मस्जिद' के नाम से भी जाना जाता है और यह दिल्ली के दक्षिणी भाग में स्थित है. इसे सिकंदर लोधी शासन के दौरान वजीर मियां भोइया ने बनवाया था. मस्जिद के मसूर के संदर्भ के पीछे कहानी यह है कि सिकंदर लोधी ने अपने वजीर को मसूर का एक पौधा उपहार में दिया था. उस पौधे को जब वजीर ने लगाया और इससे बीज बनाकर और ज्यादा पैमाने पर मसूर उगाई. इस मसूर की दाल को बेचकर वजीर ने जो पैसा कमाया, उसी का इस्तेमाल इस मस्जिद को बनाने में किया.