अपनी जान बचाने के लिए यूक्रेन में लोग पिछले 6 दिनों से लगातार बंकरों में छिपे हुए हैं. लेकिन यूक्रेन के स्थानीय लोग और विदेशी नागरिकों के पास अब रसद खत्म होने लगी है. और ऊपर से जान का खतरा लगातार बना हुआ है. इस बीच यूक्रेन से स्थानीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशियों का पलायन यूरोप की सीमाओं पर जारी है. पश्चिमी यूक्रेन से लगने वाली यूरोप के चार देश- हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया और रोमनिया की सीमा पर बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. (साभार: आशुतोष मिश्रा)
संयुक्त राष्ट्र के रिफ्यूजी काउंसिल के मुताबिक अब तक 5 लाख लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं. और अभी भी पलायन का सिलसिला लगातार जारी है. यूक्रेन से पश्चिमी सीमा पर पहुंचने के लिए ट्रांसपोर्टेशन की मुश्किल है और ऊपर से सर्दी अपना सितम दिखा रही है. यूक्रेन के चौप से हंगरी की सीमा जाहोनी तक पहुंचने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं. साथ ही जाहोनी पहुंचे यूक्रेन से आए तमाम शरणार्थियों के लिए राजधानी बुडापेस्ट के लिए भी विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं. (साभार: आशुतोष मिश्रा)
इन शरणार्थियों में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की और छोटे बच्चों की है. घाना, हिंदुस्तान, नेपाल, थाईलैंड और यूक्रेन के लोगों से भरी हुई इस ट्रेन में छोटे बच्चों के चेहरों पर कभी मुस्कान है तो कभी दुःख. कईयों के पास सर्दी से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में कपड़े भी नहीं हैं. कई नागरिकों ने बताया कि उन्होंने पिछले दो दिनों से कुछ खाया ही नहीं है. (साभार: आशुतोष मिश्रा)
हंगरी के बुडापेस्ट रेलवे स्टेशन पर बड़ी संख्या में सिविल सोसायटी के लोगों ने कैंप लगाए हुए हैं. दवाइयों से लेकर खाने की व्यवस्था की गई है ताकि यहां पर पहुंचा कोई भी शरणार्थी भूखा ना रहे. पोलैंड जाने वाले शरणार्थियों के लिए बुडापेस्ट से विशेष ट्रेन की व्यवस्था की गई है. (साभार: आशुतोष मिश्रा)
बहुत से शरणार्थी किसी तरह अपनी जान बचाकर यूरोप की सीमा तक पहुंच रहे हैं. और यूरोप में लोग उनकी मदद को भी तैयार हैं. लेकिन सवाल यह है कि यह जंग कब खत्म होगी और अगर जंग खत्म हो भी जाये तो क्या यूक्रेन फिर से पहले की तरह बस पायेगा. अपना घर-बार छोड़कर यूरोप भागने को मजबूर लोग क्या कभी वापस लौट पाएंगे. आखिर इन शरणार्थियों का भविष्य क्या होगा. (साभार: आशुतोष मिश्रा)