रूस के दिग्गज दार्शनिक और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के 'दिमाग' माने जाने वाले एलेक्जेंडर दुगिन ने कहा है कि 'बहुध्रुवी' दुनिया बनाने के लिए हिन्दू वैदिक सभ्यता को पुनर्जीवित करने की जरूरत है. हाल ही में दिल्ली दौरे पर आए पुतिन के गुरू ने रूसी समाचार एजेंसी आरटी से खास बातचीत में यह बात कही. दुगिन ने ऐसा क्यों कहा, यह जानने से पहले हमें यह समझना होगा कि दुगिन कौन हैं.
कौन हैं एलेक्जेंडर दुगिन?
एलेक्जेंडर दुगिन को कुछ लोग व्लादिमीर पुतिन का दिमाग बताते हैं. जबकि कुछ लोग कहते हैं कि रूसी राष्ट्रपति के फैसलों पर उनका असर न के बराबर है. कई सालों तक विशेषज्ञों और राजनीतिक पंडितों ने दुगिन को लेकर अलग-अलग विचार प्रकट किए हैं, लेकिन इस 60 साल के फलसफी की क्षमता को एक वाक्य में समेट देना सही नहीं.
दुगिन ने पहली बार 1990 के दशक के प्रारंभ में सोवियत संघ के पतन के दौरान रूस के दक्षिणपंथी अखबार 'डेन' के लिए एक कॉलमिस्ट के तौर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. दरअसल उन्होंने 1991-92 में 'द ग्रेट वॉर ऑफ द कॉन्टिनेंट्स' नाम का एक मैनिफेस्टो जारी किया था. अखबार में एक सीरीज के तौर पर जारी हुए इस मैनफिस्टो में रूस की कल्पना एक कट्टर-राष्ट्रवादी देश के तौर पर की गई थी.
बनाना चाहते हैं 'अखंड रूस'
दुगिन ने इस मैनिफेस्टो में रूस की लीडरशिप में एक 'यूरेशियन साम्राज्य' (यूरोप और एशिया का संयुक्त साम्राज्य) खड़ा करने की बात कही थी. सन् 1997 में दुगिन ने यूरेशियनवाद पर 'द फाउंडेशन्स ऑफ जियोपॉलिटिक्स' नाम की एक पुस्तक भी प्रकाशित की. यह एक ऐसी पुस्तक थी जिसे उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्य के तौर पर पहचान मिली.
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इस किताब को रूसी सेना के सीनियर स्टाफ कॉलेज में पढ़ाया भी गया. दुगिन ने इस किताब में भी विलय और गठबंधनों के माध्यम से रूस का प्रभाव दोबारा स्थापित करने की बात कही. उन्होंने इस किताब में यूक्रेन पर कब्जा करने की बात भी खुलकर कही. उन्होंने कहा कि रूस के बिना यूक्रेन की कोई विशेष जातीय पहचान नहीं है.
क्यों कही हिन्दू सभ्यता के पुनर्जागरण की बात?
दुगिन अपने विचारों में हमेशा एक ऐसा 'यूरेशिया' बनाने की बात करते रहे हैं जहां लोग अपनी मूल परंपराओं से जुड़े हुए हों. उनके अनुसार पश्चिमी सभ्यता ढहने की कगार पर है. और उससे लड़ना यूरेशिया की किस्मत है. भारत में हिन्दू वैदिक सभ्यता के पुनर्जागरण की जरूरत पर भी दुगिन ने कुछ ऐसा ही कहा.
उनके अनुसार अब वैश्विक राजनीति पर कुछेक देशों का वर्चस्व खत्म करने के लिए सभी देशों को पारंपरिक सभ्यताओं की ओर लौटने की जरूरत है. वह कहते हैं, "एक मल्टीपोलर (बहुध्रुवीय) दुनिया बनाने के लिए सबसे बड़ी चुनौती दार्शनिक है. हमें अपनी आध्यात्मिक पहचान की ओर वापस लौटना होगा. आपके (भारत के) सामने चुनौती है कि आप अपनी वैदिक सभ्यता की ओर लौटें."
दुगिन के इस बयान को सुनते हुए ध्यान रखना चाहिए कि रूस इस समय यूक्रेन के साथ जंग में है. साथ ही अमेरिका के साथ उसके रिश्ते शीत युद्ध जितने बुरे हो गए हैं. हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि राष्ट्रपति पुतिन के फैसलों में दुगिन का प्रभाव कितना है.
अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले इस मामले के विशेषज्ञ सैमुअल रमानी के हवाले से कहती है, "रूसी नीति पर दुगिन के वास्तविक प्रभाव को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है. उन्होंने कभी भी रूस के भीतर कोई आधिकारिक पद नहीं संभाला है... वह वर्तमान सत्ता के संपर्क में भी नहीं हैं. खासकर पुतिन के तो बिल्कुल भी नहीं."