Elections in UK on Thursday: ब्रिटेन में बीते 89 साल से हर बार गुरुवार को ही होते हैं आम चुनाव, ऐसा क्यों

गुरुवार को चुनाव करवाने की ये परंपरा ब्रिटेन में 1935 से ही चली आ रही है. इस परंपरा को अब करीब 89 साल हो चुके हैं. हालांकि, ऐसा हमेशा से नहीं था. ऐसा कई बार हुआ है जब गुरुवार को आम चुनाव नहीं हुए हैं. जैसे 1918 के आम चुनाव प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद होने वाले पहले चुनाव थे. ये चुनाव शनिवार को हुए थे.

UK Elections (Representative Image/Getty Images)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 1:29 PM IST
  • 89 साल से गुरुवार को ही होते हैं चुनाव
  • गुरुवार मार्केट डे यानी बाजार वाला दिन होता है

2024 चुनावों का साल है. भारत समेत कई देशों में चुनाव हो चुके हैं और आने वाले समय में कुछ मुल्कों में आम चुनाव होने वाले हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (Prime Minister Rishi Sunak) ने 22 मई 2024 को एक ऐतिहासिक घोषणा की थी. उन्होंने 10, डाउनिंग स्ट्रीट (Downing Street) यानी ब्रिटिश पीएम हाउस से इस साल होने वाले आम चुनाव की तारीख का एलान किया था. इसके बाद ब्रिटेन में एक बार फिर से गुरुवार को (4 जुलाई) को आम चुनाव हो रहे हैं. हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है कि चुनाव गुरुवार को पड़े हैं. पिछले 89 साल से ब्रिटेन में चुनाव गुरुवार को ही होते आ रहे हैं.

क्या इसके पीछे कोई परंपरा है? 

ब्रिटेन में गुरुवार को चुनाव का पर्याय माना जाता है. यह परंपरा 1935 से चली आ रही है. चाहे आम चुनाव हों, उप-चुनाव हों, या स्थानीय चुनाव हों, गुरुवार ब्रिटिश वोटर्स के लिए वोट डालने का पसंदीदा दिन रहा है.

हालांकि, इसके पीछे कोई परंपरा है या नहीं इसके बारे में कुछ साफ नहीं कहा जा सकता है. फिर भी कई वजह बताई जाती हैं. एक वजह है कि शुक्रवार, पारंपरिक रूप से वेतन दिवस (Pay Day), को वोटिंग के लिए सही नहीं माना जाता था क्योंकि लोग अपना समय वोटिंग सेंटर के बजाय पब में आराम करने में बिताते थे. दूसरी ओर, रविवार कई लोगों के लिए पूजा-पाठ का दिन होता है, और ऐसी चिंता थी कि लोग उस दिन चर्च जाना पसंद करते हैं. इसलिए, गुरुवार एकदम सही दिन बन गया. 

मार्केट डे यानी बाजार वाला दिन

कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐतिहासिक रूप से, यह कई कस्बों और गांवों में मार्केट डे  (Market Day) यानी बाजार जाने वाला दिन होता है. इस दिन लोग अपने घर और दूसरे बाहर के काम करने के साथ वोट भी दे सकते हैं. लोगों को वोट देने के लिए अलग से बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती. साथ ही शुक्रवार की सुबह तक चुनाव के परिणाम घोषित किए जा सकते हैं. जिससे वीकेंड में सरकार बदली जा सकती है. इस सेटअप की वजह से नए चुने गए नेताओं को अपनी भूमिका में ढलने और आने वाले सप्ताह के लिए तैयारी करने के लिए कुछ दिन भी मिल जाते हैं. 

गुरुवार को चुनाव करवाने की ये परंपरा ब्रिटेन में 1935 से ही चली आ रही है. हालांकि, ऐसा हमेशा से नहीं था. 1918 से पहले चुनाव एक दिन तक सीमित नहीं होते थे बल्कि कई हफ्तों तक चलते थे. ऐसा कई बार हुआ है जब गुरुवार को आम चुनाव नहीं हुए हैं. 

-14 दिसंबर 1918: शनिवार का चुनाव

1918 के आम चुनाव प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद होने वाले पहले चुनाव थे. ये चुनाव शनिवार को हुआ था. यह पहला आम चुनाव था जिसमें महिलाओं (30 साल से ज्यादा उम्र) को मतदान करने की अनुमति दी गई थी. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1918 के बाद होने वाला पहला चुनाव भी यही था. 

-15 नवंबर 1922: बुधवार का चुनाव

कुछ ही साल बाद, 1922 का आम चुनाव बुधवार को हुआ. यह चुनाव राजनीतिक अस्थिरता के दौर में हुआ था. इसमें डेविड लॉयड जॉर्ज की गठबंधन वाली सरकार को हार का सामना करना पड़ा था. एंड्रयू बोनार की कंजर्वेटिव पार्टी को जीत हासिल हुई थी.

-6 दिसंबर 1923: गुरुवार 

1923 के आम चुनाव गुरुवार हो हए थे. चुनाव के परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद बनी थी, जिसमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. इससे रामसे मैक्डोनाल्ड के नेतृत्व में पहली लेबर सरकार बनी थी. 

-29 अक्टूबर 1924: बुधवार

पिछले चुनाव के एक साल से भी कम समय के बाद, ब्रिटेन में बुधवार को फिर से मतदान हुआ. 1924 का यह चुनाव लेबर सरकार के गिरने के बाद हुआ था. स्टैनली बाल्डविन के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी ने मजबूत बहुमत के साथ सत्ता हासिल की थी. 

-30 मई 1929: गुरुवार 

1929 का आम चुनाव, जिसे अक्सर लेबर पार्टी के उदय के लिए याद किया जाता है, गुरुवार को आयोजित किया गया था. यह चुनाव ऐतिहासिक रूप से काफी जरूरी रहा है. यह पहला आम चुनाव था जिसमें 21 साल और उससे ज्यादा उम्र की महिलाएं मतदान कर सकती थीं. रामसे मैकडोनाल्ड के नेतृत्व में लेबर पार्टी, पूर्ण बहुमत के बिना, संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. 

-27 अक्टूबर 1931: मंगलवार

1931 का आम चुनाव मंगलवार को हुआ था. यह चुनाव महामंदी के दौरान आर्थिक उथल-पुथल के बीच हुआ. इसमें रैमसे मैक्डोनाल्ड के नेतृत्व वाले गठबंधन नेशनल गवर्नमेंट ने भारी जीत हासिल की थी.

सुधार की होती रही है मांग

हालांकि, लंबे समय से चली आ रही परंपरा के बावजूद, सुधार की मांग उठती रही है. कुछ लोगों का तर्क है कि वीकेंड वोटिंग, जैसा कि कई दूसरे देशों में होता है, मतदान प्रतिशत को बढ़ा सकता है. फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऐल्सा हेंडरसन का सुझाव है कि वीकडे और वीकेंड वोटिंग के कॉम्बिनेशन ज्यादा वोटर्स को प्रभावित किया जा सकता है. हालांकि, इस प्रस्ताव को तार्किक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसमें एक है कि इलेक्शन स्टाफ को ओवरटाइम के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं.


 

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