UK’s Contaminated Blood Scandal: कैसे ब्रिटेन के 30 हजार लोग हो गए थे HIV संक्रमित? जानें UK के सबसे बड़े स्वास्थ्य घोटाले के बारे में

उम्मीद की जा रही है कि अब उन हजारों व्यक्तियों को न्याय मिलेगा. इसके बाद इन सभी के लिए मुआवजे का एलान किया जा सकता है. बता दें, इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा सवाल ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) पर उठे हैं. ये ब्रिटेन का पब्लिक फंडेड हेल्थकेयर सिस्टम है, जिसे 1948 में शुरू किया गया था. ये संस्था ब्रिटेन में फ्री हेल्थकेयर सर्विस देती है.

Infected Blood Scandal (Photo by Leon Neal/Getty Images)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 21 मई 2024,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST
  • एनएचएस पर उठे थे सवाल 
  • शुरुआत में हुई काफी देरी 
  • 30,000 से ज्यादा लोग हुए थे संक्रमित 

ब्रिटेन के सबसे बड़े हेल्थ स्कैंडल को लेकर अंतिम रिपोर्ट सोमवार को जारी की जाएगी. 6 साल बाद ब्रिटेन के कंटामिनटेड ब्लड स्कैंडल (Contaminated Blood Scandal) की जांच रिपोर्ट जारी होने जा रही है. इसे ब्रिटेन के सबसे बड़े हेल्थ घोटाले में गिना जाता है.

कंटामिनटेड ब्लड के चलते ब्रिटेन में हजारों लोग HIV संक्रमित हो गए थे. इसकी वजह थी लोगों को इन्फेक्टेड ब्लड चढ़ाए जाना. ये एक ऐसा स्कैंडल था जिसने केवल ब्रिटेन को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हलचल मचा दी थी. कई रिपोर्ट्स की मानें इससे ब्रिटेन में लगभग 3000 लोगों की मौत हुई थी और 30,000 से ज्यादा लोग संक्रमित हो गए थे.

ब्रिटिश मीडिया के अनुसार, स्थानीय सरकार उन हजारों व्यक्तियों को मुआवजा दे सकती है. इसके लिए 10 बिलियन पाउंड ($12.70 बिलियन) से ज्यादा उन लोगों में बांटे जा सकते हैं, जो एचआईवी या हेपेटाइटिस से संक्रमित हुए थे. इस पूरे केस के केंद्र में ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (National Health Service) है. 

एनएचएस पर उठे थे सवाल 

बता दें, इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा सवाल ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) पर उठे हैं. ये ब्रिटेन का पब्लिक फंडेड हेल्थकेयर सिस्टम है, जिसे 1948 में शुरू किया गया था. यह यूके में हर किसी को जरूरत पड़ने पर फ्री हेल्थकेयर प्रदान करती है. NHS के चार भाग हैं: NHS इंग्लैंड, NHS स्कॉटलैंड, NHS वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में हेल्थ एंड सोशल केयर.

NHS की गिनती दुनिया के सबसे बड़े एम्प्लॉयर में होती है. लेकिन फिर भी इसकी वजह से 1970 और 1980 के दशक में स्वास्थ्य घोटाला हुआ.

(फोटो- Getty Images)

क्या था पूरा मामला?

1970 और 1980 के दशक के दौरान, हजारों व्यक्तियों को इन्फेक्टेड ब्लड प्रोडक्ट्स दिए गए. इसे विशेष रूप से हीमोफिलिया (haemophilia) से पीड़ित लोग शामिल थे. इन लोगों को HIV और हेपेटाइटिस वायरस से  कंटामिनटेड प्रोडक्ट्स दिए गए थे. यह मुख्य रूप से फैक्टर VIII नाम के ट्रीटमेंट के माध्यम से हुआ था.

इसका उद्देश्य ब्लीडिंग डिसऑर्डर की समस्या वाले लोगों की मदद करना था. हालांकि, फैक्टर VIII बनाने के लिए उपयोग किया जाने वाला प्लाज्मा अमेरिका में ज्यादा जोखिम वाले ग्रुप से लिया गया था. इसमें कैदियों समेत नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों से ये प्लाज्मा लिया गया था. इनमें से कई वो लोग थे जिनमें पहले से ये वायरस थे.

30,000 से ज्यादा लोग हुए थे संक्रमित 
 
इस आपदा का पैमाना बहुत बड़ा था. 30,000 से ज्यादा लोग ऐसे थे जो एचआईवी, हेपेटाइटिस सी या दोनों से संक्रमित थे. एचआईवी से संक्रमित लगभग दो-तिहाई लोग बाद में एड्स से संबंधित बीमारियों से मर गए. द गार्जियन के मुताबिक, संक्रमित लोगों में 380 बच्चे थे, इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं जिनकी अब मौत हो चुकी है. कई परिवार तबाह हो गए थे, और कई पीड़ितों ने अनजाने में अपने आसपास वालों में ये वायरस फैला दिया था. 

(फोटो- Getty Images)

शुरुआत में हुई काफी देरी 

हालांकि, शुरुआत में सरकार और मेडिकल अधिकारी कार्रवाई करने में काफी धीमे थे. 1985 तक वायरस को मारने के लिए फैक्टर VIII का इलाज नहीं किया गया था, और 1991 तक हेपेटाइटिस सी के लिए ब्रिटेन के ब्लड डोनेशन की नियमित जांच नहीं की गई थी. धीमी प्रतिक्रिया का एक बड़ा कारण पैसे की समस्या थी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इन समस्याओं को लेकर कई बार चेतावनी भी दी थी. लेकिन उसके बाद भी ब्रिटेन ने इन ब्लड प्रोडक्ट्स का उपयोग करना जारी रखा क्योंकि वे सस्ते थे.

दस्तावेजों से पता चलता है कि स्कूली बच्चों, जिनमें कुछ दो साल तक के बच्चे भी शामिल इसका शिकार हुए थे. इसके दुखद परिणाम हुए और कई लोग की मौत हो गई. बीबीसी के मुताबिक, डॉक्टरों ने जोखिमों को जानने के बावजूद इन प्रोडक्ट्स का उपयोग जारी रखा. 

मुआवजे के लिए अभियान

1980 के दशक के बीच में, पीड़ितों और उनके परिवारों ने चिकित्सकीय लापरवाही के रूप में मुआवजे की मांग करना शुरू कर दी थी. सरकार ने HIV से संक्रमित लोगों को पैसे देने के लिए एक चैरिटी की स्थापना की. लेकिन इसने अपना काम ठीक से नहीं किया. पीड़ितों से पेमेंट देने के बदले कहा गया कि वे स्वास्थ्य विभाग पर मुकदमा न करें. इतना ही नहीं बल्कि इसके लिए हस्ताक्षर करने का दबाव भी डाला गया.

(फोटो- Getty Images)

इन्फेक्टेड ब्लड की जांच

2017 में, प्रधान मंत्री थेरेसा मे के कार्यकाल में, सरकार ने घोटाले की जांच शुरू की. पीड़ितों और उनके वकीलों के लगातार अभियान चलाने के बाद ये जांच शुरू हुई थी. हाई कोर्ट के पूर्व जज सर ब्रायन लैंगस्टाफ की अध्यक्षता में 2018 में जांच के ऊपर सुनवाई शुरू हुई थी. अब 2023 में इसकी सार्वजनिक सुनवाई खत्म हुई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जांच की आखिरी रिपोर्ट में घोटाले में शामिल फार्मास्युटिकल कंपनियों, मेडिकल प्रैक्टिशनर, सिविल सर्वेंट और नेताओं की आलोचना की उम्मीद की जा रही है. साथ ही ये भी उम्मीद है कि सरकार एक स्पेशल मुआवजा पैकेज की घोषणा करेगी, जो संभावित रूप से 10 अरब पाउंड से ज्यादा होगा. 
 

 

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