एक ग्रैमी-नॉमिनेटेड आर्टिस्ट… अमेरिका में मैकिंजी की पहली भारतीय महिला पार्टनर… एक बहु-मिलियन डॉलर कंपनी की संस्थापक… टेक्नोलॉजी शिक्षा में क्रांति लाने वाली औरत…
एक सफल व्यक्ति के लिए इनमें से कोई एक भी उपलब्धि काफी होती, लेकिन चंद्रिका टंडन ने इन सभी को अपने जीवन का हिस्सा बनाया. और यही नहीं, उन्होंने अपनी संगीत यात्रा को भी आगे बढ़ाया, अपने पांचवें एलबम को रिकॉर्ड किया और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी को 100 मिलियन डॉलर का ग्रांट दिया ताकि ज्यादा लोगों को अच्छी और हायर स्टडीज का मौका मिल सके.
लेकिन इस ऊंचाई तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. अगर उनकी मां की योजना पूरी हो जाती, तो यह कहानी ही शायद कुछ और होती.
हंगर स्ट्राइक से सफलता तक
1960 के दशक की एक पारंपरिक तमिल ब्राह्मण (तमब्राह्म) लड़की, जिसे बचपन से ही सिखाया गया था कि 17 की उम्र में सगाई और 18 में शादी कर दी जाएगी. उनकी मां ने तो यह तक तय कर लिया था कि वह स्टेला मेरिस कॉलेज जाएंगी, जो घर के पास और लड़कियों का कॉलेज था.
लेकिन चंद्रिका ने हड़ताल (हंगर स्ट्राइक) कर दी. मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज (MCC) जाने के लिए, जो लड़कों का गढ़ था और घर से दूर था. यह उनकी पहली बगावत थी, लेकिन आखिरी नहीं.
संघर्षों से सफलता तक
MCC में पढ़ाई के दौरान उनके एक रिश्तेदार ने तंज कसा- "क्या तुम सच में आईआईएम-अहमदाबाद (IIM-A) का एंट्रेंस क्लियर कर पाओगी? चंद्रिका ने इसे चुनौती के रूप में लिया. उन्होंने आखिरी इंटरव्यू में फ्रेंच में गाना गाकर जजों को चौंका दिया और IIM-A में एडमिशन पा लिया. 1972 में जब 1 लाख से ज्यादा छात्रों ने एग्जाम दिया था, तब उन्होंने उन चुनिंदा 100 में जगह बनाई.
IIM-A से निकलकर उन्हें सिटीबैंक में नौकरी मिली, हालांकि उन्हें बैंकर बनना पसंद नहीं था. फिर भी किस्मत उन्हें वहां ले आई, और जल्द ही उन्हें लेबनान भेज दिया गया, जो जल्द ही गृहयुद्ध में झुलसने वाला था.
1975 में जब वह आखिरी फ्लाइट से भारत लौटीं, तो उसी फ्लाइट में उनके साथ बैठे थे आदित्य पुरी, जो आगे चलकर HDFC बैंक के संस्थापक बने.
अमेरिका की पहली भारतीय महिला पार्टनर
कुछ ही सालों में चंद्रिका ने मैकिंजी एंड कंपनी में एंट्री ली. वहां उन्होंने 16 राउंड के इंटरव्यू दिए, वो भी पीले और नीले रंग की साड़ी में, खुले सैंडल पहनकर. यह आसान नहीं था. अमेरिका की बिजनेस की दुनिया में एक भारतीय महिला, जो पहली बार न्यूयॉर्क में टैक्सी में बैठी और लोगों ने उसे मिडल फिंगर दिखाया- यह सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था. लेकिन चंद्रिका ने हार नहीं मानी. 1980 के दशक में, वे अमेरिका में मैकिंजी की पहली भारतीय महिला पार्टनर बनीं.
क्राइसिस ऑफ स्पिरिट और संगीत की वापसी
अपनी जिंदगी के इस दौर में उन्होंने महसूस किया कि वह एक बेहतर इंसान, मां या दोस्त नहीं बन पा रही थीं. वह कहती हैं, "मैं ऑस्ट्रेलिया में डील कर रही थी और हर 10 दिन में घर लौटती थी. क्या मैंने सब कुछ ठीक से मैनेज किया? नहीं! मैंने नहीं किया." यहीं से उनके जीवन में "क्राइसिस ऑफ स्पिरिट" आया. उन्होंने खुद से पूछा- क्या सिर्फ कंपनियों को रीस्ट्रक्चर करना ही उनकी किस्मत है?
शिक्षा में बदलाव की पहल
उन्होंने और उनके पति (रंजन टंडन) ने शिक्षा में योगदान देने का फैसला किया. उन्होंने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी को $100 मिलियन का दान दिया ताकि STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) को बढ़ावा मिल सके. भारत में उन्होंने अपने अल्मा मेटोर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में एक बिजनेस स्कूल स्थापित किया. उनका लक्ष्य था ऐसे छात्रों को पढ़ाई का मौका देना, जिनके परिवार में पहले किसी ने कॉलेज नहीं देखा हो.
संगीत से उनका प्यार
संगीत से उनका प्रेम बचपन से था, लेकिन करियर की आपाधापी में यह कहीं खो गया था. 2010 में उन्होंने अपना दूसरा एलबम ‘Soul Call’ रिलीज किया, जिसे ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया. उनके साथ नॉमिनेटेड थे ब्राजीलियाई सिंगर सर्जियो मेंडेस, जिनका संगीत उन्होंने बचपन में सुना था.
2024 में उन्होंने ‘Ammu’s Treasures’ रिलीज किया- 35 गानों का कलेक्शन. इस एलबम को उन्होंने बच्चों के लिए समर्पित किया, जिसमें संस्कृत, फ्रेंच, इंग्लिश, और तुर्की भाषाओं के गाने शामिल हैं.
उनके पोते तक उनके ‘ओम जय जगदीश हरे’ मंत्र को पूरे 9 श्लोक सुनाने की जिद करते हैं. उन्होंने यूक्रेनी शरणार्थी बच्चों के साथ सिंगिंग प्रोग्राम किए, जिससे साबित हुआ कि संगीत सीमाओं से परे होता है.
छोटे-छोटे मुद्दे सभी कर सकते हैं हल
आज चंद्रिका टंडन कहती हैं, "हममें से कोई भी एक बड़ा मुद्दा हल नहीं कर सकता, लेकिन हम छोटे-छोटे हिस्से जरूर बदल सकते हैं." उनके लिए ये दो चीजें अहम हैं- STEM शिक्षा के जरिए आर्थिक सशक्तिकरण और संगीत के जरिए भावनात्मक सशक्तिकरण. और यह सब सिर्फ इसलिए मुमकिन हो पाया क्योंकि एक नन्ही लड़की ने 1969 में हड़ताल की थी, ताकि वह अपनी पसंद के कॉलेज में जा सके, न कि अपने जेंडर के कारण सीमित किए गए विकल्पों में से किसी एक में.
चंद्रिका टंडन की कहानी हमें सिखाती है कि सीमाएं सिर्फ सोच में होती हैं. वह एक ग्रैमी-नॉमिनेटेड संगीतकार हैं, एक सफल बिजनेस लीडर हैं, एक समाज सुधारक हैं, और सबसे बढ़कर एक ऐसी महिला हैं, जिन्होंने अपने सपनों को कभी मरने नहीं दिया.
(इनपुट-मनीष अधिकारी और रोहित सरन/इंडिया टुडे)