तिब्बत को दुनिया की छत कहा जाता है. 73 साल पहले तिब्बत आजाद हुआ करता था. लेकिन आज के दिन यानी 23 मई साल 1951 को चीन ने इस स्वतंत्र देश पर कब्जा कर लिया था. इस दिन ही तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 17 बिंदुओं वाले समझौते प सिग्नेचर किया था. इसके बाद ये पहाड़ी इलाका चीन का हिस्सा बन गया था. हालांकि बाद में दलाई लामा ने इस समझौते को ये कहते हुए मानने से इनकार कर दिया था कि ये जबरदस्ती दबाव बनाकर कराया गया था. आज तिब्बत पर चीन के कब्जे को दुनिया के कई देश की मान्यता मिली हुई है. भारत ने भी साल 2003 में तिब्बत को भारत का हिस्सा मान लिया था.
चीन ने कैसे किया था कब्जा-
साल 1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित किया था. उस समय चीन ने इसपर कोई सवाल नहीं उठाया. लेकिन साल 1949 में जब चीन में कम्युनिस्ट सरकार आई तो चीन अपने विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाने लगा. सत्ता में आने के एक साल बाद साल 1950 में कम्युनिस्टों ने तिब्बत पर हजारों सैनिकों के साथ हमला बोल दिया. करीब 8 महीने तक लड़ाई चलती रही. आखिरकार 23 मई 1951 को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने समझौता कर लिया और तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया. आज भी इस दिन को तिब्बती लोग काला दिन के तौर पर मनाते हैं.
8 साल बाद तिब्बत से भागे दलाई लामा-
चीन के कब्जे के बाद भी दलाई लामा तिब्बत में रहते थे. साल 1956 में चीनी प्रधानमंत्री झाऊ एन-लाई के साथ भारत दौरे पर भी आए थे. इस दौरे के कुछ साल बाद चीन की सरकार ने लामा को बीजिंग बुलाया. चीन ने उनके सामने अकेले बीजिंग आने की शर्त रखी. लेकिन दलाई लामा बीजिंग नहीं गए और मार्च 1959 में सैनिक के वेश में तिब्बत से भागकर भारत चले आए. तिब्बत से आने में उनको 14 दिन का वक्त लगा था. उसके बाद से अबतक भारत से ही तिब्बती सरकार चल रही है. दलाई लामा के भारत आने के एक साल के भीतर करीब 80 हजार तिब्बती भी भारत आए गए. भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन बौखला गया. भारत और चीन के बीच युद्ध की एक वजह दलाई लामा को शरण देना भी था.
भारत ने तिब्बत को माना चीन का हिस्सा-
चीन ने तिब्बत पर साल 1951 में ही कब्जा कर लिया था. हालांकि भारत ने इस कब्जे को मान्यता नहीं दी थी. लेकिन जून 2003 में भारत ने आधिकारिक रूप से मान लिया था कि तिब्बत चीन का हिस्सा है.
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