Chine Taiwan Conflict: ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव में चीन के कट्टर विरोधी Lai Ching की जीत... दोनों देशों की अदावत की पूरी कहानी जानिए

ताइवान में राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को जीत मिली है. राष्ट्रपति उम्मीदवार लाई चिंग-ते ने जीत दर्ज की है. लाई फिलहाल ताइवान के उपराष्ट्रपति हैं. लाई को चीन का कट्टर विरोधी माना जाता है और उनकी जीत पर चीन ने कड़ा संदेश दिया है.

Lai Ching-te (Photo/Twitter)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 4:38 PM IST

ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव में चीन के कट्टर विरोधी विलियम लाई चिंग-ते ने जीत दर्ज की है. लाई डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे. डीपीपी ने तीसरी बार जीत हासिल की है. राष्ट्रपति चुनाव में लाई की जीत से चीन खफा है और ताइवान को डराने की कोशिश कर रहा है.

ताइवान चीन से करीब 100 मील दूर बसा एक द्वीप है. ताइवान खुद को एक आजाद देश मानता है. जबकि चीन उसे अपना हिस्सा बताता रहा है. दोनों की अदावत की कहानी काफी पुरानी है. चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.

ताइवान का इतिहास-
साल 1542 में एक पुर्तगाली जहाज जापान जा रहा था. लेकिन ये जहाज एक छोटे से द्वीप पर पहुंच गया. पुर्तगालियों ने इस द्वीप को 'इल्हा फरमोसा' नाम दिया. इसका मतलब खूबसूरत द्वीप होता है. आपको बता दें कि दूसरे विश्व युद्ध तक ये द्वीप फरमोसा के नाम से जाना जाता था.

साल 1624 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने ताइवान को अपना बेस बनाया और समुद्री कारोबार का बड़ा केंद्र बना दिया. लेकिन डचों ने जल्द ही इस जगह को छोड़ दिया और इसपर चीन के राजवंश झेंग का शासन हो गया. इसके बाद क्विंग राजवंश का चीन और ताइवान पर शासन हुआ. साल 1894 में क्विंग राजवंश और जापानी साम्राज्य में युद्ध हुआ. इसके बाद समझौते के तहत ताइवान पर जापान का कब्जा हो गया. जापान ने इस द्वीप पर साल 1945 तक राज किया.

दो धड़ों की लड़ाई-
जब साल 1895 में जापान साम्राज्य से चीन का क्विंग राजवंश हार गया तो उसके खिलाफ विद्रोह हो गया. साल 1911 में शिन्हाई क्रांति हुई और राजवंश की सत्ता खत्म कर दी गई. एक जनवरी 1912 को चीन का नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा गया. सुन यात-सेन को राष्ट्रपति बनाया गया. उन्होंने साल 1919 में कुओमिंतांग पार्टी का गठन किया. साल 1923 में सुन यात-सेन और सोवियत संघ के बीच समझौता हुआ. इसके बाद सोवियत संघ कुओमिंतांग पार्टी की मदद करने लगा. चीन में इस पार्टी की एक आर्मी बन गई और उसको ट्रेनिंग रूस में दी गई.

इस बीच साल 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का भी गठन हो गया था और वो कुओमिंगातंग पार्टी के साथ मिलकर चीन को एक करने की रणनीति पर काम कर रही थी. लेकिन जैसे ही सबसे बड़े लीडर सुन यात-सेन की मौत हुई, पार्टी में फूट पड़ गई. पार्टी दो धड़ों लेफ्ट और राइट विंग में बंट गई.

कुओमिंतांग की सरकार गुआंगझोऊ प्रांत से चल रही थी, जबकि कम्युनिस्टों की पकड़ वुहान में थी. कुओमिंतांग पार्टी की कमान चिआंग काई-शेक के हाथों में थी. जल्द ही दोनों धड़ों में दूरियां बढ़ने लगी. कुओमिंतांग ने एक प्रस्तास पास किया और कम्युनिस्टों को राष्ट्रवादी क्रांति में बाधा बताया. सैकड़ों कम्युनिस्टों को पकड़कर फांसी पर लटका दिया गया. इसके बाद दोनों धड़ों में खाई बढ़ती गई और दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हो गए.

चीन और ताइवान का क्या है विवाद-
साल 1927 में राष्ट्रवादी सरकार और कम्युनिस्टों में लड़ाई शुरू हो गई. वामपंथियों ने रेड आर्मी का गठन किया. कम्युनिस्टों और राष्ट्रवादियों के बीच 10 साल तक गृह युद्ध चलता रहा. कम्युनिस्टों की रेड आर्मी चिआंग काई-शेक की सेना पर भारी पड़ने लगी. कम्युनिस्टों ने चीन पर कब्जा कर लिया. एक अक्टूबर 1949 को माओ त्से तुंग ने बीजिंग में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की घोषणा की. उधर, चिआंग काई-शेक अपनी सेना के साथ ताइवान भाग गए. उन्होंने दिसंबर 1949 में ताइपे को अपनी राजधानी बनाया और इसका नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा.

ताइवान को किसने दी मान्यता-
शुरुआत में अमेरिका ने ताइवान को चीन की असली सरकार माना था. संयुक्त राष्ट्र में भी ताइवान की सरकार को ही जगह दी गई. लेकिन धीरे-धीरे बीजिंग की ताकत बढ़ती गई और सारा फोकस उधर शिफ्ट होने लगा. 1970 के दशक में चीन की कम्युनिस्ट सरकार को असली सरकार मान लिया गया.

दुनिया के 13 देशों ने ही ताइवान को आजाद देश के तौर पर मान्यता दी है. हैती, होली सी, मार्शल आइलैंड्स, नाउरू, निकारागुआ, बेलीज, ग्वाटेमाला, पराग्वे, पलाऊ, सेंट लूसिया, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनाडाइन्सल और तुवालु देश ने ताइवान को अलग राष्ट्र माना है. ताइवान में लाई के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद नाउरू सरकार ने उससे अपना राजनयिक संबंध तोड़ दिया है.

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