Donald Trump Oath in January 2025: जीतने के बाद भी क्यों अगले साल शपथ लेंगे डोनाल्ड ट्रंप? जनवरी में ही क्यों अपनी कुर्सी संभालते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति

रूजवेल्ट पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने 20 जनवरी को शपथ ली थी. तब से, 20 जनवरी ही अमेरिका में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की तय तारीख बन गई है. हालांकि, अगर यह तारीख रविवार को पड़ती है तो शपथ ग्रहण अगले दिन की जाती है. उस स्थिति में सार्वजनिक समारोह 21 जनवरी को आयोजित होता है.

US presidential inauguration (Photo: Getty Images)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:08 AM IST
  • अगले साल शपथ लेंगे डोनाल्ड ट्रंप
  • दिसंबर में इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग होगी

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ गए हैं. अमेरिका के लोगों ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को कमला हैरिस से ज्यादा वोट दिए हैं. इस जीत के साथ, ट्रंप एक बार फिर से राष्ट्रपति पद संभालने के लिए तैयार हैं, और उन्हें 20 जनवरी 2025 को शपथ दिलाई जाएगी. लेकिन यह समारोह नवंबर के चुनाव के तुरंत बाद की बजाय जनवरी में ही क्यों होता है? और चुनाव के दिन से लेकर शपथ ग्रहण तक की इस प्रक्रिया में कौन-कौन से औपचारिक कदम शामिल होते हैं? चलिए जानते हैं… 

राष्ट्रपति पद की शपथ (US president oath-taking) केवल एक औपचारिकता नहीं है, यह एक समारोह होता है जिसमें नए राष्ट्रपति के हाथ में अमेरिका की सत्ता शांतिपूर्ण तरीके से सौंपी जाती है. अमेरिकी संविधान के मुताबिक नए राष्ट्रपति पद संभालने से पहले शपथ लेते हैं, जिससे उनके कार्यकाल की शुरुआत होती है.

संविधान के अनुच्छेद II, सेक्शन 1 में शपथ दी गई है: 

"मैं ईश्वर की शपथ लेकर प्रतिज्ञा करता/करती हूं कि मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति का कार्यभार निष्ठा से निभाऊंगा/निभाऊंगा और अपनी पूरी शक्ति से संविधान की रक्षा, संरक्षण और समर्थन करूंगा/करूंगी."

हर राष्ट्रपति ने जॉर्ज वॉशिंगटन के बाद से यह शपथ ली है, और इसे दोहराना उद्घाटन समारोह का एक केंद्रीय हिस्सा बन गया है.

शपथ ग्रहण जनवरी में ही क्यों होता है?
शुरुआत में, अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण मार्च में होता था. जब 1789 में जॉर्ज वॉशिंगटन का चुनाव हुआ, तो पहले शपथ ग्रहण को अप्रैल तक टालना पड़ा, लेकिन बाद के शपथ ग्रहण के लिए 4 मार्च का दिन निर्धारित किया गया. हालांकि, इससे नवंबर के चुनाव और नए राष्ट्रपति पद के कार्यभार संभालने के बीच लंबा गैप रह जाता था. चार महीने की देरी ने एक "लेम डक" पीरियड बनाया गया, जिसके दौरान जो लोग सरकार में हैं वो सत्ता में बने रहते हैं, भले ही उसे जनता और विधायिका का सपोर्ट न मिला हो. 

20वीं सदी तक, यह लंबा गैप एक समस्या बन गया था. 1933 में, संविधान के 20वें संशोधन को मंजूरी मिली, जिससे शपथ ग्रहण का दिन आधिकारिक रूप से 20 जनवरी कर दिया गया. इस संशोधन का उद्देश्य "लेम डक" पीरियड को कम करना था, ताकि नए निर्वाचित राष्ट्रपति जल्दी से कार्यालय संभालकर अपनी योजनाओं को लागू कर सकें. 

जनवरी 20 को शपथ ग्रहण का इतिहास
जनवरी 20 शपथ ग्रहण की तारीख पहली बार 1937 में लागू हुई, जब फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट पहले ऐसे राष्ट्रपति बने जिन्हें इस तारीख को शपथ दिलाई गई. तब से, 20 जनवरी अमेरिका में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की तय तारीख बन गई है. हालांकि, अगर यह तारीख रविवार को पड़ती है तो शपथ ग्रहण अगले दिन की जाती है. उस स्थिति में सार्वजनिक समारोह 21 जनवरी को आयोजित होता है. अब संविधान यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का चार साल का कार्यकाल 20 जनवरी को दोपहर 12 बजे आधिकारिक तौर पर शुरू हो, और उस समय या उससे पहले शपथ लेनी होती है.

चुनाव के दिन से लेकर शपथ ग्रहण के दिन तक
डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत भले ही राष्ट्रपति पद को सुरक्षित करने का आखिरी कदम लगे, लेकिन ऐसा नहीं है. इससे पहले सत्ता को एक सरकार से दूसरी के हाथ में दिया जाता है, जिसे ट्रांजीशन ऑफ पावर कहा जाता है. इस पूरे प्रोसेस में कई चरण होते हैं:

1. नवंबर में चुनाव का दिन
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव परंपरागत रूप से नवंबर के पहले सोमवार के बाद के पहले मंगलवार को आयोजित होता है. इस चुनाव में, अमेरिकी सीधे अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट नहीं देते, बल्कि उन निर्वाचकों की एक लिस्ट के लिए वोट करते हैं जो उस उम्मीदवार का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस सिस्टम को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है, जिसे संविधान बनाने वालों ने पॉपुलर वोट और कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति के चयन के बीच एक समझौते के रूप में स्थापित किया था.

2. दिसंबर में इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग 
जैसे ही हर राज्य आधिकारिक रूप से आम चुनाव के नतीजों की पुष्टि कर देता है, प्रक्रिया अगले चरण में चली जाती है, जिसे "इलेक्टोरल कॉलेज" कहते हैं.

इसका भी अपना प्रोसेस होता है. हर राज्य में कुछ इलेक्टर्स (प्रतिनिधि) होते हैं, जिन्हें राज्य के राष्ट्रपति के लिए चुने गए उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए चुना जाता है. प्रत्येक राज्य में इलेक्टर्स की संख्या उस राज्य के कांग्रेस में सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए, अगर किसी राज्य में दो सीनेटर और दस प्रतिनिधि हैं, तो उस राज्य में इलेक्टोरल कॉलेज में बारह इलेक्टर्स होंगे.

ज्यादातर राज्यों में, वह उम्मीदवार जो राज्य में सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट (मतदान करने वाले लोगों के अधिकतम वोट) हासिल करता है, उसे राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं. यह "winner-takes-all" नियम 48 राज्यों में लागू होता है.

हालांकि, मेन और नेब्रास्का इसमें अपवाद हैं. इन दो राज्यों का एक अनूठा सिस्टम है. यहां, वे अपने सभी इलेक्टोरल वोट सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को नहीं देते हैं, बल्कि एक प्रोपोरशनल सिस्टम का उपयोग करते हैं. इसका मतलब है कि ये राज्य अलग-अलग जिलों में उम्मीदवारों को मिले वोटों के आधार पर अपने इलेक्टोरल वोटों को बांट सकते हैं.

इसलिए, ज्यादा राज्यों में, अगर एक उम्मीदवार पॉपुलर वोट जीतता है, तो उसे राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट मिल जाते हैं. लेकिन मेन और नेब्रास्का में, इलेक्टोरल वोट राज्य के अलग-अलग जिलों में प्राप्त वोटों के आधार पर उम्मीदवारों के बीच बांटे जा सकते हैं.

3. जनवरी में चलता है प्रोसेस 
इलेक्टोरल कॉलेज वोट प्रक्रिया का आखिरी स्टेप नहीं होता है. दिसंबर में डाले गए इलेक्टोरल वोटों को सील कर सीनेट के प्रेजिडेंट (वर्तमान उपराष्ट्रपति) के पास भेजा जाता है और यह वोट एक जॉइंट सेशन के दौरान औपचारिक रूप से गिने जाते हैं, जो आमतौर पर 6 जनवरी को होता है. इस सत्र की अध्यक्षता उपराष्ट्रपति करते हैं और यह राष्ट्रपति चुनाव के रिजल्ट की पुष्टि करने के लिए आखिरी कदम होता है. 

इस सेशन के दौरान, हर राज्य के इलेक्टोरल वोटों को खोला और पढ़ा जाता है. अगर किसी उम्मीदवार को इलेक्टोरल वोटों का बहुमत (कम से कम 270 में से 538) प्राप्त होता है, तो उसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति-निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है. हालांकि, अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिलता है, तो House of Representatives द्वारा इलेक्शन तय किया जाता है. यह प्रक्रिया, जिसे "contingent election" कहा जाता है, बहुत कम ही होती है और अमेरिकी इतिहास में कुछ ही बार हुई है.

4. ट्रांजीशन पीरियड 
इलेक्टोरल वोट की पुष्टि और शपथ ग्रहण दिवस के बीच का समय आने वाली नई सरकार के लिए काफी जरूरी होता है. इस पीरियड को, जो नवंबर से जनवरी तक होता है, Transition Period कहलाता है. इसके दौरान राष्ट्रपति अपने कैबिनेट मेंबर्स को नॉमिनेट करते हैं और पॉलिसी वगैरह तैयार करते हैं.

20 जनवरी को ली जाती है शपथ
20 जनवरी को, राष्ट्रपति को प्रेजिडेंट ऑफिस में शपथ दिलाई जाती है. उद्घाटन समारोह आमतौर पर वाशिंगटन, डीसी में होता है. इसमें कांग्रेस के सदस्य, गणमान्य व्यक्ति और जनता शामिल होते हैं. इस दौरान अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश को भी शपथ दिलाई जाती है. 

उद्घाटन समारोह में कई चीजें शामिल होती हैं. ठीक दोपहर को, राष्ट्रपति शपथ लेते हैं, जिससे उनके चार साल का कार्यकाल आधिकारिक रूप से शुरू होता है. शपथ के बाद, नए राष्ट्रपति को उद्घाटन भाषण देना होता है. शपथ ग्रहण के बाद, पेनसिल्वेनिया एवेन्यू पर व्हाइट हाउस तक एक परेड आयोजित होती है, जिसमें उद्घाटन समारोह और दूसरे इवेंट्स भी शामिल होते हैं. 


 

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