Carbon Capture and Storage: क्या है कार्बन कैप्चर और स्टोरेज की तकनीक, इससे मिल सकती है एमिशन रोकने में मदद

दुनिया के कई देश कार्बन एमिशन के मामले में नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं. यूके जैसे देशों ने इसके लिए Carbon Capture and Storage जैसी तकनीक पर काम करने की पहल की है. जानिए क्या है यह तकनीक.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 02 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST
  • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) के दो मुख्य प्रकार हैं
  • महंगी है CCS तकनीक

यूके सरकार ने अपने नेट जीरो लक्ष्य तक पहुंचने की अपनी कोशिश में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कैप्चर करने या पकड़ने और स्टोर करने के प्रोजेक्ट के लिए सहमति दी. ब्रिटेन ने मार्च में ही बता दिया था कि वे टेक्नोलॉजी में अगले 20 सालों में 20 बिलियन पाउंड (25.7 बिलियन डॉलर) का निवेश करेंगे. 

क्या है Carbon Capture and Storage 
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) के दो मुख्य प्रकार हैं. प्वाइंट-सोर्स कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) जो स्रोत पर उत्पादित CO2 को कैप्चर करता है, जैसे कि स्मोकस्टैक, जबकि डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) उस कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को हटा देता है जो पहले ही वायुमंडल में जारी की जा चुकी है. 

सरकारी समर्थन प्राप्त करने वाले दो नए ब्रिटिश प्रोजेक्ट्स हैं एकोर्न -जिसे स्टोरगा, शेल, हार्बर एनर्जी और नॉर्थ सी मिडस्ट्रीम पार्टनर्स ने मिलकर विकसित किया है. और वाइकिंग परियोजना - जिसे हार्बर एनर्जी लीड कर रही है. इन दोनों प्रोजेक्ट्स को तेल और गैस शोधन और इस्पात निर्माण जैसे भारी उत्सर्जन वाले क्षेत्रों से उत्सर्जन को पकड़ने और उन्हें ब्रिटेन के तट से दूर ख़त्म हो चुके तेल और गैस क्षेत्रों में अंडरग्राउंड स्टोर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

यह कैसे काम करता है?
सबसे पहले, CO2 को औद्योगिक प्रक्रियाओं (Industrial Process) या बिजली उत्पादन के दौरान उत्पादित अन्य गैसों से अलग करना होगा. एक बार कैप्चर करने के बाद इसे कंप्रेस करना पड़ता है और अक्सर पाइपलाइनों के माध्यम से स्टोरेज के लिए साइटों पर ले जाया जाता है. इसके बाद, इसे दशकों तक स्टोरेज के लिए अंडरग्राउंड चट्टानों में - आमतौर पर 1 किमी (0.62 मील) या उससे अधिक नीचे - जमीन के अंदर डाला जाना चाहिए. 

क्या है टेक्नोलॉजी साबित हो चुकी है
ग्लोबल सीसीएस इंस्टीट्यूट का कहना है कि सीसीएस 1970 के दशक से काम कर रहा है, जिसमें 200 मिलियन टन से ज्यादा CO2 को वैश्विक स्तर पर कैप्चर करके अंडरग्राउंड स्टोर किया गया है. हालांकि, कई परियोजनाएं उम्मीद के हिसाब से कार्बन कैप्चर में विफल रही हैं.

ऑस्ट्रेलिया का शेवरॉन कॉर्प (सीवीएक्स.एन) गोर्गन प्रोजेक्ट दुनिया का सबसे बड़ा, कमर्शियल सीसीएस प्रोजेक्ट है. हालांकि, यह प्रोजेक्ट भी ज्यादा उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है. 

क्या भूमिका निभा सकता है CCS
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में कहा गया था कि सीसीएस दुनिया को क्लाइमेट चेंज पर 2015 के पेरिस समझौते के तहत निर्धारित ग्लोबल क्लाइमेट गोल्स या लक्ष्य तक पहुंचने में मदद कर सकता है, लेकिन सबसे पहले उत्सर्जन को रोकने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. 

ब्रिटेन जैसे देशों को उम्मीद है कि टेक्नोलॉजी उन्हें अपने नेट जीरो लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करेगी. ब्रिटेन का लक्ष्य 2030 तक प्रति वर्ष 20-30 मिलियन टन कार्बन को कैप्चर करने और स्टोर करने का है, जो 10-15 मिलियन कारों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है. 

कितनी फैसिलिटीज हैं मौजूद 
ग्लोबल सीसीएस इंस्टीट्यूट के अनुसार, पिछले साल ग्लोबल प्रोजेक्ट पाइपलाइन में 61 फैसिलिटीज जोड़ी गईं, जिससे कुल संख्या 190 से ज्यादा हो गई. इनमें से 30 चालू थीं, 11 निर्माणाधीन थीं और शेष विकास के विभिन्न चरणों में थीं. 

CCS के अलावा, CCUS भी पॉपुलर हो रहा है. CCUS का मतलब है कार्बन कैप्चर, यूटीलाइजेशन और स्टोरेज- जिसमें CO2 को सिर्फ स्टोर करने की बजाय - इसे प्लास्टिक, कंक्रीट या जैव ईंधन निर्माण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाओं में फिर से इस्तेमाल किया जाता है. 
हालांकि, कंसल्टेंसी वुड मैकेंज़ी का कहना है कि सीसीएस तकनीक महंगी है. हालांकि, यह अनुमान लगाया गया है कि अगले दो दशकों में लागत में 20% -25% की गिरावट आ सकती है.

 

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