Explainer: सऊदी अरब समेत 6 देशों की होगी ब्रिक्स में एंट्री, जानें क्या हैं इसके मायने

BRICS NEW ENTRY: यह दूसरी बार है जब ब्रिक्स ने विस्तार का फैसला किया है. 2009 में गठित इस ब्लॉक ने 2010 में दक्षिण अफ्रीका को अपने समूह में शामिल कर लिया था.

ब्रिक्स
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 25 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 2:26 PM IST
  • दूसरी बार किया है विस्तार का फैसला
  • सऊदी अरब समेत 6 देशों की होगी ब्रिक्स में एंट्री,

ब्रिक्स (BRICS) समूह अब बड़ा होने जा रहा है.सऊदी अरब, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, अर्जेंटीना, इथियोपिया और मिस्र ब्रिक्स के नए सदस्य होने वाले हैं. ऐसा पहली बार है जब भारत की ओर से ब्रिक्स के सदस्य देशों की सदस्यता बढ़ाने पर सहमति का एलान किया गया है. सिरिल रामफोसा, जो वर्तमान में जोहान्सबर्ग में ब्राजील, रूस, भारत, दक्षिण अफ्रीका और चीन के शिखर सम्मेलन के 15वें संस्करण की मेजबानी कर रहे हैं, ने गुरुवार को घोषणा की कि छह नए देश इस समूह में शामिल हो रहे हैं. 

दूसरी बार किया है विस्तार का फैसला

इसे लेकर सिरिल ने कहा, "ब्रिक्स ने एक ऐसी दुनिया बनाने के अपने प्रयास में एक नया अध्याय शुरू किया है जो निष्पक्ष हो, एक ऐसी दुनिया जो न्यायपूर्ण हो, एक ऐसी दुनिया जो समावेशी और समृद्ध हो." यह दूसरी बार है जब ब्रिक्स ने विस्तार का फैसला किया है. 2009 में गठित इस ब्लॉक ने 2010 में दक्षिण अफ्रीका को अपने समूह में शामिल कर लिया था. लेकिन ये देश क्यों इसमें शामिल हुए हैं? और इसके क्या मायने हैं? 

कौन से देश हुए शामिल?

सऊदी अरब, ईरान, इथियोपिया, मिस्र, अर्जेंटीना और संयुक्त अरब अमीरात सभी को ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सिरिल रामफोसा ने कहा कि नए सदस्यों को औपचारिक रूप से 1 जनवरी, 2024 को समूह में शामिल किया जाएगा. ऐसे में अब भविष्य में दूसरे नए सदस्यों को शामिल करने की संभावना के लिए दरवाजा खुला गया है.

ये देश क्यों होना चाहते हैं ब्रिक्स में शामिल? 

दरअसल, ब्रिक्स दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का एक चौथाई हिस्सा रखता है. ऐसे में दक्षिण अफ्रीका अधिकारियों का कहना है कि 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में रुचि जाहिर की है और 22 ने औपचारिक रूप से इसमें शामिल होने के लिए कहा है. हालांकि, ब्रिक्स लंबे समय से आईएमएफ और विश्व बैंक में सुधारों के लिए तर्क देता रहा है. एपीडीडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, देशों का मानना ​​है कि ब्रिक्स अपने ओहदे का इस्तेमाल ऐसे समूहों में बदलाव लाने के लिए कर सकता है. ताकि देशों की स्थितियों को बेहतर किया जा सके. 

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के जुड़ने का कारण

सऊदी अरब की अगर बात करें, तो ये फारस की खाड़ी के दो सबसे बड़े राजनीतिक और वित्तीय दिग्गज और दुनिया के दो सबसे बड़े ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं को शामिल करने वाला देश है. फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में हाल के वर्षों में कुछ झगड़ा चल रहा है. तेल उत्पादन, यूक्रेन में युद्ध और ईरान और सीरिया के साथ उनके संबंधों जैसे मुद्दों पर तेजी से ये दोनों देश अपने-अपने तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. 

वहीं, संयुक्त अरब अमीरात ने भी हाल के वर्षों में मध्य पूर्व में एक बड़ी नेतृत्व भूमिका की मांग की है. अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर भरोसा करने के बावजूद, अमीराती शासक शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने रूस और चीन दोनों के साथ दोस्ती कर ली है. उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर वी. पुतिन से मिलने के लिए पिछले वर्ष में दो बार रूस का दौरा किया और इस महीने चीन के साथ अमीराती वायु सेना की ट्रेनिंग पर सहमति व्यक्त की.

आर्थिक रूप से भी, अमीरात गैर-पश्चिमी संबंधों पर फला-फूला है. भारत और चीन के साथ इसका व्यापार फला-फूला है.

अर्जेंटीना और इजिप्ट 

ब्राजील और मैक्सिको के बाद अर्जेंटीना की लैटिन अमेरिका में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ब्रिक्स में इसके समर्थकों में भारत शामिल है. ब्राजील, इसका सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार; और चीन के साथ इसके काफी अच्छे वित्तीय संबंध हैं. अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज ने गुरुवार को एक रिकॉर्डेड संबोधन में कहा था कि ब्रिक्स में एंट्री उनके देश के लिए एक आर्थिक अवसर देता है. न्यू यॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, ब्यूनस आयर्स स्थित इंटरनेशनल रिलेशन एक्सपर्ट गेब्रियल मेरिनो ने कहा कि ब्रिक्स में प्रवेश से अर्जेंटीना के लिए महत्वपूर्ण बाजार मजबूत होंगे और नए बाजार खुलेंगे. 

वहीं, इजिप्ट अमेरिकी से बड़े लेवल पर सहायता लेता है लेकिन इसने लंबे समय से रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखा है और चीन के साथ इसके व्यापार संबंध बढ़ रहे हैं. अमेरिकी निर्भरता से खुद को दूर करने में इसकी दिलचस्पी पिछले डेढ़ साल में मजबूत हुई है, क्योंकि डॉलर पर निर्भर रहना आगे चलकर परेशानी भरा हो सकता है. निवेशकों ने घबराहट में मिस्र से अरबों डॉलर निकाल लिए, और डॉलर से खरीदे गए महत्वपूर्ण गेहूं और ईंधन आयात की कीमत बढ़ गई. डॉलर की कमी के कारण देश के लिए अपना कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया है. ब्रिक्स के अंदर, मिस्र स्थानीय मुद्रा में व्यापार कर सकता है. 

इथियोपिया का क्या है कारण?

कुछ समय पहले, इथियोपिया अफ्रीका का उभरता हुआ देश था - दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक, जिसका नेतृत्व एक गतिशील युवा नेता अबी अहमद ने किया था, जिन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार जीता था. लेकिन टाइग्रे क्षेत्र (Tigray conflict) में दो साल के गृह युद्ध ने इसका अधिकांश हिस्सा बर्बाद कर दिया. अर्थव्यवस्था खराब हो गई, अमेरिका ने व्यापार विशेषाधिकारों में कटौती की और इथियोपिया को खाद्य सहायता बंद कर दी. हालांकि टाइग्रे संघर्ष पिछले नवंबर में खत्म हो गया. लेकिन ब्रिक्स की मदद से ये आगे बढ़ सकता है. और आर्थिक रूप से इथियोपिया की गिरती मुद्रा को मजबूत किया जा सकेगा. 


 

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